प्रधानमंत्री बनने से पहले गंगा की सफाई को लेकर बीजेपी के स्टार प्रचारक नरेंद्र मोदी के बड़े बोल सुनने को मिले थे।
गुजरात से उत्तर प्रदेश के वाराणसी आए मोदी ने सांसद प्रत्याशी के रूप में गंगा को नमन करते हुए कहा था, 'न मैं यहां खुद आया हूं, न किसी ने मुझे लाया है, मुझे तो गंगा मां ने बुलाया है।' गंगा के प्रति उनकी भक्ति देखकर देश खुश हुआ था।
मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद 'नमामि गंगे' नाम से एक परियोजना देश के गले बांध दी गई। इसकी जिम्मेदारी केंद्रीय मंत्री साध्वी उमा भारती को सौंपी गई। तब देश को लगा था कि साध्वी की प्रखर वाणी की तरह गंगा भी अविरल बहेगी, निर्मल बनेगी पर ऐसा हो न सका।
बाद में पता चला, साध्वी 'नमामि गंगे' से हाथ धो बैठी हैं और इस परियोजना का अतिरिक्त भार केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ढो रहे हैं।
अब, जब मौजूदा सरकार के पांच साल पूरे होने में बमुश्किल एक साल बचा है तो पीछे मुड़कर देखने की जरूरत है कि सरकार ने गंगा की सफाई को लेकर चार साल में आखिर किया क्या है? यह जानने के लिए जब एक आरटीआई अर्जी दायर की गई, तो जवाब में सरकार साफतौर पर कह रही है कि उसे पता ही नहीं, गंगा अब तक कितनी साफ हुई है।
गंगा की सफाई को लेकर अभियान चला रहीं कार्यकर्ता जयंती, सरकार से पूछ रही हैं कि गंगा की सफाई का बिगुल बजाए एक अरसा हो गया है, लेकिन सरकार ने सफाई के नाम पर कुछ घाट चमका दिए हैं, लेकिन सरकार के पास क्या गंगा के घटते जलस्तर पर कोई जवाब है? गंगा में जमी गाद को हटाने के लिए सरकार कर क्या रही है? इसे हटाए बिना जलमार्ग का विकास असंभव है, क्योंकि गंगा जब तक अविरल नहीं होगी, निर्मल भी नहीं होगी।
हाल ही में एक आरटीआई अर्जी के जवाब से खुलासा हुआ कि सरकार गंगा की सफाई पर अब तक 3,800 करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है। तब सवाल उठता हे कि जमीनी स्तर पर सफाई कहां-कहां हुई? इतनी बड़ी रकम कहां-कहां और किन मदों में खर्च हुई?
आरटीआई याचिकाकर्ता एवं पर्यावरणविद् विक्रम तोगड़ कहते हैं, 'आरटीआई के तहत यह ब्योरा मांगा गया था कि अब तक गंगा की कितनी सफाई हुई है, लेकिन सरकार इसका कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं करा पाई।'
वह कहते हैं, 'सरकार क्या इतनी बात नहीं जानती कि गंगा में गंदे नालों के पानी को जाने से रोके बिना गंगा की सफाई नहीं हो सकती। नमामि गंगा के तहत सरकार ने गौमुख से गंगा सागर तक का जो हिस्सा कवर किया है, वहां के हालात जाकर देखिए, काई, गाद और कूड़े का ढेर देखने को मिलेगा। इसी तरह आप गढ़गंगा यानी गढ़मुक्ते श्वर का हाल देख लीजिए। सफाई हुई कहां है और हो कहां रही है?'
पर्यावरणविद् कहते हैं कि गंगा को लेकर 'पॉलिटिकल विल' में इजाफा तो हुआ है, लेकिन इस काम को विकेंद्रीकृत किए जाने की जरूरत है। 'एडमिनिस्ट्रेटिव अप्रोच' अपनाए जाने की जरूरत है।
वह कहते हैं, 'गंगा में पानी की भी कमी है। इसकी सहायक नदियों का अतिक्रमण हुआ है। सफाई के नाम पर खर्च अधिक हुआ है लेकिन फायदा कहीं दिख नहीं रहा है। कचरे के निपटान की व्यवस्था करनी भी जरूरी है। इसके लिए ट्रेनिंग नेटवर्क तैयार करना होगा।'
पर्यावरणविद जयंती कहती हैं, 'समस्या यह है कि अभी जो काम हो रहा है, उसका असर अगले तीन से चार साल में देखने को मिलेगा लेकिन तब तक और गंदगी एवं कूड़ा इकट्ठा हो जाएगा। सरकार को नेचुरल ट्रीटमेंट प्रोसेस को शुरू करने की जरूरत है लेकिन लगता है कि सरकार गंभीर ही नहीं है।'
वह कहती हैं, 'सरकार ने 2020 तक 80 फीसदी गंगा साफ करने का लक्ष्य रखा है, लेकिन अभी तक कितनी साफ हुई है, इसका कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं कराया गया है। 2019 में कितनी गंगा साफ करेंगे इसका हिसाब भी किसी और को नहीं, सरकार को ही देना है।'
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Source : IANS