प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के लद्दाख दौरे ने चीनी आक्रामकता के खिलाफ पलटवार करने की भारत की दृढ़ता को जहां रेखांकित किया है वहीं उन्होंने ‘विस्तारवाद’ का उल्लेख कर पड़ोसी मुल्क को एक स्पष्ट संदेश भी दिया. सामरिक मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्म चेलानी ने रविवार को यह बात कही. उन्होंने कहा कि मोदी का दौरा और उनका संबोधन जवानों का मनोबल ऊंचा करने वाला था तथा उनके द्वारा ‘विस्तारवाद’ का जिक्र करना, शी जिनपिंग के शासन वाले चीन की ‘साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा’ के खिलाफ बढ़ती अंतरराष्ट्रीय चिंता की भावना का समर्थन करता है.
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चेलानी ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘मोदी के लद्दाख के अग्रिम मोर्चे के दौरे ने चीनी आक्रामकता और उसके अतिक्रमण के खिलाफ पलटवार करने की भारत की दृढ़ता को रेखांकित किया है.’ उन्होंने कहा, ‘हिमालयी क्षेत्र में चल रही तनातनी और चीन के अतिक्रमण को कई हफ्ते तक कम करके बताने का संगठित सरकारी प्रयास हुआ. लेकिन मोदी के इस दौरे ने युद्ध जैसी स्थिति का सामना कर रहे भारत के लिए सबका ध्यान खींचने में मदद की.’ चेलानी ने कहा कि कोविड-19 संकट के दौरान जहां सारा विश्व इस महामारी से लड़ रहा था वहीं चीन ने इसका फायदा उठाने का प्रयास किया और उसके एक साथ कई मोर्चे खोल दिए.
उन्होंने कहा कि चीन ने हांग कांग की स्वायत्तता को लेकर अपनी बाध्यकारी प्रतिबद्धता को किनारे लगा दिया, जापान द्वारा नियंत्रित सेनकाकू द्वीप पर कब्जे की कोशिश की और इधर भारतीय क्षेत्र में अतिक्रमण. उन्होंने कहा, ‘शी सीमाओं के विस्तार में लग गए हैं. उनके इन क्रियाकलापों ने कोरोना के वैश्विक फैलाव को लेकर घिरे चीन से दुनिया का ध्यान हटाकर चीन के अधिनायकवादी रूख के कारण पैदा हुए अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी खतरे की ओर करने में मदद की है.’
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चेलानी ने कहा, ‘शी की महत्वाकांक्षा के चलते कुछ लोग उनकी तुलना आधुनिक इतिहास के अन्य साम्राज्यवादी तानाशाहों से करने लगे हैं. अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रॉबर्ट ओ ब्रायन ने हाल ही में कहा कि शी खुद को जोसेफ स्टालीन के उत्तराधिकारी के रूप में देख रहे हैं.’ उन्होंने कहा, ‘कुछ ने उनकी तुलना एडॉल्फ हिटलर तक से कर डाली. शी के शासन वाले चीन के शिंजियांग में मुसलमानों के साथ वही हो रहा है, जैसा नाजियों ने यहूदियों के साथ किया था. वास्तव में शी का सोशल मीडिया पर उपनाम ‘शीटलर’ हो गया है.’
नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में सामरिक विषयों के प्रोफेसर चेलानी ने कहा कि प्रधानमंत्री ने चीन का नाम लिए बगैर ही उसे स्पष्ट संदेश दे दिया. यह उनके भाषण पर चीन की प्रतिक्रिया से ही विदित है. उन्होंने कहा, ‘यदि किसी देश का नाम लिए बगैर उस तक संदेश पहुंचाया जा सकता है तो फिर उसका नाम लिए जाने की आवश्यता ही क्या है.’ चेलानी ने कहा कि लद्दाख के दौरे से दो हफ्ते पूर्व हालांकि प्रधानमंत्री ने सर्वदलीय बैठक में अपने संबोधन से भ्रामक स्थिति पैदा कर दी थी लेकिन लद्दाख जाकर उन्होंने अपनी इस गलती में सुधार किया.
