अयोध्या मामले में आज सुनवाई का ग्यारहवा दिन था. सुनवाई के शुरुआत में ही चीफ जस्टिस ने निर्मोही अखाड़े की ओर से दलील रख रहे सुशील जैन को हिदायत दी कि अब वो लिमिटेशन के बजाए केस की मेरिट पर बात करें. सुशील जैन ने कोर्ट से कहा कि वो विवादित ज़मीन पर मालिकाना हक़ का दावा नहीं कर रहे, सिर्फ पूजा-प्रबन्धन और कब्जे का अधिकार मांग रहे है. अयोध्या बहुत बड़ा है, पर प्रभु राम की तस्वीर सिर्फ रामजन्म भुमि में स्थापित की गई थी.
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सुशील जैन ने कहा कि मेरे सेवादार के अधिकार को छीन कर मुझसे कब्जा लिया गया. सुशील जैन ने ये भी कहा कि रामलला की ओर से जो निकट सहयोगी देवकी नंदन अग्रवाल बनाये गए है, मैं उन्हें नहीं मानता. वो तो पुजारी भी नहीं है.
इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने सवाल किया कि जब आप किसी देवता के सेवादार/पुजारी के नाते अपना अधिकार मांगते है तो आप फिर उस देवता ( रामलला विराजमान) की ओर से दायर अर्जी का विरोध कैसे कर सकते हैं। मान लीजिए कि देवता( रामलला) की याचिका खारिज हो गई तो फिर तो अपने आप ही सेवादार होने का आपका दावा भी खारिज हो जाएगा.
सुशील जैन ने कहा, मैं रामलला और रामजन्मस्थान की याचिका के खिलाफ नहीं हूँ. मेरी दलील है कि देवकीनंदन अग्रवाल निकट मित्र की हैसियत नहीं रखते. सुशील जैन ने ये भी दावा किया सिर्फ निर्मोही अखाड़े का नाम नाम गैजेटियर और ऐतिहासिक दस्तावेजो में अंकित है. सिर्फ मैं ही हिंदू पक्ष का प्रतिनिधित्व कर सकता हूँ. जस्टिस बोबडे के पूछने पर सुशील जैन ने अदालत में वो बयान भी पढ़े जिनसे साबित हो कि निर्मोही अखाड़े के मंदिर के प्रबंधन पर कब्जा रहा है.
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अपने पक्ष को मजबूती से रखते हुए सुशील जैन ने कहा मेरे पक्ष में स्थानीय लोग शामिल है. रामलला विराजमान की ओर से दावा पेश करने वाले सब बाहरी लोग है. हालाँकि रामलला विराजमान और मेरे बीच ज़्यादा अंतर नहीं है. वो भी रक तरह से मेरा समर्थन कर रहे है. एक अंतर ये है उनका पक्ष है कि बाबर ने यहां निर्माण किया, मैं ये कह रहा हूँ कि वहाँ हमेशा रहा मंदिर रहा है. वो 1949 में देवता स्थापित की बात कहते है, मैं ऐसा नहीं मानता. कल भी सुनवाई जारी रहेगी. कल भी निर्मोही अखाड़े की ओर से सुशील जैन अपनी दलीले जारी रखेंगे.
Source : अरविंद सिंह