केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) निदेशक की नियुक्ति के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय चयन स्तरीय समिति की अगली बैठक शुक्रवार (1 फरवरी) को होगी. चयन समिति के सदस्य और कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि सीबीआई प्रमुख की नियुक्ति के लिए समिति की बैठक 1 फरवरी को करीब शाम 6 बजे होगी. इससे पहले 24 जनवरी को हुई समिति की बैठक बेनतीजा निकली थी. उम्मीद है कि अगले बैठक में नए सीबीआई निदेशक को चुन लिया जाएगा. अभी अतिरिक्त निदेशक एम नागेश्वर राव सीबीआई निदेशक के कामों को देख रहे हैं. प्रधानमंत्री के नेतृत्व में 3 सदस्यीय समिति में मल्लिकार्जुन खड़गे और चीफ जस्टिस रंजन गोगोई शामिल हैं.
पिछली बैठक में खड़गे ने निदेशक पद के लिए भेजे गए सभी योग्य अधिकारियों के अनुभव और उनके करियर की पूरी जानकारी की मांग की थी. उन्होंने कहा था कि बैठक में नामों पर चर्चा हुई लेकिन कोई निर्णय नहीं लिया जा सका.
10 जनवरी से खाली है निदेशक पद
आलोक वर्मा को पद से हटाए जाने के बाद सीबीआई निदेशक का पद बीते 10 जनवरी से खाली पड़ा है. 10 जनवरी को प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में बनी 3 सदस्यीय चयन समिति ने आलोक वर्मा को भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर पद से हटा दिया था.
इस समिति में पीएम मोदी के अलावा कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस ए के सीकरी शामिल थे. समिति ने वर्मा को पद से हटाने पर 2-1 की बहुमत से अपना फैसला दिया था. समिति की बैठक में मल्लिकार्जुन खड़गे ने आलोक वर्मा को पद से हटाने पर आपत्ति जताई थी.
सीबीआई निदेशक का दो साल का कार्यकाल
गौरतलब है कि उच्चाधिकार प्राप्त चयन समिति ही सीबीआई निदेशक का चयन करती है और उनकी नियुक्ति करती है. सुप्रीम कोर्ट ने विनीत नारायण मामले में सीबीआई निदेशक का न्यूनतम दो साल का कार्यकाल निर्धारित किया था ताकि किसी भी राजनीतिक हस्तक्षेप से उन्हें बचाया जा सके. लोकपाल अधिनियम के जरिये बाद में सीबीआई निदेशक के चयन की जिम्मेदारी चयन समिति को सौंप दी गई थी.
सूत्रों के अनुसार, सीबीआई निदेशक पद की दौड़ में 1985 बैच के आईपीएस अधिकारी और मुंबई पुलिस आयुक्त सुबोध कुमार जायसवाल, उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक ओ पी सिंह और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) क प्रमुख वाई सी मोदी आगे चल रहे हैं.
आलोक वर्मा ने जताई थी आपत्ति
आलोक वर्मा का सीबीआई निदेशक के रूप में कार्यकाल औपचारिक रूप से 31 जनवरी को खत्म होने वाला था. पद से हटाए जाने के बाद इस्तीफा देते हुए आलोक वर्मा ने कहा था कि स्वाभाविक न्याय से टाल-मटोल किया गया और पूरी प्रक्रिया को पलट दिया गया और यह सुनिश्चित किया गया कि अधो हस्ताक्षरी को सीबीआई निदेशक पद से हटा दिया जाए.
आलोक वर्मा ने पत्र में कहा था, 'चयन समिति ने इस तथ्य पर विचार नहीं किया कि पूरी सीवीसी रिपोर्ट एक शिकायतकर्ता द्वारा लगाए गए आरोपों पर आधारित है, जिसकी वर्तमान में सीबीआई जांच कर रही है. उल्लेखनीय है कि सीवीसी ने कथित तौर पर शिकायतकर्ता द्वारा हस्ताक्षरित बयान को आगे बढ़ा दिया. शिकायतकर्ता कभी सेवानिवृत्त न्यायाधीश ए के पटनायक (जांच की निगरानी करने वाले) के समक्ष नहीं आया.'
आलोक वर्मा को पिछले साल 23-24 अक्टूबर की रात को सरकार ने छुट्टी पर भेज दिया गया था, जिसे उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. शीर्ष अदालत ने 8 जनवरी को सरकार के फैसले को दरकिनार करते हुए वर्मा की सीबीआई निदेशक के तौर पर फिर बहाली की थी, लेकिन नीतिगत फैसले लेने का अधिकार नहीं दिया था. शीर्ष अदालत ने उच्च स्तरीय समिति से वर्मा के मामले पर नए सिरे से विचार करने को कहा था.
Source : News Nation Bureau