संसद का माॅनसून सत्र खत्म हो गया। पिछले 18 दिनों से चल रहे इस सत्र में एकजुट सरकार और बिखरे विपक्ष के बीच जबरदस्त नूरा-कुश्ती देखने को मिली। इस नूरा-कुश्ती में हर बार विपक्ष को मुंह की खानी पड़ी। कारण ये सभी दल आपस में वैचारिक तौर पर एक जुट नहीं हो पा रहे थे। पूरी तरह से चुनावी मोड में आ चुकी नरेंद्र मोदी की सरकार ने अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान ही दिखा दिया था कि चाहे गेम कोई भी हो बाजी उसी की हाथ लगेगी। सत्र शुरू होने के तीसरे दिन अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा और वोटिंग के दौरान मोदी सरकार ने यह दिखा दिया कि खेल में चाहे जितना मजबूत हों लेकिन दांव चलने से नहीं पीछे हटते और अपने चिर-परिचित अंदाज में 126 के मुकाबले 325 वोटों से विपक्षी दलों को धो डाला।
जहां विपक्ष दल लगातार एकजुटता का दंभ भर रहे थे लेकिन सत्र के दौरान उनके इस दावे की भी हवा निकल गई। पूरे सत्र के दौरान वह मोदी सरकार के सामने असहाय सा दिखा। सत्र के शुरुआती दिनों में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान जीत हासिल कर लोकसभा में पटखनी दी तो सत्रावसान के एक दिन पहले अपने गठबंधन के उम्मीदवार को राज्यसभा में उपसभापति बनाकर दिखा दिया कि खेल चाहे जो भी हो विरोधी दल को पटखनी देना और हर चाल को चलने के बाद जीत हासिल करना उसे आता है।
विपक्ष में एकजुटता की कमी दिखी जिसका फायदा पीएम मोदी और उनके गठबंधन के नेताओं ने जमकर उठाया। राज्यसभा के उपसभापति चुनाव में भी विपक्ष को करारी हार देखने को मिली। बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह ने गठबंधन से बाहर के दलों का भी समर्थन लेने में कामयाब रहे।
अमित शाह और कई शीर्ष नेताओं ने राजनीति की बिसात पर ऐसी चाल चली की मोदी सकरार से नाराज चल रही शिवसेना और बीजेपी की विरोधी पार्टी बीजू जनता दल के सासंदों ने भी एनडीए के उम्मीदवार हरिवंश को अपना कीमती वोट दिया और वह 20 वोट से जीतने में कामयाब रहे।
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विपक्षी सांसदों के बीच संवादहीनता भी देखने को मिली। एक तरफ जब खुद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने गठबंधन के सहयोगियों दलों के शीर्ष नेताओं से बात करके उनका समर्थन मांगा तो दूसरी तरफ इस खेल में भी कांग्रेस पिछड़ गई। यही कारण रहा कि राज्यसभा में बहुमत न होने के बाद भी बीजेपी ने अपने घोषित उम्मीदवार को जिताने में कामयाब रही लेकिन विपक्ष सरकार के सामने सदन में चित हो गई।
सत्र के शुरुआती दिनों में विपक्षी दलों के बीच जितना जोश-खरोश दिखा अंत होते होते वह आपस में ही उलझ कर रह गई। सभी विपक्षी दल किसी एक मुद्दे को लेकर न तो सरकार को घेर सके और नहीं एक छतरी के नीचे खड़े हो सके जिससे कि जनता के बीच यह संदेश जाए कि 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी को विपक्षी दल कड़ी टक्कर दे सकते हैं। सदन में इस दो जीत के सहारे मोदी सरकार भुनाएगी और लोगों के पास यह बताएगी कि विपक्ष बिखरा हुआ है। चुनावी मोड में आई सरकार लोगों के बीच अपनी इस जीत को भुनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेगी।
इन दो जीतों के अलावा मोदी सरकार कई अन्य मुद्दों पर बढ़त लेने में कामयब रही। सरकार अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) के लिए राष्ट्रीय आयोग को संवैधानिक दर्जा देने से संबंधित बिल और एससी एसटी संशोधन विधेयक को आसानी से पास कराने में सफल रही। वहीं तीन तलाक बिल पर सरकार ने लीड लेकर कांग्रेस को पीछे छोड़ दिया।
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मॉनसून सत्र जब शुरू हुआ था तब विपक्षी दलों के तेवर को देखते हुए लग रहा था कि इस सत्र में भी कामकाज नहीं हो पाएगा और हंगामे की भेंट चढ़ जाएगा। विपक्ष मॉब लिंचिंग (भीड़ की हिंसा), किसान आत्महत्या, किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य, युवाओं के लिए रोजगार और आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा जैसे कई मुद्दों पर विपक्षी दल एक छतरी के नीचे आकर सरकार को घेरेगी। लेकिन मोदी-शाह के फ्लोर मैनेजमेंट के सामने किसी की भी नहीं चली और सभी के वजीर खड़े के खड़े रह गए और सरकार ने बिखरे विपक्ष के सामने जमकर हर मुद्दों को भुनाया।
औंधे मुंह गिरा विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव
