नेपाल सरकार बार-बार यह आरोप लगा रही है कि सीमा विवाद पर बातचीत से भारत आनाकानी कर रहा है, लेकिन अब खबर यह है कि नेपाल ही नहीं चाहता है कि इस मुद्दे पर भारत के साथ तत्काल वार्ता हो. भारतीय विदेश मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, नेपाल ने जिस दिन नक्शा प्रकाशित किया, उसके तुरंत बाद ही भारत की ओर से विदेश सचिव स्तरीय बातचीत का प्रस्ताव दिया गया था, लेकिन उस समय नेपाल ने बातचीत में कोई रुचि नहीं दिखाई.
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भारतीय विदेश मंत्रालय के आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, काठमांडू स्थित भारतीय दूतावास की तरफ से नेपाल के विदेश सचिव को द्विपक्षीय वार्ता का प्रस्ताव रखा गया था. इस प्रस्ताव में दोनों देशों के विदेश सचिव के बीच वीडियो कांफ्रेंसिंग से तुरंत वार्ता और नेपाल की सुविधा के अनुसार भारतीय विदेश सचिव का नेपाल दौरे का ऑफर दिया गया था, लेकिन नेपाल के पीएम केपी ओली ने इस बातचीत को स्वीकार नहीं किया.
नेपाल के विदेश मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि भारत की ओर से आए ऑफर की जानकारी प्रधानमंत्री केपी ओली को दी गई थी, लेकिन चूंकि इस मामले को केपी ओली सुलझाने के बजाए अब राजनीतिक रोटी सेंकना चाह रहे थे, इसलिए भारत के प्रस्ताव को तवज्जो नहीं दी गई.
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अब बड़ा यह सवाल उठता है कि क्यों नेपाल भारत से कूटनीतिक वार्ता करने के बजाए राजनीतिक रिश्ते बिगाड़ने पर तुला है?. इसका सीधा-सीधा मतलब यह है कि नेपाल सरकार को अच्छी तरह मालूम है कि उसने जिन भू-भाग पर अपना दावा किया है वह सिर्फ नक्शा तक में सीमित रहने वाला है, क्योंकि सारे प्रमाण और दस्तावेज भारत के पक्ष में हैं.
अगर नेपाल कूटनीतिक वार्ता टेबल पर बैठा तो उसे कुछ हाथ लगने वाला नहीं है, इसलिए नेपाल के पीएम केपी ओली को वार्ता में बैठने में कोई दिलचस्पी नहीं है. इस मुद्दे के जरिए वह नेपाल की राजनीति में अपने को शिखर पर रखना चाहते हैं और अपनी कुर्सी बचाना चाहते हैं.