सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल कॉलेज मान्यता मामले में जजों के नाम पर रिश्वत लेने के मामले में एसआईटी की जांच वाली मांग को खारिज कर दिया है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर 25 लाख का जुर्माना भी लगाया है।
यह याचिका एनजीओ कैम्पेन फॉर जुडिशल अकाउंटिबिलिटी एंड रिफॉर्म्स (सीजेएआर) ने दायर की थी। इससे पहले एक इसी तरह की याचिका को सुप्रीम कोर्ट 14 नवंबर में ख़ारिज कर चुका है।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता एनजीओ को छह महीने में जुर्माने की राशि (25 लाख) जमा करने का आदेश दिया है। 14 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ प्रशांत भूषण और कामिनी जायसवाल की एक इसी तरह की याचिका को खारिज कर दिया था।
उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, 'याचिकाकर्ता ने कोर्ट को गुमराह कर मनचाही बेंच पाने की कोशिश की, यह गलत है। सुप्रीम कोर्ट के जजों के खिलाफ बिना तथ्य के आरोप लगाए गए। न्यायपालिका की बदनामी की गई। यह अवमानना भरी हरकत है। फिर भी हम अवमानना का नोटिस जारी नहीं कर रहे हैं। उम्मीद है कि वकील आगे बेहतर काम करेंगे'
उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एफआईआर में किसी जज का नाम नहीं है और इस बात को खुद याचिकाकर्ता ने सुनवाई के दौरान स्वीकार किया है।
क्या है मामला?
दरअसल साल 2004-2010 के दौरान उड़ीसा हाई कोर्ट के जज रहे कुदुशी पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से प्रतिबंध लगाए जाने के बावजूद एक निजी मेडिकल कॉलेज को एमबीबीएस कोर्स में छात्रों का प्रवेश स्वीकार करने में मदद करने का आरोप है।
जस्टिस कुदुशी को सितंबर में गिरफ्तार किया गया था और इस समय वह तिहाड़ जेल में बंद हैं। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) का आरोप है कि जस्टिस कुदुशी ने निजी मेडिकल कॉलेज का निर्देशन और उसके प्रबंधन को सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मुकदमों के पक्ष में निपटारा करने का भरोसा दिलाया था।
इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता कामिनी जायसवाल ने जांच एसआईटी से करवाने की मांग की थी जिसे अदालत ने खारिज कर दिया था।
यह भी पढ़ें: सनी लियोनी ने पति डेनियल के साथ कराया बोल्ड फोटोशूट, सोशल मीडिया पर हुआ वायरल
कारोबार से जुड़ी ख़बरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
Source : News Nation Bureau