बारिश, सूखा, बाढ़, उल्कापिंड, ज्वालामुखी, चक्रवात शायद ऐसी कोई प्राकृतिक घटना रही है जिसकी भविष्यवाणी विज्ञान के जरिए नहीं की जा सकती, लेकिन सिवाय भूकंप के. क्योंकि भूकंप ऐसी घटना है जिसकी भविष्यवाणी करना 21वीं सदी के विज्ञान के लिए भी बेहद मुश्किल है. हालांकि अब गूगल ने बीड़ा उठाया है कि पहले अमेरिका, मैक्सिको और जापान और उसके बाद पूरी दुनिया में 'अर्थक्वेक अर्ली वार्निंग' सिस्टम की शुरुआत एंड्राइड एप्लीकेशन के जरिए की जाएगी. एंड्राइड एप्लीकेशन में मौजूद सिस्टम के अलावा गूगल की कोशिश है कि अर्थ सेंसर, सैटेलाइट सेंसर और महासागरों के अंदर इंटरनेट पहुंचाने वाली सबमरीन केबल से भी सूचनाओं को इकट्ठा किया जाए. जिससे भूकंप की भविष्यवाणी सटीक तौर पर करना मुमकिन हो सकता है. गूगल की बेमिसाल तकनीक और एंड्राइड सिस्टम के बावजूद भूकंप की भविष्यवाणी बेहद मुश्किल है.
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10 किलोमीटर से लेकर 300 किलोमीटर एपी सेंटर से शुरू हो सकता है
भूकंप धरती के अंदर 10 किलोमीटर से लेकर 300 किलोमीटर एपी सेंटर से शुरू हो सकता है. जबकि पृथ्वी के टेक्टोनिक प्लेट में इसका अंदाजा लगाना और भी मुश्किल हो जाता है. भूकंप को नापने वाली पी, एस और एल वेव कई किलोमीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से चलती है. लिहाजा अनुमान अगर लगाया भी जा सका तो यह महल 1 से 2 मिनट का ही होगा. अगर यह मान भी लिया जाए कि भूकंप की भविष्यवाणी कुछ ही समय पहले की जा सकती है फिर भी फौरी तौर पर बड़े भूकंप में हजारों जान बचाना इस तकनीक के जरिए मुमकिन हो पाएगा. जैसे ही एक क्षेत्र के सभी स्मार्टफोन में भूकंप का अलर्ट पहुंचेगा. उसी समय लोग सुरक्षित स्थानों पर जा सकते हैं. यानि 1 मिनट में हजारों जान बचना संभव है.