उसकी आंचल की छांव में एक साल का मासूम खुद को महफूज महसूस कर रहा है. वो मां है जो तपतपाती धूप में जलती सड़कों पर लगातार चल रही है. इस उम्मीद से की वो अपने घर पहुंच जाए और उसकी और उसके बच्चे की जिंदगी बच जाए जो भूख की आग में झुलस रही है. ये कहानी सिर्फ अंजली की नहीं बल्कि कई और लोगों की है जो लॉकडाउन में बेरोजगार हो चुके हैं जिनके पास खाने को नहीं है. वो अपने घर लौट रहे हैं जो सैकड़ों किलोमीटर दूर है.
ऐसी ही कुछ तस्वीरें सामने आई है, जहां कुछ मजदूर पैदल तो कुछ साइकिल से अपने गांव अपने घर लौट रहे हैं. नागपुर से चलकर कुछ लोग मध्य प्रदेश के सतना जिला जा रहे हैं. नागपुर में आए थे रोजी रोटी कमाने. लेकिन कोरोना वायरस (Coronavirus) ने ऐसी तबाही मचाई की इनकी जिंदगी भी उथल पुथल हो गया. लॉकडाउन ने इन्हें घरों में रहने पर मजबूर कर दिया. रोज कमाने और रोज खाने वाले इन लोगों के पास सरकारी मदद नहीं पहुंच रही है. जिसकी वजह से इन्होंने अपने 'वतन' जाने का फैसला लिया.
एक मजदूर की मानें तो नासिक से इन्होंने पांच दिन पहले चलना शुरू किया था और इन्हें घर पहुंचने के लिए छह दिन और चलना होगा.
वहीं, अंजली जो पेशे से मजदूर हैं, वो अपने पति और एक साल के बच्चे के साथ घर लौट रही है. उनका कहना है, 'मैं और मेरे पति ने एक साल के बच्चे के साथ नागपुर से साइकिल से मध्य प्रदेश (Madhya pradesh) के सिवनी के लिए निकले हैं. हम लोग 14 अप्रैल का इंतजार कर रहे थे कि बस शुरू हो जाएगा. लेकिन बस नहीं चली तो फिर हमने साइकिल से यात्रा करने की सोची. हम लगातार चल रहे हैं.
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ये कहानी सिर्फ अंजली और चंद मजदूरों की नहीं है, बल्कि देश के अलग-अलग हिस्सों से सामने आ रही है. कोरोना वायरस से मात देने के लिए सरकार ने लॉकडाउन कर रखा है, राहत का भी ऐलान किया है. सरकारें यह भी कह रही है कि किसी को जाने की जरूरत नहीं है, सबका पेट भरा जाएगा. लेकिन बावजूद इसके लोग अपने घर लौटना चाहते हैं, कुछ पैदल ही चल पड़े हैं.
Source : News Nation Bureau