कैलाश सत्यार्थी ने कहा- बच्चों के खिलाफ अपराध को रोकने के लिए चिल्ड्रन ट्रिब्यूनल की जरूरत

नेशनल क्राइम रिकॉर्डस ब्यूरो के अनुसार, वर्ष 2015 की तुलना में 2016 में बच्चों के साथ अपराधों के मामलों में 14 फीसदी वृद्धि हुई है।

author-image
Vineeta Mandal
एडिट
New Update
कैलाश सत्यार्थी ने कहा- बच्चों के खिलाफ अपराध को रोकने के लिए चिल्ड्रन ट्रिब्यूनल की जरूरत

कैलाश सत्यार्थी (फाइल फोटो)

Advertisment

नोबल पुरस्कार विजेता और बाल अधिकारों के लिए काम करने वाले कैलाश सत्यार्थी बच्चों के खिलाफ अपराध को रोकने के लिए चिल्ड्रन ट्रिब्यूनल जैसी संस्था को जरुरी बताया है। उन्होंने कहा है, जो बच्चों के साथ होने वाले अपराधों पर न केवल पैनी निगाह रख सके, बल्कि उनका जल्द से जल्द निराकरण भी कर सके।

सत्यार्थी ने कहा है कि उन्होंने राज्य सरकार के साथ ही केंद्र सरकार से भी नेशनल चिल्ड्रन ट्रिब्यूनल की मांग की है।

देश में बच्चों के लिए पॉक्सो और केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन एक्ट जैसे कानून हैं, लेकिन उनके कार्यान्वयन में भारी कमी है, इस सवाल पर सत्यार्थी ने बताया, 'कानून और उसके सही तरीके से कार्यान्वयन होने के बीच एक बड़ा गैप (फासला) है। इस गैप में कई चीजे हैं। मेरे अनुसार भारत में प्रतिबद्ध, विशिष्ट और इस तरह के मामलों की निगरानी करने वाली अदालतों की जरूरत है। हम हर जिले में कम से कम एक अदालत ऐसी बनाने की मांग कर रहे हैं जो केवल बच्चों के मामलों या बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों का निराकरण करे। हमारी इस मांग को लेकर राज्य सरकार से बातचीत चल रही है।'

उन्होंने आगे बताया, 'इसके अलावा मैंने केंद्र सरकार से भी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण) जैसी संस्था की मांग की थी, लोग इससे डरते हैं और इस संस्थान का अपना दबदबा है। मैं चाहता हूं कि इसी तरह से एक चाइल्ड ट्रिब्यूनल भी बनाई जाए जो बच्चों से संबंधित मामलों पर सीधा डील कर सके। अगर सरकार काम नहीं कर रही हैं, कोई सिफारिश नहीं हो रही है या पुलिस काम नहीं कर रही है तो इन पर वह ट्रिब्यूनल निगरानी कर सके, इसलिए हम नेशनल चिल्ड्रेन ट्रिब्यूनल की मांग कर रहे हैं।'

और पढ़ें: सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों में POSCO के तहत लंबित मामलों पर हाईकोर्ट से मांगा जवाब

सत्यार्थी के मुताबिक, 'इसके अलावा यहां सोशल कल्चरल (सामाजिक संस्कृति) दूसरा गैप है। ज्यादातर मामलों में पीड़ित को ही गुनाहगार की तरह देखा जाता है, उदाहरण के लिए अगर किसी लड़की के साथ रेप हो गया तो एक सामान्य विचार सबके मन में आता है कि अब इसकी शादी नहीं होगी, क्या बकवास है? यह मानवता के खिलाफ कितना बड़ा अपराध है कि जो पीड़िता है उस पर लोग धब्बा लगा देते हैं जबकि धब्बा अपराधी पर लगना चाहिए। इन्हीं मानसिकताओं की वजह से पीड़िता का परिवार कानूनी कार्रवाई करने से डरता है। असंख्य मामले तो सामने ही नहीं आते हैं।'

उन्होंने कहा, 'हम सभी को मिलकर कोशिश करनी चाहिए कि लोगों को अपराधों के खिलाफ जागरूक किया जाए और उन्हें कानूनी, पुलिस सहायता लेने के लिए प्रेरित किया जाए। चुप बैठने से अपराधी के हौसले बढ़ते हैं। अपराध के खिलाफ आवाज उठाने से ही अपराधियों के मन में डर पैदा कर सकते हैं।'

नेशनल क्राइम रिकॉर्डस ब्यूरो के अनुसार, वर्ष 2015 की तुलना में 2016 में बच्चों के साथ अपराधों के मामलों में 14 फीसदी वृद्धि हुई है। वहीं, वर्ष 2014-15 में पांच फीसदी की वृद्धि हुई थी। 2016 में भारतीय दंड संहिता और पॉक्सो के तहत बच्चों से जुड़े अपराध के 1,06,958 मामले दर्ज हुए।

हाल के कुछ समय में राजस्थान और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में नाबालिग के साथ रेप करने वालों को फांसी देने का प्रस्ताव लाया गया है, क्या इससे समाज में कोई फर्क नजर आएगा?

यह पूछे जाने पर कैलाश सत्यार्थी ने कहा, 'अभी तो यह प्रस्ताव आया है, इसका क्या असर पड़ता है, यह जानने में वक्त लगेगा। सख्त से सख्त कानून और उसका सही कार्यान्वयन ही बच्चों के अपराधों की बढ़ती संख्या को रोक सकता है।'

ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चे शिक्षा, स्वास्थ्य व पोषण से काफी दूर हैं, उनकी मदद करने के बारे में पूछे जाने पर सत्यार्थी ने बताया, 'मैं यह काफी समय से कर रहा हूं, क्योंकि गांव में जागरूकता की अधिक जरूरत है। मैंने अपनी संस्था से जुड़े लोगों से कस्बों के स्तर पर बाल श्रम और बच्चों की सुरक्षा संबंधी के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए आयोजन करने के लिए कहा है ताकि हम देश के सुदूर क्षेत्रों के लोगों को भी बच्चों की शिक्षा, सुरक्षा, स्वास्थ्य और उनके भविष्य के लिए जागरूक कर सकें। हम अगले छह महीनों में 22 राज्यों में बाल अधिकारों पर जागरूकता फैलाने के लिए कार्यशाला का आयोजन करने जा रहे हैं।'

और पढ़ें: हरियाणा में ऐतिहासिक बिल पास, नाबालिग के साथ रेप करने पर होगी फांसी की सज़ा

Source : IANS

children rape Child Labour POSCO Kailash styarthi national children tribunal
Advertisment
Advertisment
Advertisment