राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने हाल ही में एक साक्षात्कार में कहा कि आज भारत में रहने वाले मुसलमानों को कोई नुकसान नहीं है, लेकिन मुसलमानों को वर्चस्व की अपनी बड़बोली बयानबाजी छोड़ देनी चाहिए।
आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइजर के साथ एक लंबे साक्षात्कार में भागवत ने कई मुद्दों पर विस्तार से बात की, जिसमें यह भी शामिल है कि हिंदू समाज अपनी आस्था, विश्वास और मूल्यों को लेकर अधिक आक्रामक क्यों होता जा रहा है।
उन्होंने कहा कि हिंदुओं में नई आक्रामकता इस वास्तविकता के प्रति उनकी जागृति का परिणाम है कि वे एक हजार वर्षो से अधिक समय से युद्ध लड़ रहे हैं।
भागवत ने कहा, सरल सत्य यह है कि यह हिंदुस्थान है और इसे हिंदुस्थान रहना चाहिए। भारत में आज रहने वाले मुसलमानों को कोई नुकसान नहीं है। यदि वे अपने विश्वास पर टिके रहना चाहते हैं और अपने पूर्वजों के विश्वास पर लौटना चाहते हैं, तो वे ऐसा कर सकते हैं। यह पूरी तरह से उनकी पसंद है।
उन्होंने आगे कहा कि हिंदुओं में इस तरह की हठधर्मिता नहीं है।
भागवत ने कहा, मुसलमानों को डरने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन साथ ही, उन्हें वर्चस्व की अपनी बड़बोली बयानबाजी छोड़ देनी चाहिए। उन्हें इस आख्यान (नैरेटिव) को छोड़ देना चाहिए कि हम उच्च जाति के हैं, हमने एक बार इस भूमि पर शासन किया था और फिर से इस पर शासन करेंगे, केवल हमारा मार्ग सही है, बाकी सभी का गलत है, हम अलग हैं, इसलिए हम ऐसे ही रहेंगे। वास्तव में, यहां रहने वाले सभी लोग - चाहे हिंदू हों या कम्युनिस्ट, उन्हें यह तर्क छोड़ देना चाहिए।
भागवत ने कहा, हिंदू समाज, हिंदू धर्म और हिंदू संस्कृति के बारे में बात करते हुए जो लोग युद्ध कर रहे हैं, उनका आक्रामक होना स्वाभाविक है। हिंदू समाज 1,000 से अधिक वर्षो से युद्ध में रहा है - यह लड़ाई विदेशी आक्रमणों, विदेशी प्रभावों और विदेशी षड्यंत्र के खिलाफ चल रही है। संघ ने इसी कारण इन्हें अपना समर्थन दिया है, अन्य लोगों ने भी दिया है। कई लोगों ने इसके बारे में बात की है और इन सबके कारण ही हिंदू समाज जाग्रत हुआ है। लोगों के लिए युद्ध करना स्वाभाविक ही है कि आक्रामक हो।
आरएसएस प्रमुख इस मुद्दे पर आगे ने कहा, इसलिए हिंदू समाज हिंदू धर्म और हिंदू संस्कृति की रक्षा के लिए युद्ध लड़ रहा है। विदेशी आक्रमणकारी अब नहीं रहे, लेकिन विदेशी प्रभाव और विदेशी साजिशें जारी हैं। चूंकि यह एक युद्ध है, लोगों के अति उत्साही होने की संभावना है। हालांकि यह वांछनीय नहीं है, फिर भी भड़काऊ बयान दिए जाएंगे।
भागवत ने यह भी कहा कि लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर (एलजीबीटी) लोगों को जीने का अधिकार है और वे सामाजिक स्वीकार्यता के हकदार हैं।
भागवत ने कहा, यह जैविक है, जीवन का एक तरीका है। अब इस मुद्दे पर बहुत हंगामा हो रहा है, लेकिन हमें इसे भी स्वीकार करना होगा। हम चाहते हैं कि उनका अपना निजी स्थान हो और यह महसूस हो कि वे भी समाज का हिस्सा हैं।
एलजीबीटी मुद्दा कोई नया नहीं है, वे हमेशा से रहे हैं। इन लोगों को भी जीने का अधिकार है। बिना ज्यादा हो-हल्ला किए हमने उन्हें सामाजिक स्वीकृति प्रदान करने के लिए मानवीय दृष्टिकोण के साथ एक रास्ता खोज लिया है, यह ध्यान में रखते हुए कि वे मनुष्य भी हैं, जिनके पास जीने का अहस्तांतरणीय अधिकार है।
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Source : IANS