नीति आयोग के सदस्य बिबेक देबरॉय ने कृषि आय को आयकर के दायरे में लाने की वकालत की है। आयोग ने यह राय ऐसे समय में दी है जब कई अर्थशास्त्री पहले से ही एक निश्चचित सीमा से ज्यादा कमाई करने वाले किसानों को आय़कर के दायरे में लाने की बात कर रहे हैं।
पिछले काफी समय से काले धन के खिलाफ मुहिम में इस बात को लेकर चिंता जताई जा रही थी कि कुछ लोग खेती-बाड़ी के नाम पर मोटी कमाई दिखाकर आयकर से छूट उठा लेते हैं। लेकिन सभी सरकारों ने इसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दा मानते हुए कोई फैसला नहीं लिया।
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देबरॉय ने प्रेस कॉनफ्रेंस के दौरान कहा:
- पिछली कई सरकारों के दौरान कृषि आय़ को आयकर के दायरे में लाने की बात कही जाती रही है।
- देश में मोटा-मोटी 22.5 करोड़ परिवार है, जिसमें लगभग दो-तिहाई ग्रामीण इलाके में रहते है।
- ग्रामीण इलाके में रहने वाले आम तौर पर आयकर के दायरे से बाहर हैं, क्योंकि वहां पर कमाई का मुख्य जरिया खेती-बाड़ी है।
- अब ऐसे में शहरों में रहने वाले 7.5 करोड़ परिवार बचते हैं जिन पर आयकर लगाया जा सकता है।
- आयकर में छूट के लिए तय सीमा के मद्देनजर 7.5 करोड़ में से भी आधे निकल जाते हैं।
- यानी कुल मिलाकर 3.75 करोड़ से लेकर ज्यादा से ज्यादा 4.5 करोड़ परिवार ऐसे बचते हैं जो आयकर का आधार बनते हैं।
फिलहाल, देबरॉय का कहना है कि आयकर का दायरा बढ़ाने का एक रास्ता छूट को खत्म करना है, वही दूसरा विकल्प ग्रामीण क्षेत्र को आयकर के दायरे में लाने और खास तौर पर निश्चित सीमा से ज्यादा खेती बाड़ी से हुई कमाई पर आयकर लगाना हो सकता है।
देबरॉय के अनुसार ये सीमा शहरी क्षेत्र के बराबर हो सकती है,लेकिन इसके लिए तीन साल या पांच साल के औसत को आधार बनाया जा सकता है।
मई 2016 में, प्रधानमंत्री कार्यालय ने नीति आयोग को सलाह दी थी कि वे 15 साल के विज़न, सात साल की रणनीति और तीन साल के एक्शन एजेंडे पर दस्तावेज तैयार करें।
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HIGHLIGHTS
- बिबेक देबरॉय ने की कृषि आय को आयकर के दायरे में लाने की वकालत
- कुछ लोग खेती बाड़ी के नाम पर मोटी कमाई दिखाकर आयकर से छूट पा जाते हैं
Source : News State Beureau