चंद्रयान 2 का लैंडर विक्रम चांद की सतह से 2.1 किलोमीटर दूर था कि तभी उसका संपर्क इसरो के कंट्रोल रूम से टूट गया और पूरे कंट्रोल रूम में उदासी छा गई. इसरो के वैज्ञानिकों ने इस बारे में जानकारी देते हुए बताया कि पहले हमें लगा था कि एक थ्रस्टर से कम स्ट मिलने की वजह से ऐसा हुआ, लेकिन कुछ प्राथमिक जांच से ऐसा लग रहा है कि एक थ्रस्टर ने उम्मीद से ज्यादा थ्रस्ट लगा दिया.'
क्या होता है थस्टर?
दरअसल थ्रस्टर के जरिए अंतरिक्ष यान के रास्ते को बदला जाता है. ये यान में लगने वाला एक छोटा रॉकेट इंजन होता है जिसका इस्तेमाल यान की ऊंचाई कम और ज्यादा करने के लिए किया जाता है. वैज्ञानिकों की मानें तो शुरुआती जांच में पता चला है कि लैंडिग के समय थ्रस्ट जरूरत से ज्यादा हो गया जिससे विक्रम अपना रास्ता भटक गया.
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कैसे टूटा था संपर्क?
बता दें कि ‘चंद्रयान-2’ के लैंडर ‘विक्रम’ का चांद पर उतरते समय जमीनी स्टेशन से संपर्क टूट गया. सपंर्क तब टूटा जब लैंडर चांद की सतह से 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई पर था. लैंडर को रात लगभग एक बजकर 38 मिनट पर चांद की सतह पर लाने की प्रक्रिया शुरू की गई, लेकिन चांद पर नीचे की तरफ आते समय 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई पर जमीनी स्टेशन से इसका संपर्क टूट गया. ‘विक्रम’ ने ‘रफ ब्रेकिंग’ और ‘फाइन ब्रेकिंग’ चरणों को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया था, लेकिन ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ से पहले इसका संपर्क धरती पर मौजूद स्टेशन से टूट गया. इसके साथ ही वैज्ञानिकों और देश के लोगों के चेहरे पर निराशा की लकीरें छा गईं.
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अब भी उम्मीद बाकी
मिशन चंद्रयान 2 के आखिरी क्षणों में भले ही विक्रम लैंडर से संपर्क टूट गया पर आर्बिटर अब भी चंद्रमा का चक्कर लगा रहा है. जिस ऑर्बिटर से लैंडर अलग हुआ था, वह अभी भी चंद्रमा की सतह से 119 किमी से 127 किमी की ऊंचाई पर घूम रहा है. 2,379 किलो वजनी ऑर्बिटर के साथ 8 पेलोड हैं और यह एक साल काम करेगा. यानी लैंडर और रोवर की स्थिति पता नहीं चलने पर भी मिशन जारी रहेगा. 8 पेलोड के अलग-अलग काम होंगे.