निर्भया के दोषी मुकेश की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है. सुनवाई शुरू होते ही कोर्ट ने दोषी मुकेश की वकील अंजना प्रकाश से पूछा- आपको कितना वक्त लगेगा. इस पर वकील ने पहले एक घंटे में तो बाद में आधे घंटे में अपनी बात पूरी करने की कोशिश की बात कही. उन्होंने कहा, कोर्ट गौर करे कि क्या दया याचिका के निपटारे में पूरी प्रकिया का पालन हुआ है. अंजना प्रकाश ने सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसले का हवाला देते हुए कहा- मानवीय फैसलों में चूक हो सकती है. जीवन और व्यक्तिगत आजादी से जुड़े मसलों को गौर से देखने की ज़रूरत है. उन्होंने कहा- माफी का अधिकार किसी की व्यक्तिगत कृपा न होकर, संविधान के तहत दोषी को मिला अधिकार है. राष्ट्रपति को मिले माफी के अधिकार का बहुत जिम्मेदारी से पालन ज़रूरी है.
सुप्रीम कोर्ट के 2006 के फैसले का हवाला देते हुए अंजना प्रकाश ने कहा, सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज करने के फैसले को भी कुछ आधार पर चुनौती दी जा सकती है. अंजना प्रकाश ने यह भी कहा, मुकेश की दया याचिका खारिज करने में तय प्रकिया का पालन नहीं हुआ है और 2006 में दिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक यह न्यायिक समीक्षा का केस बनता है. उन्होंने कहा- राष्ट्रपति की ओर से दया याचिका में दिए तथ्यों पर बिना गौर किये, मनमाने ढंग से दया याचिका पर फैसला लिया गया.
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अंजना प्रकाश ने कहा- दुःखद है कि दोषियों को क़ानूनी सहायता भी 2014 में मिली. मेरे मुवक्किल ने माना है कि वह बस में जा रहा था पर उसकी वजह से निर्भया की जान नहीं गई थी. वह रेप में भी शामिल नहीं था. फोरेंसिक एविडेंस भी मेरी इस दलील के पक्ष में हैं. उन्होंने कहा- मुकेश के बयान में कहा गया है कि निर्भया से डीएनए सबूत राम सिंह और अक्षय के मिले हैं. इस पर जस्टिस भूषन ने टोका- आप केस की मेरिट पर बात कर रही हैं. जस्टिस भानुमति ने भी कहा- लेकिन इस सब दलीलों को निचली अदालत, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट खारिज कर चुके हैं.
इस पर वकील अंजना प्रकाश बोलीं- मैं केस की मेरिट पर बात नहीं कर रही हूं. मेरे सवाल ये हैं कि ये सब तथ्य/सबूत राष्ट्रपति के सामने क्यों नहीं रखे गए. वकील ने यह भी कहा कि ट्रायल कोर्ट के फैसले को भी राष्ट्रपति के सामने नहीं रखा गया. सॉलिसीटर जनरल ने अंजना प्रकाश की इस दलील का विरोध करते हुए कहा, ऐसा नहीं है. राष्ट्रपति के सामने निचली अदालत के फैसलों को भी रखा गया था.
दोषी मुकेश की ओर से वकील अंजना प्रकाश की दलील कि इस मसले पर जेल सुपरिटेंडेंट की सिफारिश को राष्ट्रपति के सामने नहीं रखी गई. मुकेश जेल के अंदर यौन शोषण का शिकार हुआ. उसकी पिटाई हुई. इस मामले में उसके सहआरोपी राम सिंह की हत्या हो गई लेकिन इस आत्महत्या बताकर केस बन्द कर दिया गया.
उन्होंने कहा, दया याचिका खारिज होने के बाद कैदी को एकांतवास में रखा जाता है, लेकिन यहां उससे पहले से ही उसे एकांतवास में रखा गया, जो गलत है. जस्टिस भानुमति ने इससे सहमति जताते हुए कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए था. वहीं कोर्ट ने पूछा कि एकांतवास की दलील यहां उठाने का क्या औचित्य है. वकील ने कहा कि ये अपने आप में फांसी की सज़ा को उम्रकैद में बदलने का आधार है. लेकिन ये सब चीजें राष्ट्रपति के सामने विचार के लिए नहीं रखी गई.
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सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिका का विरोध किया
वहीं सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिका का विरोध किया है. उन्होंने कहा, यह भी देखे जाने की जरूरत है कि आज जो जीवन के मूल्य ( Value of Life ) की वकालत कर रहा है उसके लिए जीवन का मूल्य क्या था. उन्होंने कहा, सारे महत्वपूर्ण रिकॉर्ड राष्ट्रपति के सामने रखे गए थे. राष्ट्रपति को सिर्फ माफी के सीमित पहलू पर विचार करना था. तुषार मेहता ने कहा, जेल के अंदर मुकेश की ओर से उसका यौन शोषण होने के आरोप उसे माफी का हकदार नही बनाते. उन्होंने कहा कि ये आरोप सही नहीं है कि मनमाने ढंग से दया याचिका खारिज की गई. तुषार मेहता ने आगे कहा, दया याचिका के निपटारे में अगर देरी होती, तो ये दोषी के पास दलील का आधार हो सकता है, पर अर्जी के तेजी से निपटारा अपने आप में कोई दलील नहीं है.
अंजना प्रकाश ने गृह मंत्रालय के हलफनामे पर सवाल उठाए और कहा कि ये कैसा जवाब है अंजना प्रकाश ने दलील दी कि इस हलफनामे से ये साबित नहीं होता कि कौन से डॉक्युमेंट राष्ट्रपति के सामने रखे गए. उन्होंने कहा, 'दया याचिका पर फैसला रास्ट्रपति को लेना था, कोर्ट को नहीं. सवाल ये है कि क्या सारे डॉक्यूमेंट उनके सामने रखे गए. क्या एकांतवास में रखे जाने वाली बात राष्ट्रपति के सामने रखी गई?
निर्भया के दोषियों में से एक मुकेश ने राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज करने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. याचिका पर जस्टिस भानुमति, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस बोपन्ना की बेंच ने सुनवाई की. अर्जी में कहा गया था कि जितनी तेजी से उसकी दया याचिका पर फैसला लिया गया, उससे लगता है कि अर्जी में दी गई सभी बातों पर सही से विचार नहीं हुआ. मुकेश ने निचली अदालत से एक फरवरी के लिए जारी डेथ वारंट पर भी रोक लगाने की मांग की है.