नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने खुलासा किया है कि टेलिकॉम सर्विस प्रोवाइडर को माइक्रोवेव एक्सेस (MWA) स्पेक्ट्रम का सही तरीके से आवंटन नहीं किया गया है और प्रक्रिया में काफी विसंगतियां रही है. इसके अलावा इन पर जो चार्ज लगाया गया है उसमें भी कुछ गड़बड़ी है. हालांकि उन्होंने यह भी साफ कर दिया है कि इसमें कितना राजकोषीय घाटा हुआ है इसकी गणना नहीं की गई है. कांग्रेस के आरोप के जवाब में CAG अधिकारी ने यह बात कही.
बता दें कि सोमवार को कांग्रेस ने मोदी सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि NDA के कार्यकाल में स्पेक्ट्रम आवंटन से सरकारी खजाने को 69,381 करोड़ रुपये की चपत लगी है. कांग्रेस ने अपना दावा मजबूत करने के लिए CAG की रिपोर्ट का हवाला दिया था.
दरअसल कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने सोमवार को एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि "माइक्रोवेव स्पेक्ट्रम के ठेकों में मोदी सरकार ने 'पहले आओ-पहले पाओ' नियम के तहत स्पेक्ट्रम अपने दोस्तों को बांट दिया जबकि नियम के मुताबिक बोली लगाई जानी चाहिए थी. सीएजी रिपोर्ट बताती है कि केंद्र सरकार ने 2015 में पहले आओ पहले पाओ नीति के अनुसार स्पेक्ट्रम बांटा है. सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में पाया है कि नए नियम के बदले पुराने तरीके से राजस्व वसूला गया है. इससे निजी कंपनियों को 45000 करोड़ का लाभ पहुंचाया गया है और इससे मोदी सरकार ने पिछले 4 सालों में 69,381 करोड़ों का बड़ा घोटाला किया है. इसलिए हम इस पूरे मामले की सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एक निष्पक्ष जांच की मांग करते हैं.'
जिसके जवाब में नाम नहीं बताने की शर्त पर CAG के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि माइक्रोवेव स्पेक्ट्रम की कभी नीलामी ही नहीं हुई और अब मार्केट में इसका सही दाम पता भी नहीं चलेगा इसलिए राष्ट्रीय लेखा परीक्षक ने कभी भी घाटे को लेकर कोई डाटा उपलब्ध नहीं कराया है. हालांकि यह सच है कि रिपोर्ट में आवंटन में गड़बड़ियां की बात ज़रूर सामने आई है.
उल्लेखनीय है कि बीते 8 जनवरी को कैग की एक रिपोर्ट संसद में पेश हुई. कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार ने साल 2015 में माइक्रोवेव स्पेक्ट्रम का आवंटन पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर किया, जब सरकार के पास आवंटन के लिए 101 आवेदन आए थे.
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इस रिपोर्ट को आधार बनाते हुए कांग्रेस ने मोदी सरकार पर माइक्रोवेव स्पेक्ट्रम के आवंटन में घोटाला का आरोप लगाया है.
Source : News Nation Bureau