CAA-NRC पर विवाद को देखते हुए मोदी सरकार (Modi Sarkar) जनसंख्या नियंत्रण (Population Control) पर कानून लाने की जल्दी में नहीं है. सरकार इस पर पहले आम राय बनाना बनाना चाहती है. इससे पहले चर्चा थी कि जनसंख्या नियंत्रण से जुड़ा कानून बजट सत्र (Budget Session) में ही आ सकता है. नीति आयोग (NITI Ayog) ने पिछले हफ्ते ही चर्चा की थी कि 15 वर्षों में आबादी को नियंत्रण में रखने के लिए क्या नीति हो. लेकिन अब सीएए-एनआरसी पर बवाल को देखते हुए सरकार इसे टालने के मूड में दिख रही है. इस बीच खबर है कि मोदी सरकार नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे छात्रों से बात करेगी. बातचीत की जिम्मेदारी मोदी सरकार में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी (Mukhtar Abbas Naqwi) को दी गई है. सूत्रों के मुताबिक, मोदी सरकार मान रही है कि कई स्टूडेंट गलत ढंग से इसमें फंस गए. इस मामले को लेकर बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा (JP Nadda) ने पार्टी नेताओं संग बैठक की. मंत्री संजीव बालियान (Sanjeev Balian) ने माना कि पार्टी को ऐसे विरोध की उम्मीद नहीं थी.
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तत्काल तीन तलाक, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने, नागरिकता संशोधन कानून बनाने, एनआरसी लाने की घोषणा करने, एनपीआर को मंजूरी देने के बाद माना जा रहा था कि मोदी सरकार बजट सत्र में जनसंख्या नियंत्रण को लेकर बिल ला सकती है. बीजेपी शुरू से ही इसे लेकर आवाज उठाती रही है. संसद में कई बार पार्टी नेता इस मुद्दे को उठा चुके हैं.
इस सिलसिले में नीति आयोग ने पिछले शुक्रवार को जनसंख्या नियंत्रण पर एक महत्वपूर्ण बैठक बुलाई थी, जिसमें जनसंख्या नियंत्रण का मसौदा तैयार किया जाएगा. बैठक में परिवार नियोजन को और प्रभावी बनाने के तौर-तरीकों पर भी विचार किया गया हालांकि आयोग ने कहा है कि गर्भ निरोधक के विकल्प को बढ़ावा देने और इस बाबत सूचनाओं को महिलाओं तक पहुंचाने पर विचार-विमर्श होगा. माना जा रहा है कि यह मसला भी आसानी से लोगों के गले नहीं उतरेगा.
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नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार के मुताबिक, यह सिर्फ एक सुझाव देने के लिए बैठक बुलाई गई थी. आयोग के मुताबिक भारत में जन्मदर तो कम हो रही है, लेकिन जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि हो रही है.
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी ने इसी साल अपने लालकिला से दिए भाषण में जनसंख्या नियंत्रण का मुद्दा प्रमुखता से उठाया था. प्रधानमंत्री ने कहा था कि भारत की जनसंख्या तकरीबन 1.37 अरब है, जो विश्व में दूसरे स्थान पर है. जाहिर है कि जनसंख्या नियंत्रण पर नीति बनाना मोदी सरकार की प्राथमिकता में है.
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NFHS यानी नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के 2015-16 के आंकड़ों के मुताबिक, जनसंख्या प्रति महिला 2.2 के करीब आ चुकी है. 2005-06 में यह 2.7 थी. यानी पहले की तुलना में अब प्रजनन दर में गिरावट आयी हैं. शहरी औरतों में यह दर 1.8 बच्चा प्रति महिला है जबकि ग्रामीण महिलाओं में 2.4. प्रजनन दर सिक्किम में सबसे कम 1.2 जबकि बिहार में सबसे ज्यादा 3.4 है. यानी बिना किसी कानून के ही शहरों में जनसंख्या नियंत्रण चल रहा है, इसकी वजह चाहे स्कूलों की फीस हो या कोई और पर 2 चाइल्ड पॉलिसी यहां तो कामयाब होने से रहा.
धर्मों के अनुसार ये आंकड़े देखें तो हिंदुओं में प्रजनन दर 2.1 है और मुस्लिमों में 2.6. अगर 1992-93 में प्रति महिला 3.8 बच्चों का औसत था. यानी करीब 30 सालों में ये संख्या करीब 1.4 कम हुई है. अच्छी बात ये है कि हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों में बच्चे पैदा करने की संख्या का अंतर घटा है.यानी दोनों ही समुदायों ने जनसंख्या नियंत्रण करने में अपना योगदान दिया है. 1992-93 में ये अंतर सबसे अधिक 33.6 फीसदी था, जो करीब 30 वर्षों में 23.8 फीसदी हो गया है.
Source : News Nation Bureau