उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मुग़ल बादशाह अकबर और 16 वीं सदी में मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप की तुलना करते हुए कहा कि अकबर नहीं महाराणा प्रताप महान थे।
उन्होंने कहा कि महाराणा ने उस वक्त की सबसे बड़ी सैन्य ताकत के सामने जिस शौर्य और पराक्रम का परिचय दिया था, उसका उदाहरण बिरले ही मिलता है।
मुख्यमंत्री ने महाराणा प्रताप की जयन्ती पर गुरुवार को आयोजित एक कार्यक्रम में कहा 'हल्दीघाटी के युद्ध में कौन जीता, कौन हारा यह महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि अपनी सेना के साथ उस समय की सबसे बड़ी ताकत के सामने जूझते हुए महाराणा प्रताप ने जिस शौर्य और पराक्रम का परिचय दिया था, इतिहास में इस प्रकार के उदाहरण बिरले ही मिलते हैं।'
उन्होंने महाराण प्रताप की प्रशंसा करते हुए कहा, "अकबर ने महाराणा प्रताप को अपनी 'बादशाहत' क़बूल करने का प्रस्ताव देते हुए कहा कि अगर तुम मुझे बादशाह मान लो तो मैं तुम्हारे क्षेत्र मेवाड़ को छोड़ दूंगा। जिसके जवाब में महाराणा प्रताप ने कहा कि मैं एक 'विधर्मी' और 'विदेशी' को अपने शासक के तौर पर स्वीकार नहीं कर सकता।'
योगी ने कहा, 'इस प्रसंग से पता चलता है कि अकबर नहीं महाराणा प्रताप महान थे जो लंबे समय तक युद्ध लड़कर भी अपना क़िला वापस लिया था।'
सीएम योगी ने 1576 के ऐतिहासिक हल्दीघाटी युद्ध का हावाला देते हुए कहा, 'यह महत्वपूर्ण नहीं है कि युद्ध कौन जीता और कौन हारा। महत्वपूर्ण यह है कि महाराणा प्रताप अपने स्वभिमान के साथ अरावली के पर्वतों में कई सालों तक युद्ध करते रहे और वापस अपना क़िला जीता।'
उन्होंने कहा कि प्रताप ने बहादुरी का उदाहरण पेश किया और दस सालों तक संघर्ष करते रहे। इससे साबित होता है कि अकबर नहीं महाराण प्रताप महान थे।
उन्होंने मान सिंह जैसे राजा का उदाहरण देते हुए कहा कि उस वक़्त कुछ ऐसे भी राजा हुए जिन्होंने अपने आत्मसम्मान को खोकर अकबर की बादशाहत क़ुबूल कर ली।
उन्होंने आज के संदर्भ में इस घटनाक्रम को जोड़ते हुए कहा कि महाराणा प्रताप से वर्तमान में भी सीख ली जा सकती है। कुछ लोग अपने फ़ायदे के लिए समाज, देश और संस्कृति के साथ खिलवाड़ करने को तैयार हैं। लेकिन हालात अगर ऐसे ही रहे तो उन्हें भी नुकसान झेलना होगा।'
योगी ने कहा, 'जरा सोचिये अगर महाराणा प्रताप ने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली होती तो क्या आज हम मेवाड़ के उस राजवंश को राष्ट्रीय स्वाभिमान के प्रतीक के रूप में इस तरह का सम्मान देते। वही बात आज के परिप्रेक्ष्य में हम सब पर भी लागू होती है। जब हम अपने उस तनिक से स्वार्थ के लिये अपने समाज, अपने धर्म, अपनी संस्कृति और अपने राष्ट्र के साथ कभी-कभी इस प्रकार की छेड़छाड़ करने लगते हैं, जिससे अपूरणीय क्षति की सम्भावना बनी रहती है।'
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क्या है इतिहास
बता दें कि 18 जून, 1576 ई. में मुग़ल बादशाह अकबर और महाराणा प्रताप के बीच हल्दीघाटी का युद्ध लड़ा गया था। अकबर ने मेवाड़ को पूरी तरह से जीतने के लिए आमेर के राजा मानसिंह एवं आसफ ख़ां के नेतृत्व में मुग़ल सेना को आक्रमण के लिए भेजा।
दोनों सेनाओं के मध्य गोगुडा के निकट अरावली पहाड़ी की हल्दीघाटी शाखा के मध्य युद्ध हुआ। इस युद्ध में राणा प्रताप पराजित हुए।
लड़ाई के दौरान अकबर ने कुम्भलमेर दुर्ग से महाराणा प्रताप को खदेड़ दिया तथा मेवाड़ पर अनेक आक्रमण करवाये, किंतु प्रताप ने अधीनता स्वीकार नहीं की।
खुला युद्ध समाप्त हो गया था, किंतु संघर्ष समाप्त नहीं हुआ था। भविष्य में संघर्षो को अंजाम देने के लिए प्रताप एवं उसकी सेना युद्ध स्थल से हट कर पहाड़ी प्रदेश में आ गयी थी।
इसलिए ऐसा भी कहा जाता है कि इस युद्ध में न तो अकबर जीत सका और न ही राणा हारे।
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Source : News Nation Bureau