Advertisment

नई शिक्षा नीति के मसौदे से हिंदी की अनिवार्यता हटी, 6 और 7वीं क्लास में बदल सकेंगे भाषा

दक्षिण भारत के राज्यों की नाराजगी के बाद मानव संसाधन विकास (एचआरडी) मंत्रालय ने सोमवार को राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के मसौदे से हिंदी के अनिवार्य शिक्षण को हटा दिया.

author-image
nitu pandey
एडिट
New Update
Good News: जम्मू कश्मीर के लिए आई ये अच्छी खबर, 100% फीस माफी की योजना राज्य में होगी जल्द लागू

(फोटो:पीटीआई)

Advertisment

दक्षिण भारत के राज्यों की नाराजगी के बाद मानव संसाधन विकास (एचआरडी) मंत्रालय ने सोमवार को राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के मसौदे से हिंदी के अनिवार्य शिक्षण को हटा दिया. संशोधित मसौदे में भाषाओं को अनिवार्य नहीं किया गया है, जिसे छात्र माध्यमिक स्कूल स्तर पर अध्ययन के लिए विकल्प के रूप में चुन सकते हैं. मसौदा नीति के खंड 4.5.9 में संशोधनों को किया गया है. इससे पहले इसे 'भाषाओं के पसंद में लचीलापन' शीर्षक दिया गया था.

तीन भाषा विकल्प में एक भाषा साहित्यिक स्तर पर होगी
तीन भाषाओं के अध्ययन की वकालत करते हुए संशोधित संस्करण का अब शीर्षक 'त्रिभाषा फार्मूला में लचीलापन' है और इसमें छात्र के अध्ययन वाली भाषा को सटीक तौर पर नहीं बताया गया है. यह सामान्य रूप से बताता है कि छात्र के पास तीन भाषा पढ़ने का विकल्प होगा, जिसमें से एक भाषा साहित्यिक स्तर पर होगी.

इसे भी पढ़ें: SP विधायक बोले, गठबंधन नहीं होता तो मायावती का खाता नहीं खुलत और सपा जीतती 25 सीटें

3 भाषाओं में से 1 या 2 भाषाओं में बदलाव क्लास 6 या 7 में कर सकते हैं
मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध मसौदा नीति के संशोधित संस्करण में कहा गया है, 'लचीलेपन के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए, जो छात्र तीन भाषाओं में से एक या दो में बदलाव करना चाहते हैं, वे ऐसा कक्षा 6 या 7 में कर सकते हैं'.

गैर हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी व अंग्रेजी शामिल होगी
इस बात पर ध्यान देना प्रासंगिक है कि पहले के संस्करण की सिफारिशों में कहा गया था कि छात्र तीसरी भाषा का विकल्प चुन सकते हैं, जिसे वे कक्षा 6 में पढ़ना चाहते हैं. इन दो भाषाओं में गैर हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी व अंग्रेजी शामिल होगी.

हिंदी भाषी राज्यों में आधुनिक भारतीय भाषा शामिल होगी

इससे पहले के संस्करण में कहा गया था, 'लचीलेपन के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए, जो छात्र अपनी पढ़ाई कर रहे तीन भाषाओं में से एक को बदलना चाहते हैं, वे कक्षा 6 में ऐसा कर सकते हैं. जब तक कि हिंदी भाषी राज्यों में छात्रों द्वारा तीन भाषाओं का अध्ययन हिंदी व अंग्रेजी के साथ जारी रहेगा व भारत के अन्य भाग से एक आधुनिक भारतीय भाषा होगी, जबकि गैर-हिंदी भाषी राज्यों के छात्रों के भाषा अध्ययन में क्षेत्रीय भाषा, हिंदी और अंग्रेजी शामिल होगी.'

इस अनिवार्य खंड को लेकर तमिलनाडु और कर्नाटक के राजनेताओं और नागरिकों ने नाराजगी जताई. उन्होंने मसौदा नीति में हिंदी थोपे जाने को लेकर निंदा की.

एनईपी को लेकर शुरू हुआ विवाद
एनईपी का मसौदा शुक्रवार को मंत्रालय की वेबसाइट पर अपलोड किया गया था, ताकि जनता के साथ-साथ अन्य राज्यों से भी सिफारिश प्राप्त की जा सके. इससे विवाद शुरू हो गया. द्रमुक, एमडीएमके, कांग्रेस व कमल हासन की अगुवाई वाली मक्कल निधि मैय्यम सहित तमिलनाडु की सभी विपक्षी पार्टियों ने सिफारिशों की निंदा की.

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सहयोगी व सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक ने कहा कि वह द्वि-भाषा फार्मूले को जारी रखेंगी, जो हिंदी शिक्षण को अनिवार्य नहीं बनाता.

और पढ़ें: फिर झलका महबूबा का पाक प्रेम, कश्मीर मुद्दे में पाकिस्तान एक पक्ष हैं, बातचीत में इसे शामिल किया जाए

सिद्धारमैया ने इसे क्रूर हमला बताया
कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने सोमवार को हिंदी के अनिवार्य शिक्षण को गैर हिंदी भाषी राज्यों पर 'क्रूर हमला' बताया.

रविवार को केंद्र सरकार के वरिष्ठ कैबिनेट मंत्रियों निर्मला सीतारमण और एस जयशंकर ने मामले को शांत करने का प्रयास किया. कैबिनेट मंत्रियों ने लोगों को आश्वस्त करने के लिए तमिल के साथ-साथ अंग्रेजी में ट्वीट किया कि किसी भी भाषा को लागू नहीं किया जाएगा और अन्य राज्यों के साथ परामर्श के बिना नीति को प्रभावी नहीं किया जाएगा.

Source : News Nation Bureau

Modi Government New Education Policy 2019 Education Policy Draft compulsory Hindi teaching Govt revise Education Policy
Advertisment
Advertisment