केंद्र की मोदी सरकार (Modi Government) अफगानिस्तान में तालिबान (Taliban) राज की वापसी को मूक दर्शक बतौर नहीं देख रही है. फिलवक्त देखो और इंतजार करो की नीति का अनुसरण करते हुए पर्दे के पीछे कई रणनीति पर काम चल रहा है. तालिबान पर कूटनीतिक दबाव बनाने के लिए भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) समेत कई मुस्लिम व खाड़ी देशों से लगातार बातचीत कर रहा है. इसके अलावा अमेरिका, रूस सहित अन्य प्रभावशाली देशों के भी संपर्क में है. भारत चाहता है कि अफगानिस्तान (Afghanistan) में आकार लेने वाली तालिबान की नई सरकार में सभी समूहों को प्रतिनिधित्व हो और पाकिस्तान का असर कम से कम हो. मोदी सरकार कतई नहीं चाहती कि अफगानिस्तान में पाकिस्तान (Pakistan) की आईएसआई के छद्म नेतृत्व तले कठपुतली सरकार बने.
मोदी सरकार कर रही यह काम
भारत की इस रणनीति से वाकिफ सूत्रों के मुताबिक मोदी सरकार के प्रतिनिधि ईरान, संयुक्त अरब अमीरात, कतर के अलावा अमेरिका और रूस जैसे देशों से एक साथ अफगानिस्तान मसले पर संपर्क में हैं. पर्दे के पीछे से और जहां जरूरी है वहां सामने से, भारत कूटनीतिक रूप से सक्रिय है. सूत्रों ने कहा कि भारत की अगली भूमिका अफगानिस्तान की नई सरकार के कदम पर निर्भर करेगी. फिलवक्त भारत अपने हितों के मद्देनजर शांति, स्थिरता और विकास के साझा मूल्यों पर फोकस कर रहा है. इसके साथ ही उसकी हरसंभव कोशिश है कि अफगानिस्तान आतंकियों के लिए स्थायी पनाहगाह न बनने पाए. इसके लिए यूएनएससी में भारत की अध्यक्षता में न सिर्फ प्रस्ताव लाया गया, बल्कि कतर में भारतीय राजदूत और तालिबान के शीर्ष नेता से मुलाकात में भी इस बात को साफतौर पर कहा गया है.
पाकिस्तान की नापाक चालों को भोथरा कर रही भारतीय कूटनीति
अब ये किसी से छिपा नहीं है कि अफगानिस्तान में तालिबान राज की वापसी पर सबसे ज्यादा खुश पाकिस्तान है. यहां तक कि उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई तालिबान हुकूमत पर अभी से अपना नियंत्रण स्थापित करने में लग गई है. अगर पाकिस्तान इस नापाक इरादे में सफल रहता है, तो भारत के लिए कई मोर्चों पर चुनौती बढ़ जाएगी. इसकी बड़ी वजह यही है कि पीओके में आतंकी कैंपों की वजह से कश्मीर में लगातार घुसपैठ और आतंकवाद से जूझ रही सेना और सुरक्षा बलों को दोहरे फ्रंट पर काम करना होगा. सामरिक रणनीतिकारों का मानना है कि तालिबानी आतंकी और आईएसआई के गठबंधन का असर पूरे हिंद महासागर पर पड़ेगा. हालांकि इस कड़ी में एक अच्छी बात यह भी है कि तालिबान पर मुस्लिम देशों में भी एका नहीं हैं. इस्लामिक कानूनों के नाम पर कट्टरपंथ को लेकर इनकी राय अलग-अलग है.
HIGHLIGHTS
- तालिबान पर मुस्लिम देशों में भी एका नहीं, कट्टरपन से परहेज
- मोदी सरकार लगातार इन देशों समेत अमेरिका-रूस के संपर्क में
- तालिबान पर पाकिस्तान का प्रभाव कम करने की रणनीति