भारतीय राजनीति के लिहाज से आने वाला साल भी काफी गहमागहमी भरा रहने वाला है. पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. इन चुनावों को लेकर भारतीय जनता पार्टी अभी से चुनावी मोड में आ चुकी है. गृह मंत्री अमित शाह ने विगत दिनों बंगाल और तमिलनाडु का दौरा कर सियासी तापमान को हवा दे दी है. इस कड़ी में असम में बीजेपी के संकट मोचक हेमंत विश्व शर्मा भी अगले साल मार्च-अप्रैल में होने वाले चुनाव को लेकर शह-मात की बिसात बिछाने में लग गए हैं. असम वह राज्य है जहां नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) काफी बड़ा मुद्दा बन कर उभरे और अगले साल भी बड़ा मुद्दा हो सकते हैं. हालांकि इसको लेकर हेमंत विश्व शर्मा कतई मुतमुईन लगते हैं. उनका मानना है कि आगामी चुनाव में सीएए और एनआरसी मुद्दा नहीं होंगे. वह दृढ़ता से मानते हैं कि बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मिली जीत का सकारात्मक प्रभाव पश्चिम बंगाल और असम के चुनाव में देखने को मिलेगा. उनका तर्क है कि समस्या असमिया मुसलमान नहीं है, लेकिन असमिया संस्कृति को 'खतरा' जरूर है. बीजेपी को नगा शांति वार्ता से बड़ी उम्मीद है.
बिहार समेत उपचुनाव परिणाम दिखा रहे भविष्य
'इंडियन एक्सप्रेस' से खास बातचीत में हेमंत बिश्व सरमा ने आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी की रणनीति समेत कई मुद्दों पर अपनी राय रखी. बिहार चुनाव के नतीजे अगले साल असम में होने वाले विधानसभा चुनाव पर कोई असर डालेंगे? इस सवाल के जवाब में सरमा ने कहा, 'हमें बिहार विधानसभा चुनाव परिणाम को अलग करके नहीं देखना चाहिए. इसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और मणिपुर में उपचुनावों के साथ देखा जाना चाहिए. अगर आप देश के नक्शे को देखते हैं, तो पूर्व से पश्चिम और दक्षिण से उत्तर तक, लोगों ने एक बार फिर से लोकसभा चुनाव में दिए गए फैसले को दोहराया है.'
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असम में एनआरसी और सीएए अब मुद्दा नहीं
बिहार चुनावों में एआईएमआईएम ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर को मुद्दा बनाया. क्या ये असम विधानसभा चुनावों में मुद्दा बन सकता है, क्योंकि राज्य में बड़ी मुस्लिम आबादी है? इसके जवाब में हेमंत बिश्व सरमा कहते हैं, 'असम में एनआरसी और सीएए अब मुद्दा नहीं रह गए हैं. मुद्दा विकास का है. असमिया मुस्लिम समुदाय हमें वोट देगा, लेकिन अभी तक जितने भी मुसलमान विभिन्न समयों पर बांग्लादेश से पलायन कर चुके हैं, वे बीजेपी को वोट देने नहीं जा रहे हैं. हम अपना विकास कार्य जारी रख रहे हैं, क्योंकि सरकार सभी के लिए है.' वह कहते हैं, 'ये मुद्दे अब असम के मुख्य राजनीतिक प्रवचन का हिस्सा नहीं रह गए हैं. राजनीतिक परिदृश्य में कोई भी इन मुद्दों के बारे में बात नहीं कर रहा है. मुझे नहीं लगता कि ये एक राजनीतिक मुद्दा होगा. बेशक, कुछ राजनीतिक दल या नेता अपने भाषणों में इसका उल्लेख कर सकते हैं. मुझे लगता है कि चीजों ने पहले ही एक अलग मोड़ ले लिया है.'
बीजेपी की हिंदू वोटों को मजबूत करने की कोशिश
क्या आने वाले दिनों में बीजेपी असम में हिंदू वोटों को मजबूत करने की कोशिश करेगी? इस सवाल के जवाब में राज्य के वित्तमंत्री हेमंत बिश्व सरमा कहते हैं, 'यह हिंदू-मुस्लिम मामला नहीं है. यह दो संस्कृतियों के बीच की लड़ाई है. तथाकथित प्रवासियों (बांग्लादेशी मुसलमानों) ने असम में एक नई अवधारणा शुरू की है. वे इसे मिया संस्कृति, मिया कविता… मिया भाषा… कहते हैं. हमें समग्र भारतीय संस्कृति और विशेष रूप से असमिया संस्कृति की रक्षा करनी होगी. और असमिया मुस्लिम हमारी तरफ से मजबूती से खड़े हैं.'
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नगा शांति वार्ता को लेकर उम्मीदें
सरमा कहते हैं, 'एनडीए सरकार की नीति राष्ट्र की अखंडता को बनाए रख रही है. यही हमने जम्मू-कश्मीर में देखा. हालांकि, नगा मुद्दा बहुत जटिल मुद्दा है. इन मुद्दों को हमारे क्षेत्र की बड़ी शांति और स्थिरता के लिए हल करने की आवश्यकता है. गृह मंत्री अमित शाह की देखरेख में अधिकारियों की एक टीम श्री थुइंगलेंग मुइवा (एनएससीएन के महासचिव) के साथ बात कर रही है. अभी तक की चर्चा सकारात्मक है. दोनों पक्षों ने महसूस किया है कि उन्हें एक दूसरे को समायोजित करने की आवश्यकता है. एक ही समय में हमें नाटकीय परिणाम की उम्मीद नहीं करनी चाहिए. इसमें समय लगेगा और मैत्रीपूर्ण माहौल में चर्चा होगी. नागा शांति वार्ता का कोई तोड़ नहीं है.'
असम में 2016 के चुनाव परिणाम
बता दें कि 126 सदस्यीय असम विधानसभा के लिए 2016 में हुए चुनाव में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था. वर्तमान में बीजेपी के 60 विधायक हैं. असोम गण परिषद (एजीपी) के 14 और बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) के 12 विधायकों के समर्थन से बीजेपी ने सरकार बनाई है. एक निर्दलीय विधायक ने भी बीजेपी को समर्थन दिया है. वहीं, कांग्रेस के पास 23 और एआईयूडीएफ के पास 14 विधायक हैं.