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Rafale Deal : जेपीसी जांच नहीं कराने के पीछे मोदी सरकार का छुपा है एक 'डर', जानें क्या है वो

विधानसभा चुनावों (Assembly Elections) से पहले राफेल पर उठा शोर थमने का नाम नहीं ले रहा है.

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Sunil Mishra
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Rafale Deal : जेपीसी जांच नहीं कराने के पीछे मोदी सरकार का छुपा है एक 'डर', जानें क्या है वो

संसद भवन (प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर)

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विधानसभा चुनावों (Assembly Elections) से पहले राफेल पर उठा शोर थमने का नाम नहीं ले रहा है. मानसून सत्र के बाद शीत सत्र में भी राफेल (Rafale) पर बहस हुई. विपक्ष के सवालों का जवाब देने के लिए सरकार की ओर से वित्‍त मंत्री अरुण जेटली (Arun Jaitley) और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन (Nirmala Sitharaman) ने मोर्चा संभाला. लोकसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने एकबार फिर इस डील की जांच के लिए जेपीसी (JPC) के गठन की मांग की. वहीं सरकार जेपीसी (संयुक्‍त संसदीय समिति Joint Parliamentary Committee) की जांच से इन्‍कार कर रही है. दरअसल जेपीसी जांच के साथ एक संयोग जुड़ा हुआ है, शायद सरकार इसलिए इससे बच रही है.

देश के इतिहास में अब तक छह बार जेपीसी का गठन हो चुका है. संयोग यह है कि जिस भी सरकार ने जेपीसी की जांच गठित की, वह सत्‍ता में वापसी नहीं कर पाई. बोफोर्स तोप सौदे की जांच को लेकर पहली बार जेपीसी गठित की गई थी. उसके बाद कांग्रेस (Congress) सत्‍ता से बेदखल हो गई. 

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बोफोर्स सौदे की जांच के लिए बनी थी पहली जेपीसी
बोफोर्स तोप सौदे में दलाली के आरोपों की जांच के लिए अगस्त 1987 में पहली जेपीसी गठित की गई थी. राजीव गांधी सरकार में रक्षा मंत्री केसी पंत ने लोकसभा में 6 अगस्त 1987 को जेपीसी का प्रस्ताव दिया. 12 अगस्त को राज्यसभा में भी इस पर मुहर लगी. उसके बाद सरकार ने कांग्रेस नेता बी शंकरानंद की अध्‍यक्षता में जेपीसी गठित की थी. उस जेपीसी में लोकसभा के 20 और राज्यसभा के 10 सदस्‍य थे. 50 बैठकों में जांच के बाद जेपीसी ने 26 अप्रैल 1988 को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. जेपीसी ने रिपोर्ट में कांग्रेस सरकार को क्लीन चिट दे दी थी, लेकिन उसके बाद हुए चुनावों में कांग्रेस को सत्‍ता से बेदखल होना पड़ा था.

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शेयर मार्केट घोटाले पर बनी थी दूसरी जेपीसी
शेयर मार्केट घोटाले को लेकर संसद में खूब शोर शराबा हुआ था. घोटाले के मास्टरमाइंड हर्षद मेहता ने यह कहकर सनसनी मचा दी थी कि मामले से बच निकले के लिए उसने तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव को पार्टी फंड के नाम पर एक करोड़ रुपए की घूस दी थी. इस मामले की जांच के लिए 1992 में दूसरी बार जेपीसी गठित की गई. कांग्रेस नेता रामनिवास मिर्धा को उसका चेयरमैन बनाया गया. 6 अगस्त 1992 को कांग्रेस सरकार के संसदीय कार्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने लोकसभा में जेपीसी को लेकर प्रस्ताव रखा था. इसके अगले दिन राज्यसभा ने भी इस प्रस्ताव पर मुहर लगा दी. हर्षद मेहता ने किन लोगों की मदद से शेयर मार्केट से लेकर बैंकिंग ट्रांजेक्शन में हेरफेर की, इसकी जांच जेपीसी को करनी थी. हालांकि जेपीसी की रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया गया. इस मामले में जेपीसी के दिए प्रस्तावों को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. हालांकि कांग्रेस सरकार को एक बार फिर सत्‍ता से बेदखल होना पड़ा था.

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2001 में दूसरे शेयर मार्केट घोटाले की जांच के लिए भी जेपीसी
अप्रैल 2001 के केतन पारेख शेयर मार्केट घोटाले में तीसरी जेपीसी गठित हुई थी. तब वाजपेयी सरकार में संसदीय कार्यमंत्री रहे प्रमोद महाजन ने 26 अप्रैल 2001 को लोकसभा में जेपीसी का प्रस्ताव दिया था. बीजेपी के वरिष्‍ठ नेता प्रकाश मणि त्रिपाठी जेपीसी के चेयरमैन बने थे. 105 बार की बैठक के बाद जेपीसी ने 19 दिसंबर 2002 को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी. जेपीसी ने शेयर मार्केट के नियम कायदों में बदलाव के कई प्रस्ताव दिए. बाद में जेपीसी के कई प्रस्तावों में बदलाव करके नरम कर दिए गए.