सत्र के शुरुआत में ही विपक्षी दलों ने सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया जिसे स्पीकर सुमित्रा महाजन ने स्वीकर कर लिया। जब चर्चा की बारी आई तो सबसे पहले विपक्षी दल बीजेडी के सासंद फ्लोर से बाहर निकल गए। उसी समय दिख गया कि विपक्षी एकता सिर्फ मौखिक है। चर्चा के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कई मुद्दों पर सदन के अंदर मोदी सरकार को तो घेरा लेकिन सदन के बाहर कोई विशेष लाभ नहीं उठा पाए। राहुल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर राफेल डील को लेकर झूठ बोलने का आरोप लगाया। मॉब लिंचिंग पर आड़े हाथों लिया लेकिन पीएम मोदी अपने चिरपरिचित अंदाज में जवाब देते हुए सभी विपक्षी दलों की हवा निकाल दी और अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग के दौरान विपक्ष दो गुणा से भी ज्यादा मत से पीछे रह गया। विपक्षी दल जहां 126 मत जुटाते जुटाते हांफने लगे तो वहीं एनडीए 325 के आंकड़े तक पहुंच गई।
बिना बहुमत के उपसभापति जिताने में कामयाब हुई बीजेपी
सत्रावसान के एक दिन पहले मोदी सरकार ने एक और जीत राज्य सभा में दर्ज की जब एनडीए ने अपने उम्मीदवार हरिवंश को 20 वोटों से जिताने में कामयाब हो गई यह जीत इसलिए और ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि उपरी सदन में एनडीए के पास बहुमत नहीं है। हालांकि बीजेपी के रणनीतिकार अमित शाह ने वोटिंग से पहले हर चाल को चलकर जीत सुनिश्चित कर ली थी। यही कारण है कि पिछले एक साल से ज्यादा समय से बीजेपी से नाराज चल रही शिवसेना ने एनडीए के उम्मीदवार के पक्ष में वोट डाला। वहीं बीजेपी की धुर विरोधी रही नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी ने भी एनडीए के उम्मीदवार को अपना समर्थन दिया।
ट्रिपल तलाक पर सांकेतिक बढ़त
लोकसभा में भारी बहुमत के साथ ट्रिपल तलाक बिल को पास करवाने के बाद राज्यसभा में संशोधन के साथ बीजेपी इस बिल को पेश करना चाह रही थी लेकिन आपसी सहमति न बन पाने के कारण इस बिल को पेश नहीं किया जा सका। सरकार इसका दोष भी कांग्रेस पर मढ़ेगी और लोगों के बीच घूम-घूमकर प्रचार करेगी कि कांग्रेस ने इस बिल को पास नहीं होने दिया।
एनआरसी विवादः फ्रंट फुट पर खेली बीजेपी
मॉनसून सत्र में असम राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का मुद्दा भी छाया रहा। एनआरसी (NRC) के कारण राज्य सभा की कार्यवाही तीन दिनों तक पूरी तरह ठप रही तो लोकसभा भी हंगामे के कारण बाधित रहा। इस मुद्दे पर भी सरकार ने लीड ले ली। एक तरफ जहां विपक्षी दल तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस सरकार को घेरना चाह रही थी तो दूसरी तरफ सत्तारूढ़ बीजेपी काफी आक्रामक दिखी। इस मुद्दे पर सरकार को घिरता देख खुद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने मोर्चा संभाला और कहा कि एक भी घुसपैठिये को देश में नहीं रहने दिया जाएगा।
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हालांकि बाद में सरकार ने भी थोड़ा नरम रुख अपनाया और गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने राज्यसभा में बयान देते हुए कहा कि किसी के साथ नाइंसाफी नहीं होगी। सभी लोगों को नागरिकता साबित करने का मौके दिया जाएगा।
एससी/एसटी बिल पर विपक्षी दलों को दिया मात
देश भर में जारी विरोध प्रदर्शन के बाद मोदी सरकार एससी/एसटी एक्ट के मुद्दे पर बैकफुट पर आई तो मॉनसून सत्र में संशोधन विधेयक को पास करवाने में सफल रही। दरअसल, विपक्षी दलों इस मामले को लेकर सरकार को घेर रहे थे कि एससी/एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर मोदी सरकार सुस्त है कोर्ट के इस फैसले से दलितों पर अत्याचार बढ़ेगा। सरकार भी ताक में थी कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे तो सत्र के दौरान इसमें संशोधन पेश कर दिया। मोदी सरकार ने संशोधन के जरिए कोर्ट का फैसला पलटकर बाजी को अपने पक्ष में कर लिया।
ओबीसी बिल पर विपक्षियों की निकाली हवा
मानसून सत्र में संसद के दौनों सदन से राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग से जुड़े संविधान (123वां संशोधन) विधेयक को भी मंजूरी मिली। इस बिल के मुताबिक अनुसूचित जाति (एससी) की सूची केंद्र और राज्यों के लिए समान है। हालांकि केंद्र ने साफ कर दिया कि राज्य के लिए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की अपनी अलग सूचियां हो सकती हैं। अगर कोई राज्य केंद्रीय ओबीसी सूची में किसी भी जाति को शामिल कराना चाहता है तो उसे एनसीबीसी को बताना होगा, उचित प्रक्रिया का पालन करने के बाद उस जाति को इस सूचि में शामिल किया जा सकता है।
मोदी सरकार ने अपने कई अहम फैसले और संसद में दो जीत के साथ दिखा दिया कि विपक्षी दलों के धागे एक दूसरे से जुड़े हुए नहीं है लेकिन सरकार पूरी तरह से मजबूत है। मॉनसून सत्र के सत्रवसान से पहले एक के बाद एक मुद्दे पर लीड लेकर न सिर्फ बीजेपी बहुत आगे निकल चुकी है बल्कि कांग्रेस को इतना पीछे छोड़ दी है कि वह रेस में दिखाई भी नहीं दे रही है। लेकिन असली रेस तो 2019 में होगी किसके कितने सासंद सदन में पहुंचते हैं। क्योंकि लोकतंत्र में कामकाज का रिपोर्ट भले आप सौंप लें लेकिन मार्किंग तो जनता ही करती है।
Source : Abhiranjan kumar