दिल्ली में हुए दंगों पर दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग की 9 सदस्य फैक्ट फाइंडिंग कमेटी ने अपनी रिपोर्ट जारी की है. फैक्ट फाइंडिंग कमेटी की रिपोर्ट के प्रस्तावना में ही पुलिस और पूरे सिस्टम पर अल्पसंख्यक समुदाय के साथ पक्षपात करने का आरोप लगाया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस ने चार्जशीट में मुस्लिमों को पहले आरोपी बनाया. पुलिस ने ऐसा अवधारणा बनाई ताकि दंगों को CAA विरोधी प्रदर्शनकारियों और खासतौर से मुस्लिम से जोड़ा जा सके. वहीं, इस रिपोर्ट में ताहिर के वकील के बयान का हवाला देते हुए उसे क्लीन चिट देने की कोशिश की गई है.
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रिपोर्ट में सीएए विरोधी प्रदर्शन को भी वाजिब करार दिया गया है. इस रिपोर्ट में कई संविधान विशेषज्ञों का हवाला देते हुए CAA को धार्मिक आधार पर भेदभाव करने वाला कानून साबित करने की कोशिश की गई है. इसमें कहा गया है कि NRC में जगह पाने से असफल रहे गैरमुस्लिमों के लिए तो CAA के जरिये नागरिकता पाने का रास्ता खुला रहेगा, लेकिन मुस्लिम अवैध शरणार्थी साबित हो जाएंगे. सीएए प्रदर्शन को इस रिपोर्ट में शांतिपूर्ण प्रदर्शन बताया गया.
शाहीन बाग की हुई तारीफ
भले ही शाहीन बाग के प्रदर्शन ने कई महीनों तक लोगों का रास्ता रोक कर रखा हो और उन्हें परेशानी हुई हो. लेकिन इस रिपोर्ट में शाहीन बाग प्रदर्शन की तारीफ की गई है. शाहीन बाग आंदोलन की तारीफ में कहा गया है कि ये आंदोलन न केवल धार्मिक आधार पर भेदभाव करने वाले कानून के खिलाफ था बल्कि गरीबी बेरोजगारी और सामाजिक और धार्मिक आधार पर भेदभाव के खिलाफ एक संघर्ष का प्रतीक भी था.
बीजेपी नेताओं के स्पीच से भड़की हिंसा
दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग की रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि बीजेपी के कुछ बड़े नेताओं ने सीएए के खिलाफ विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों को लेकर बेहद साम्प्रदायिक टिप्पणी की. केंद्रीय मंत्री अमित शाह, गिरिराज सिंह, कपिल मिश्रा, योगी आदित्यनाथ ने प्रदर्शनकारियों को लेकर धमकाने वाले और भड़काऊ भाषण दिया. यहां तक कि दिल्ली के मुख्यमंत्री को आतंकवादी तक कहा गया. रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि उत्तर पूर्वी दिल्ली में भड़की हिंसा बीजेपी नेताओं की इस तरह की स्पीच का नतीजा थी.
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रिपोर्ट में 2 फरवरी 2020 की योगी आदित्यनाथ की दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार के समर्थन में की गई एक रैली का भी हवाला दिया गया है. इसमें कहा गया है कि इस रैली में योगी आदित्यनाथ ने कहा कि यह प्रदर्शन कुछ नहीं है बल्कि आर्टिकल 370 को हटाने और अयोध्या में भगवान राम के मंदिर बनने को लेकर लोगों के गुस्से का प्रतीक है.
दंगों के दौरान पुलिस पर सरेआम पिस्टल तानने वाले शाहरुख को लेकर ये रिपोर्ट कहती है कि इस केस को मिली पब्लिसिटी के मद्देनजर जब पुलिस शाहरुख के घर गई तो घरवालों ने बताया कि CAA विरोधी प्रदर्शनकारियों पर हो रही पत्थरबाजी के बीच हिंसक भीड़ ने उनके घरवालों को भी निशाना बनाया. नजदीक रहने के बावजूद पुलिस सहायता के लिए सामने नहीं आई. तब शाहरुख पिस्टल लेकर घर से बाहर सड़क पर निकल आया और फायर किया. रिपोर्ट कहती है कि शाहरुख के घरवालों को निशाना बनाया जा रहा है, इसलिए उसने गुस्से में ये कदम उठाया.
ताहिर हुसैन को क्लीन चिट!
हैरान करने वाली बात आम आदमी पार्टी के निलंबित पार्षद ताहिर हुसैन को लेकर ये रिपोर्ट कहती है कि 23-27 फरवरी के बीच IB अधिकारी अंकित शर्मा और पुलिस कांस्टेबल रतन लाल शहीद हुए. इन नामों को मीडिया में मुस्लिम समुदाय की दंगों में भूमिका को साबित करने के लिए सबूत के तौर पर जमकर सर्कुलेट किया गया. पुलिस ने अपनी चार्जशीट में ताहिर हुसैन समेत मुस्लिमों को आरोपी बनाया है.
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रिपोर्ट ताहिर हुसैन को उनको वकील के बयान के हवाले से क्लीन चिट देते हुए कहती है कि 24 -25 फरवरी के बीच ताहिर ने ख़ुद पुलिस से मदद की गुहार लगाई. पुलिस उसे घर से बाहर सुरक्षित लेकर गई और 25 फरवरी को जब अंकित शर्मा की हत्या हुई तो वह इलाके में मौजूद ही नहीं था.
यहां गौर करने वाली बात है कि पिछली 13 जुलाई को कड़कड़डूमा कोर्ट के एडिशनल सेशन जज विनोद यादव ने ताहिर हुसैन की ज़मानत ये कहते हुए खारिज कर दी थी कि पुख्ता सबूत है कि ताहिर हुसैन मौके पर मौजूद था और एक 'खास सम्प्रदाय' के लोगों को उकसा रहा था. उसके इशारे पर 'Human Weapons' में तब्दील लोग किसी की भी जान ले सकते थे. कोर्ट का मानना था कि ताहिर हुसैन का घटनास्थल पर उसकी मौजूदगी को साबित करने के लिए कोई CCTV फुटेज न होने की दलील में कोई दम नहीं है, क्योंकि दंगाइयों ने घटनास्थल के आसपास सारे CCTV तोड़ डाले थे. जाहिर है अल्पसंख्यक आयोग की यह रिपोर्ट कोर्ट के निष्कर्ष के एकदम उलट है.
Source : News Nation Bureau