सॉफ्ट ड्रिंक्स में पेस्टीसाइड को लेकर चौथी जेपीसी
वाजपेयी सरकार में ही 2003 में सॉफ्ट ड्रिंक्स में पेस्टीसाइड मिले होने के मामले की जांच के लिए जेपीसी गठित की गई थी. उस वक्त पहली बार खुलासा हुआ था कि सॉफ्ट ड्रिंक्स, फ्रूट जूस और दूसरे पेय पदार्थों में पेस्‍टीसाइड मिलाए जा रहे हैं, जो सेहत के लिए नुकसानदेह है. एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार को कमेटी का चेयरमैन बनाया गया था. जेपीसी की 17 बैठकों के बाद 4 फरवरी 2004 को रिपोर्ट संसद को सौंपी गई. जेपीसी ने माना कि पेय पदार्थों में तय मात्रा से ज्यादा पेस्‍टीसाइड मिलाए जा रहे हैं और इस बारे में कुछ सख्त प्रस्ताव दिए. संसद के साथ सरकार भी इन्हें मानने पर राजी हो गई. इनमें से एक था- ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड में किसी प्रख्यात वैज्ञानिक को शामिल करना. हालांकि जेपीसी के प्रस्ताव आज तक लागू नहीं हुए हैं. वाजपेयी सरकार में दो बार जेपीसी का गठन हुआ, जो बीजेपी सरकार के लिए पनौती ही साबित हुई. वाजपेयी सरकार 2004 के चुनाव में वापसी नहीं कर पाई.

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2जी स्पेक्ट्रम केस की जांच के लिए पांचवी जेपीसी
मनमोहन सिंह सरकार के दौरान 2जी स्पैक्ट्रम आवंटन के मामले में सीएजी की रिपोर्ट में बताया गया था कि गलत तरीके से 2जी आवंटित किए जाने से सरकार को डेढ़ लाख करोड़ रुपए से भी ज्यादा का नुकसान हुआ. विपक्ष के दबाव के बीच फरवरी 2011 में मनमोहन सरकार ने इस मामले की जांच के लिए जेपीसी का प्रस्‍ताव दिया. कांग्रेस नेता पीसी चाको को जेपीसी का चेयरमैन नियुक्‍त किया गया. 30 सदस्यीस इस जेपीसी में कांग्रेस के 15 और बीजेपी के 15 सदस्‍य थे. अन्‍य क्षेत्रीय दलों के सांसदों को भी इसमें शामिल किया गया. जेपीसी की ड्राफ्ट रिपोर्ट में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम को सभी आरोपों में क्लीन चिट दे दी गई थी. रिपोर्ट में गड़बड़ियों के लिए टेलीकॉम मिनिस्टर रहे ए राजा को जिम्मेदार ठहराया गया. जेपीसी ने सीएजी के 2जी आवंटन में हुए 1.76 लाख करोड़ के नुकसान के आंकड़ों को काल्पनिक माना. विपक्ष ने जेपीसी रिपोर्ट को लेकर हंगामा किया और इसे मानने से इनकार कर दिया था.

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वीवीआईपी चॉपर घोटाले पर छठी जेपीसी
2013 में अगस्ता वेस्टलैंड कंपनी के साथ हुई डील में मनमोहन सरकार पर आरोप लगे कि 3600 करोड़ रुपए के 12 हेलीकॉप्टर्स की खरीद में 362 करोड़ रुपए की घूस दी गई. संसद में हंगामे के बीच 27 फरवरी 2013 को तत्कालीन संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ ने इस मामले में जेपीसी गठन की घोषणा की. 30 सदस्यों वाली जेपीसी की पहली बैठक के तीन महीने के अंदर रिपोर्ट सौंपने को कहा गया. उस वक्त राज्यसभा में विपक्ष के नेता रहे अरुण जेटली ने भी घोटाले की जांच के लिए बनी जेपीसी का विरोध किया था. उन्होंने कहा कि सरकार ने सिर्फ इस मुद्दे को भटकाने के लिए जेपीसी गठित की है और इससे कुछ हासिल नहीं होगा. वाजपेयी सरकार की तरह मनमोहन सिंह की सरकार ने भी दो बार जेपीसी गठित की और अगले चुनाव में कांग्रेस की लुटिया डूब गई थी.

Source : News Nation Bureau

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