नवरात्र के पहले दिन मां के जिस रूप की उपासना की जाती है, उसे शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण मां दुर्गा के इस रूप का नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ा था।
शास्त्रों के अनुसार माता शैलपुत्री का स्वरुप अति दिव्य है। मां के दाहिने हाथ में भगवान शिव द्वारा दिया गया त्रिशूल है जबकि मां के बाएं हाथ में भगवान विष्णु द्वारा प्रदत्त कमल का फूल सुशोभित है। मां शैलपुत्री बैल पर सवारी करती हैं और इन्हें समस्त वन्य जीव-जंतुओं का रक्षक माना जाता है।
आइए जानते हैं मां शैलपुत्री के पूजा की विधि
1-सबसे पहले घर या मंदिर का वह हिस्सा अच्छे से साफ कर ले जहां मां की मुर्ती रखनी हो। इसके बाद लकड़ी के एक पाटे पर मां शैलपुत्री की तस्वीर रखें।
2- कलश स्थापित करने के लिए लड़की के पाटे पर लाल कपड़ा बिछाएं। फिर उसमें शुद्ध जल भरें, आम के पत्ते लगाएं और पानी वाला नारियल उस कलश पर रखें। 3- उस कलश पर नारियल पर कलावा और चुनरी भी बांधें।
4- अब मां शैलपुत्री को कुमकुम लगाएं। चुनरी उढ़ाएं और घी का दीपक जलाए।
5- मां को सुपारी, लोंग, घी, प्रसाद इत्यादि का भोग लगाएं। इसके बाद मां शैलपुत्री की कथा पढ़ें।
6-लाल पुष्प लेकर शैलपुत्री देवी का ध्यान करें। मंत्र इस प्रकार है- ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ओम् शैलपुत्री देव्यै नम:। मंत्र के साथ ही हाथ में जो फूल लिया है उसे मां के तस्वीर पर चढ़ाए।
7- इसके बाद भोग प्रसाद अर्पित करें तथा मां शैलपुत्री के मंत्र का जाप करें। यह जप कम से कम 108 होना चाहिए।
मंत्र - ओम् शं शैलपुत्री देव्यै: नम:
मां शैलपुत्री को अखंड सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। इसलिए नवरात्रों का पहले दिन मां के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा बेहद महत्वपुर्ण है।
Source : News Nation Bureau