विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि फिलहाल चीन के साथ रिश्तों में किसी तरह के बदलाव की उम्मीद नहीं है. उन्होंने कहा कि पिछले साल चीनी सेना ने बिना कारण पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में घुसपैठ की, जिसकी वजह से भारत व चीन के रिश्तों में बड़े बदलाव आ गए हैं. फिलहाल चीन के साथ रिश्तों में तालमेल बिठाना काफी चुनौतीपूर्ण हो गया है. यह बात जयशंकर ने सोमवार को आस्ट्रेलियाई सेंट्रल यूनिवर्सिटी को संबोधित करते हुए कही. उन्होंने मौजूदा हालात में क्वाड को जरूरी बताया. उन्होंने इसे भी चीन के उभरने से जोड़कर देखा. बता दें कि क्वाड भारत, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और जापान का संगठन है. एस जयशंकर ने इसके महत्व को रेखांकित किया. उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि एकल शक्ति का दौर खत्म हो रहा है. द्विपक्षीय संबंधों की अपनी सीमाएं हैं. जिस तरह से बदलाव का दौर चल रहा है, कुछ कहा नहीं जा सकता आगे क्या होगा. हालांकि यह भी दावा किया कि हिंद-प्रशांत का क्षेत्र इस बदलाव का केंद्र होगा.
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जयशंकर ने राजीव गांधी की चीन यात्रा को भी याद किया. उन्होंने चीन और भारत के रिश्तों पर कहा कि साल 1988 में पूर्व पीएम राजीव गांधी ने जब चीन की यात्रा की थी तो द्विपक्षीय रिश्तों को लेकर संभावना बनी थी कि हमारी सीमाओं पर अमन और शांति बनी रहेगी. हमने इस उद्देश्य से समझौते किए, जिसका मकसद यही था कि कोई भी अपनी सेना सीमा पर नहीं ले जाएगा लेकिन पिछले साल चीन की हरकत के बाद स्थिति पलट गई. बिना किसी कारण के भारतीय सीमा पर चीनी सैनिकों का जमावड़ा हो गया. गलवन घाटी में जो हुआ, उससे चीन और भारत के रिश्ते दूसरी दिशा में चले गए.
बता दें कि इससे पहले रविवार को एस जयशंकर डेनमार्क के प्रधानमंत्री से भी मिले थे. डेनमार्क के पीएम मेते फ्रेडेरिक्सेन से मुलाकात के दौरान उन्होंने हिंद-प्रशांत, अफगानिस्तान तथा यूरोपीय संघ की वैश्विक भूमिका पर चर्चा की थी. उन्होंने अफगानिस्तान के हालातों पर भी चर्चा की. तालिबान के कब्जे के बाद अफगानिस्तान एक महत्वपूर्ण मुद्दा हो गया है. उनका डेनमार्क का दौरा तीन यूरोपीय देशों के दौरे का अंतिम चरण था. इससे पहले उन्होंने स्लोवेनिया और क्रोएशिया का भी दौरा किया था.
HIGHLIGHTS
- चीन से संबंधों पर विस्तार से की चर्चा
- तीन देशों का दौरा रविवार को किया खत्म
- डेनमार्क में अफगानिस्तान पर कर चुके हैं बात