करीब 37 साल पुरानी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सर्वे-सर्वा हैं। जो कभी लाल कृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी हुआ करते थे। वाजपेयी अपनी बढ़ती उम्र के साथ एकांतवास में चले गये, वहीं आडवाणी बीजेपी में मोदी युग की शुरुआत के साथ राजनीतिक शून्य की ओर ढलने लगे।
गुजरात के गांधीनगर से सांसद आडवाणी पार्टी कार्यक्रमों की पहली पंक्ति में तो दिखते हैं लेकिन वर्चस्व में वह काफी पीछे छूट चुके हैं। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अपने राजनीतिक गुरु वाजपेयी-आडवाणी के प्रति 'व्यक्तिगत सम्मान' कभी कम नहीं दिखा।
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आज जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्मदिन है और पार्टी इसे जोर-शोर से मना रही है, तो यह जानना जरूरी है कि 'मार्गदर्शक' आडवाणी और 'राजधर्म का पाठ पढ़ाने वाले वाजपेयी के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबंधों में कितना उतार-चढ़ाव रहा है।
साल 1984 में बीजेपी की करारी शिकस्त के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की तरफ से नरेन्द्र मोदी को पार्टी में भेजा गया। आडवाणी ने गुजरात में पार्टी कार्य की जिम्मेदारी मोदी को सौंपी। उनका कद बढ़ता गया। पार्टी ने आडवाणी के राम रथयात्रा की जिम्मेदारी गुजरात में मोदी को दी।
सितंबर 1990 में आडवाणी ने राम मंदिर आंदोलन के समर्थन में अयोध्या के लिए 'रथयात्रा' शुरू की। रथयात्रा में मोदी आडवाणी की 'सारथी' की भूमिका में थे। नीचे की तस्वीर यह बताने के लिए काफी है।
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Source : Jeevan Prakash