उत्तर प्रदेश में एक छात्र ने स्टील, लोहा और प्लास्टिक फाइबर के टुकड़ों से 'पारदर्शी कंक्रीट' विकसित की है, जिससे बनने वाली इमारतों में सूर्य की किरणें दीवारों से छनकर अंदर आएंगी. इसका इजाद कानपुर के हारकोर्ट बटलर टेक्निकल यूनिवर्सिटी (एचबीटीयू) के एम-टेक कोर्स के सिविल इंजीनियरिंग के छात्र रामांश बाजपेयी ने किया है. इस कंक्रीट से बनने वाली दीवारों से करीब 30 प्रतिशत तक धूप कमरे के अंदर आ पाएगी, जिससे कमरा दिन में खूब रोशन रहेगा. हालांकि इन दीवारों से होकर मात्र रोशनी ही अंदर आएगी, सूर्य की रोशनी से उत्पन्न गर्मी नहीं और इस कंक्रीट के प्रयोग से करीब 30 प्रतिशत तक बिजली बचेगी.
रामांश ने बताया कि इस कंक्रीट से बनी दीवरों से केवल सूर्य की रोशनी अंदर आएगी, हवा और पानी अंदर नहीं आएगा, जिससे कमरे में सीलन और लीकेज की समस्या नहीं होगी.
शोध में रामांश का मार्गदर्शन करने वाले दीपक कुमार सिंह ने कहा, "यह कंक्रीट अन्य साधारण कंक्रीट से 23 प्रतिशत अधिक मजबूत है. इसकी कीमत साधारण कंक्रीट की कीमत का मात्र 33 प्रतिशत है और सिर्फ पेरिस ऑफ प्लास्टर के साथ इसका प्रयोग किया जा सकता है." पारदर्शी कंक्रीट से बनाई गई दीवार में मात्र 1924 रुपये की लागत आएगी, जबकि साधारण कंक्रीट से वैसी ही दीवार बनाने में 5,800 रुपये का खर्च आएगा.
सिंह ने आगे कहा, "हमने इसमें आमतौर पर लोकप्रिय जीजीबीएस यानी फर्नेस लावा का 40 प्रतिशत प्रयोग किया है. यह पानी या भाप में एक ब्लास्ट फर्नेस से पिघले हुए लोहे के स्लैग द्वारा प्राप्त किया जाता है. जीजीबीएस का प्रयोग यूरोप में बड़े पैमाने पर किया जाता है, वहीं अमेरिका और एशिया में भी इसका प्रयोग तेजी से बढ़ रहा है, जबकि जापान और सिंगापुर में कहीं-कहीं इसे प्रयोग में लाया जाता है. इससे कंक्रीट का टिकाऊपन बढ़ जाता है और इससे बनने वाली इमारतों की उम्र 50 से सौ साल तक हो जाती है. नवनिर्मित पारदर्शी कंक्रीट कार्बन डाइ-ऑक्साइड मुक्त और 15 प्रतिशत तक हल्का है.
Source : आईएएनएस