वकालत के लगभग 70 साल के सक्रिय कैरियर में दिग्गज वकील राम जेठमलानी ने ऐसे अनेक मुकदमे लड़े जिन्होंने न सिर्फ उन्हें मीडिया की सुर्खियां बख्शीं, बल्कि उनका नाम लोगों की जबान पर भी ला दिया. उनके क्लाइंट्स की सूची में स्टॉक ब्रोकर हर्षद मेहता से लेकर हवाला मामले में फंसे लाल कृष्ण आडवाणी तक शामिल रहे. कह सकते हैं कि जेठमलानी ने अपने कैरियर में कई हाई-प्रोफाइल मुकदमें लड़े. हालिया मुकदमा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से जुड़ा मानहानि का मुकदमा था, जो उन पर तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने दायर किया था.
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1959 के नानावटी केस ने बख्शी सुर्खियां
यह अलग बात है कि उन्हें मीडिया की सुर्खियों में ला देने वाला मामला था 1959 का नानावटी केस. यह वह हाई प्रोफाइल मामला था, जिसके सामने आते ही हर आम और खास की नेवी कमांडर कवास मानेकशॉ नानावटी मामले में दिलचस्पी पैदा हो गई थी. नानावटी पर आरोप था कि उन्होंने अपनी अंग्रेज पत्नी सिल्विया के कथित आशिक प्रेम आहूजा के बेडरूम में घुसकर उसे गोली मार दी थी. इसके बाद बॉम्बे के पुलिस स्टेशन में जाकर आत्मसमर्पण कर दिया था. नानावटी पर धारा 302 के तहत ज्यूरी ट्रायल शुरू किया गया था. भारत में अपने किस्म के ट्रायल का यह आखिरी मामला था.
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पारसी और सिंधी समुदाय की अहं की लड़ाई
नानावटी के बचाव पक्ष ने नेवी कमांडर को देशसेवा में तत्पर सिद्धांतों पर चलने वाले आदर्श अधिकारी के तौर पर प्रस्तुत किया था, जबकि आहूजा को अनैतिक अय्याश शख्स के तौर पर, जिसने नानावटी की 'अकेली' पत्नी को 'फंसा' लिया था. एक तरफ प्रेम और सम्मान की जंग अदालत में लड़ी जा रही थी. दूसरी तरफ अदालत के बाहर पारसी और सिंधी समुदाय इस मामले को अपने हिसाब से अलग-अलग रंग दे रहे थे. यह अलग बात है कि आम जनमानस के मन में कमांडर के प्रति सहानुभूति पैदा हो गई थी, जिसने अपनी पत्नी के सम्मान की रक्षा का प्रयास किया. बचाव पक्ष ने अदालत में दलील रखी थी कि हत्यारोपी नानावटी आहूजा के घर यह पूछने गया था कि यदि वह अपनी पत्नी को तलाक दे दे, तो क्या आहूजा उससे शादी करेगा?
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प्रेम आहूजा की बहन ने ली थीं सेवाएं
इस मामले का सबसे रोचक पहलू यह था कि राम जेठमलानी बचाव या अभियोजन पक्ष में से किसी भी तरफ के वकील नहीं थे. हालांकि वह उस लीगल टीम का हिस्सा थे, जिसकी आहूजा की बहन मैमी ने अपने भाई के हत्यारों को उसके अंजाम तक पहुंचाने के लिए सेवाएं ली थीं. यह अलग बात है कि इस मामले से जुड़ाव ने राम जेठमलानी को विभाजन के बाद कराची से बॉम्बे शिफ्ट करने को प्रेरित किया.
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हाई कोर्ट ने दिया आजीवन कारावास, गवर्नर ने किया 'माफ'
11 मार्च 1960 में हाई कोर्ट ने नानावटी को दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. हालांकि इस आदेश के चंद घंटों में ही बॉम्बे के गवर्नर ने अप्रत्याशित कदम उठाते हुए नानावटी की आजीवन कारावास की सजा सशर्त माफ कर दी, जब तक सुप्रीम कोर्ट बचाव पक्ष की अपील का निस्तारण नहीं कर देता. उसी साल सितंबर में सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में साफ कहा कि गवर्नर ने अपनी 'शक्तियों' की हदें पार कर दी है. सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के तीन दिन बाद ही नानावटी को जेल भेज दिया गया. 1963 में स्वास्थ्य कारणों से नानावटी को पेरोल मिल गया और वह हिल रिसॉर्ट चले गए.
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1964 में गवर्नर ने फिर की सजा माफ
1964 में बॉम्बे की नई गवर्नर और जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित ने नानावटी की सजा माफ कर दी. इसके बाद 1968 में नानावटी और उनकी पत्नी सिल्विया अपने तीन बच्चों के साथ कनाडा चले गए ताकि इस मामले की छाया भी उनके बच्चों पर नहीं पड़े. 2003 में नानावटी की मौत हो गई. इस सनसनीखेज मामले पर कई किताबें लिखी गईं और फिल्में भी बनीं. हालिया प्रदर्शित फिल्म अक्षय कुमार की 'रुस्तम' थी, जो 2016 में प्रदर्शित हुई थी.
HIGHLIGHTS
- राम जेठमलानी को मीडिया की सुर्खियों में ला देने वाला पहला मामला था 1959 का नानावटी केस.
- इसके बाद हुए विभाजन में राम जेठमलानी कराची से बॉम्बे में आकर बस गए.
- नानावटी मामले पर ही फिल्म बनी थी 'रुस्तम', जो 2016 में प्रदर्शित हुई.