निर्भया के दोषियों की फांसी की सजा टालने के पटियाला हाउस कोर्ट के आदेश के खिलाफ केंद्र सरकार की अर्जी पर दिल्ली हाईकोर्ट में रविवार को विशेष सुनवाई हुई. सरकार की तरफ से कोर्ट में कहा कि सभी दोषियों की फांसी की सजा एक साथ देना जरूरी नहीं है. सभी के कानूनी राहत के विकल्प खत्म होने का इतंजार करने की जरूरत नहीं है. दोषियों को अलग-अलग भी फांसी दी जा सकती है.
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इसके बाद दोषियों के वकील एपी सिंह ने कोर्ट में अपनी दलीलें दीं. वकील एपी सिंह ने कहा कि अक्षय की दया याचिका अभी पेंडिंग है, जबकि विनय की ओर से अभी क्यूरेटिव याचिका और दया याचिका दायर करने का विकल्प अभी बचा है. निचली अदालत ने सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक सभी को धैर्यपूर्वक सुना और फिर तय किया ( फांसी की सज़ा पर रोक लगाई). एपी सिंह ने 2014 केव शतुघ्न चौहान केस की व्यवस्था का हवाला दे देते हुए कहा कि दया याचिका खारिज होने के बाद भी कम से कम 14 दिनों की मोहलत मिलनी चाहिए.
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एपी सिंह ने कहा कि SG ने जेल नियमों की अलग ही व्याख्या दी है. हम इस व्याख्या से संतुष्ट नहीं हैं. उन्होंने कहा कि दोषी रूरल बैकग्राउंड से हैं, पिछड़े समाज से आते हैं. अगर सुप्रीम कोर्ट के फैसले में याचिका दायर करने के लिए स्पष्ट तौर पर कोई समयसीमा का जिक्र नहीं है तो इसमें कसूर दोषियों का तो नहीं है. उन्होंने कहा कि तिहाड़ जेल के अधिकारी की किताब ब्लैक वारंट में वे खुद माने हैं कि कैसे पूरी प्रकिया का उल्लंघन किया गया.
TIP के वक्त पुलिस अधिकारी मौजूद रहे. इस दौरान SG से काफी नोकझोंक हुई. उन्होंने रामसिंह की जेल में मौत का हवाला दिया तो जज ने उन्हें टोका. कोर्ट ने कहा कि यहां सारी बातें उठाने का क्या औचित्य है?. रामसिंह की मौत हो चुकी है. उसका केस हमारे सामने नहीं है. ये ट्रायल की स्टेज नहीं है. ऐसे ही बेवजह की दलीलों की इजाजत नहीं दी जा सकती है. वकील एपी सिंह ने कहा कि कुछ और बातें उठानी चाहिए. मसलन एक गवाह की बयान की विश्वसनियता पर सवाल उठाए, लेकिन जज ने उन्हें रोक दिया.