दिल्ली के चर्चित निर्भया केस के दोषी विनय शर्मा ने अब राष्ट्रपति के समक्ष अपनी दया याचिका दाखिल की है. एक फरवरी को फांसी की तिथि को टालने के लिए निर्भया के दोषी लगातार एक-एक करके नया हथकंडा अपना रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट में मुकेश की क्यूरेटिव याचिका खारिज होने के बाद अब विनय शर्मा ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के समक्ष दया याचिका दायर की है. इससे पहले दोषी अक्षय ने सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव याचिका दाखिल की है.
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राष्ट्रपति द्वारा निर्भया के दोषी मुकेश की दया याचिका अस्वीकार किए जाने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को खारिज कर दिया. इसके बाद दोषी अक्षय ने सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव याचिका दाखिल की है. पांच जजों की संविधान पीठ गुरुवार को बंद चैंबर में दोपहर 1 बजे क्यूरेटिव अर्जी पर विचार करेगी. इससे लगता है कि निर्भया के दोषियों की फांसी एक फरवरी को टल सकती है.
तय नियमों के मुताबिक, क्यूरेटिव याचिका की सुनवाई सीधे ओपन कोर्ट में नहीं होती है. 5 जज पहले बंद चैम्बर में अर्जी कील फाइल को देखते हैं और तय करेंगे कि फैसले में सुधार की मांग को देखते हुए क्या ओपन कोर्ट में सुनवाई की जरूरत है या नहीं. अगर वो सुनवाई की जरूरत समझते हैं तो पक्षकारों को नोटिस होता है और फिर ओपन कोर्ट में जिरह होती है अन्यथा अर्जी खारिज हो जाती है.
2012 Delhi gang-rape case: Mercy petition has been filed by convict, Vinay Sharma, before the President of India, says his lawyer AP Singh pic.twitter.com/Xuq8Vz9fN4
— ANI (@ANI) January 29, 2020
क्या एक फरवरी को फांसी होगी या नहीं
अभी मुकेश का अंतिम विकल्प खत्म हुआ है. बाकी दोषियों के पास अभी कानूनी राहत के विकल्प बचे हैं अक्षय ने सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव याचिका दाखिल की है. उसके खारिज होने की सूरत में वो दया याचिका दायर कर सकता है. पवन के पास क्यूरेटिव पिटीशन और दया याचिका दायर करने का विकल्प खुला है. जब तक सभी दोषियों के विकल्प खत्म नहीं होते, किसी एक को फांसी नहीं हो सकती है, इसलिए एक फरवरी के डेथ वारंट पर अमल संभव नहीं है. लेकिन ये भी सही है कि गुजरते वक्त के साथ विकल्प एक-एक करके खत्म हो रहे हैं और फांसी के फंदे से फासला कम हो रहा है.
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गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने मुकेश की दया याचिका पर फैसले पढ़ते हुए कहा कि सभी जरूरी दस्तावेज राष्ट्रपति के सामने रखे गए थे. इसलिए याचिकाकर्ता के वकील की इस दलील में दम नहीं है कि राष्ट्रपति के सामने पूरे रिकॉर्ड को नहीं रखा गया. राष्ट्रपति ने सारे दस्तावेजों को देखने के बाद ही दया याचिका खारिज की थी. जस्टिस भानुमति ने कहा कि जेल में दुर्व्यवहार राहत का अधिकार नहीं देता. तेजी से दया याचिका पर फैसले लेने का मतलब यह नहीं है कि राष्ट्रपति ने याचिका में रखे गए तथ्यों पर ठीक से विचार नहीं किया.