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ओडिशा रसगुल्‍ला जीता, बंगाली रोसोगोल्‍ला की हुई हार, 2028 तक रहेगा GI टैग

कई सालों से पश्चिम बंगाल और ओडिशा के बीच इस बात की बहस जारी है कि आखिर मशहूर रसगुल्ले का आविष्कारक कौन है. अब ओडिशा ने यह लड़ाई जीत ली है.

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Drigraj Madheshia
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ओडिशा रसगुल्‍ला जीता, बंगाली रोसोगोल्‍ला की हुई हार, 2028 तक रहेगा GI टैग

प्रतिकात्‍मक चित्र

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कई सालों से पश्चिम बंगाल और ओडिशा के बीच इस बात की बहस जारी है कि आखिर मशहूर रसगुल्ले का आविष्कारक कौन है. अब ओडिशा ने यह लड़ाई जीत ली है. ओडिसा को जीआई टैग यानी भौगोलिक पहचान मिल गई है. ओडिसा सन टाइम्‍स के अनुसार 'ओडिशा रसागोला' को भगवान जगन्नाथ को दी जाने वाली विनम्रता के लिए बहुप्रतीक्षित भौगोलिक संकेत (GI) टैग मिल गया है. Ed ओडिशा रसगोला ’के रूप में पंजीकृत, आज इस मिठाई को प्रमाणपत्र प्रदान किया गया है और यह 22 फरवरी, 2028 तक मान्य होगा.

इससे पहले 2017 में पश्चिम बंगाल को इसके लिए जीआइ टैग यानी भौगोलिक पहचान मिल गई थी. हालांकि, ओडिशा ने इसपर आपत्ति जताई थी. बंगाल को जीआई टैग दिए जाने की आपत्ति पर विचार करते हुए जीआई रजिस्ट्री ने ओडिशा को दो महीने का समय दिया गया था कि वह रसगुल्ले को आविष्कार को लेकर अपने दावों को पुष्ट करने का सबूत दें.  

यह भी कहा गया थ कि अगर इन दो महीनों में ओडिशा सबूत पेश नहीं कर पाता है तो यह याचिका खारिज हो जाएगी. बता दें कि रसगुल्ले को लेकर ओडिशा स्मॉल इंडस्ट्रीज कॉर्पोरेशन (ओएसआईसी) और रीजनल डिवेलपमेंट ट्रस्ट ने जनवरी 2018 में रसगुल्ले के लिए बंगाल को जीआई टैग दिए जाने के खिलाफ अपील की थी.

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ओडिशा से मांगे गए थे ये सबूत

अब इसी मांग के समर्थन में ओडिशा को सबूत पेश करने को कहा गया है. उनसे यह भी पूछा गया था कि रसगुल्ला बनाने के लिए क्या-क्या इस्तेमाल होता है और उसे किस तापमान, कितनी नमी और किन पदार्थों की जरूरत होती है. इसके अलावा उनसे रसगुल्ला बनाने की विधि भी पूछी गई है.

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बता दें, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के बीच इस बात को लेकर कई साल से खींचतान से चल रही थी कि आखिर रसगुल्ले का ईजाद कहां हुआ? 2017 में जीआई रजिस्ट्री ने बंगाल के दावे को स्वीकार करते हुए उसके पक्ष में फैसला दिया था और उसे जीआई टैग जारी कर दिया था.

क्या है जीआई टैग?

  • किसी क्षेत्र विशेष के उत्पादों को जियोग्रॉफिल इंडीकेशन टैग (जीआई टैग) से खास पहचान मिलती है. जीआई टैग किसी उत्पाद की गुणवत्ता और उसके अलग पहचान का सबूत है.
  • चंदेरी की साड़ी, कांजीवरम की साड़ी, दार्जिलिंग चाय और मलिहाबादी आम समेत अब तक 300 से ज्यादा उत्पादों को जीआई मिल चुका है.
  • भारत में दार्जिलिंग चाय को भी जीआई टैग मिला है. इसे सबसे पहले 2004 में जीआई टैग मिला था.
  • महाबलेश्वर स्ट्रॉबेरी, जयपुर के ब्लू पोटरी, बनारसी साड़ी और तिरुपति के लड्डू
  • मध्य प्रदेश के झाबुआ के कड़कनाथ मुर्गा सहित कई उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है.
  • कांगड़ा की पेंटिंग, नागपुर का संतरा और कश्मीर का पश्मीना भी जीआई पहचान वाले उत्पाद हैं.

Source : DRIGRAJ MADHESHIA

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