फ्रांस के साथ राफेल सौदे में ऑफसेट पॉलिसी को लेकर उठे सवालों के बाद अब केंद्र सरकार ने नई रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (डीएपी)-2020 में ऑफसेट पॉलिसी को ही बदल दिया. पिछले दिनों नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने राफेल सौदे में ऑफसेट पॉलिसी पूरी न होने पर अपनी रिपोर्ट संसद में सौंपी थी. इस रिपोर्ट के बाद अब सशस्त्र बलों के लिए हथियार और सैन्य प्लेटफार्म खरीदने के लिहाज से जारी एक नयी नीति के तहत सरकारों के बीच रक्षा सौदों और एकल विक्रेता के साथ अनुबंधों के लिए ऑफसेट जरूरतों को समाप्त कर दिया गया है.
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रक्षा मंत्रालय में अधिग्रहण महानिदेशक अपूर्व चंद्रा ने बताया कि डीएपी 2020 के अनुसार एकल विक्रेता, सरकार से सरकार के बीच और अंतर-सरकारी समझौतों के तहत सौदों में ऑफसेट लागू नहीं होगा. एकल विक्रेता के साथ अनुबंधों और अंतर-सरकारी समझौतों की रूपरेखा के तहत खरीद की ऑफसेट जरूरतों को समाप्त करने का फैसला लिया गया है. साथ ही उन्होंने बताया कि प्रतिस्पर्धी निविदा वाले अनुबंधों में ऑफसेट नीति लागू रहेगी. उन्होंने कहा कि किसी ऑफसेट अनुबंध में प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण नहीं हुआ है.
सरकार ने यह फैसला ऐसे समय में लिया है, जब कुछ दिन पहले ही नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने ऑफसेट नीति के खराब क्रियान्वयन को लेकर नाराजगी प्रकट की थी. कैग ने हाल में संसद में जो रिपोर्ट सौंपी थी, उसमें राफेल डील का उल्लेख किया था. कैग ने कहा था कि विमान निर्माता कंपनी दासॉल्ट एविएशन और हथियार आपूर्तिकर्ता एमबीडीए ने भारत को उच्च प्रौद्योगिकी देने की अपनी ऑफसेट प्रतिबद्धताओं को अभी तक पूरा नहीं किया है. बताया जाता है कि इस सौदे में ऑफसेट हिस्सेदारी 50 प्रतिशत थी. अपूर्व चंद्रा ने भी संकेत दिया कि सरकार के फैसले के पीछे यही वजह हो सकती है.
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उधर, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ट्वीट किया कि नयी नीति के तहत ऑफसेट दिशानिर्देशों में भी बदलाव किये गये हैं और संबंधित उपकरणों की जगह भारत में ही उत्पाद बनाने को तैयार बड़ी रक्षा उपकरण निर्माता कंपनियों को प्राथमिकता दी गयी है. राजनाथ सिंह ने कहा कि डीएपी को सरकार की ‘आत्मनिर्भर भारत’ की पहल के अनुरूप तैयार किया गया है और इसमें भारत को अंतत: वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनाने के उद्देश्य से ‘मेक इन इंडिया’ की परियोजनाओं के माध्यम से भारतीय घरेलू उद्योग को सशक्त बनाने का विचार किया गया है.
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दरअसल, ऑफसेट नीति के तहत विदेशी रक्षा उत्पादन इकाइयों को 300 करोड़ रुपये से अधिक के सभी अनुबंधों के लिए भारत में कुल अनुबंध मूल्य का कम से कम 30 प्रतिशत खर्च करना होता है. उन्हें ऐसा कलपुर्जों की खरीद, प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण या अनुसंधान और विकास इकाइयों की स्थापना करके करना होता है.