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भारत, चीन की सेनाओं के बीच लद्दाख के सीमावर्ती क्षेत्रों में चल रहे तनाव के बीच प्रधानमंत्री ने शुक्रवार को अचानक लेह का दौरा किया और चीन को स्पष्ट संदेश देते हुए उन्होंने कहा कि ‘विस्तारवाद’ का युग समाप्त हो चुका है तथा पूरे विश्व ने इसके खिलाफ मन बना लिया है. उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय सेना ने शत्रुओं को जो पराक्रम और ‘प्रचंडता’ दिखायी, उससे दुनिया को देश की ताकत का संदेश मिल गया. गलवान घाटी में पिछले दिनों हुई हिंसक झड़प में 20 भारतीय सैनिकों की शहादत के बाद से दोनों मुल्कों के बीच सीमा पर गतिरोध बरकरार है. इस हिंसक झड़प में चीनी सैनिक भी हताहत हुए हैं लेकिन चीन ने अभी तक इस बारे में विस्तृत जानकारी नहीं दी है. इस घटना के बाद से भारत क्षेत्र में शांति के लिए यथास्थिति बनाए जाने को लेकर अडिग है.
भारत द्वारा हाल ही में 59 चीनी ऐप पर प्रतिबंध सहित कुछ अन्य व्यापारिक प्रतिबंध लगाए जाने संबंधी फैसलों के बारे में पूछे जाने पर चेलानी ने बताया कि भारत को चीन की आक्रामकता का हर मोर्चे पर जवाब देना चाहिए, चाहे वह आर्थिक हो या कूटनीतिक. उन्होंने कहा, ‘भारत को चीन के खिलाफ वैश्विक स्तर पर कूटनीतिक आक्रामकता दिखानी चाहिए. दुर्भाग्यवश, हांगकांग के मुद्दे पर भारत की ओर से दिया गया बयान बेहद कमजोर रहा.’ उन्होंने कहा कि चीन ने निवेश की बजाय अपने सामान को भारत में खपाने को ज्यादा तवज्जो दी. भारत के नीति निर्धारकों को यह बात कब समझ आएगी कि चीन को भारत की अत्यधिक जरूरत है, न कि भारत को चीन की.
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यह पूछे जाने पर कि क्या भारत को अमेरिका सहित अन्य सहयोगी देशों पर निर्भर रहना चाहिए, चेलानी ने कहा कि भारत पश्चिम के देशों से कूटनीतिक समर्थन की उम्मीद तो कर सकता है लेकिन सैन्य समर्थन की नहीं. उन्होंने कहा, ‘भारत और अमेरिका सामरिक साझेदार हैं, न कि सैन्य साझेदार. अमेरिका से भारत की सैन्य साझेदारी होती भी है तो इससे बहुत अंतर नहीं पड़ने वाला है. साल 2012 में जब चीन ने फिलीपीन से स्कारबोरो शोल छीना था तब अमेरिका ने कुछ नहीं किया जबकि दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग संबंधी समझौता है.’ मौजूदा संकट को खत्म करने के विकल्पों के बारे में पूछे जाने पर चेलानी ने कहा कि चीन ने छल-कपट से अतिक्रमण करते हुए लद्दाख में यथास्थिति को बदल दिया है. भारत चाहता है कि यथास्थिति बरकरार रहे.
उन्होंने कहा, ‘इस बात की कम ही संभावना है कि चीन शांतिपूर्वक पीछे हटे.’ उन्होंने कहा कि इस पृष्ठभूमि में भारत को ऐसे उपाय करने चाहिए कि चीन को उसकी आक्रामकता भारी पड़े. इसके लिए भारत को उसे आर्थिक और कूटनीतिक मोर्चे पर घेरना होगा. उन्होंने कहा, ‘चीनी आक्रामकता की ओर दुनिया का ध्यान केंद्रित रखने के लिए भारत को इस सैन्य गतिरोध को लंबा खींचना चाहिए. साथ ही भारत को अपनी ‘वन-चाइना’ नीति समाप्त करनी चाहिए.'
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