वृद्धाश्रम का नाम सुनते ही भले ही विचार आता हो दुखी वृद्ध, बच्चों के सताए मां-बाप... लेकिन अब तस्वीर बदल रही है।
भरा पूरा परिवार, आर्थिक संपन्नता, कोई मजबूरी नहीं है लेकिन फिर भी वृद्धाश्रम में उम्र के अंतिम पड़ाव में पहुंच चुके बुजुर्ग लोग अब अपनी मर्जी से रह रहे हैं। वजह है हमउम्र साथी, जिसके चलते अकेलापन नहीं खलता।
जयपुर में जवाहर सर्किल क्षेत्र में स्थित प्रेम निकेतन वृद्धाश्रम। यहां की आबोहाव खुशनुमा है, ढलती उम्र में भी मुस्करा रही है। यहां रहने वाले शरदचंद भास्कर जोशी, रिटायर्ड आईएएस अफसर हैं। परिवार है लेकिन बेटा विदेश में रहता है।
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पत्नी की मौत के बाद शरदचंद को जब अकेलापन कचोटने लगा तो प्रेम निकेतन वृद्धाश्रम चले आये। अब यहां ख़ुश है क्योंकि साथ हमउम्र साथी हैं। इनके अलावा इस वृद्धाश्रम में कई रिटायर्ड ऑफिसर भी रह रहे हैं। ज्यादातर यहां यह रिटार्यड अधिकारी खुद अपनी ही मर्जी से आए हैं।
इन्हीं में से एक हैं एलएन गुप्ता, रिटायर्ड आईएएस अधिकारी है। प्रशानिक ओहदों पर रहे हैं, होम सेक्रेटरी, फाइनेंस सेक्रेटरी, जयपुर सहित तीन जिलों के कलेक्टर भी रह चुके हैं।
यह इस वृद्धाश्रम में इसीलिए आए थे ताकि अपनी बीमार पत्नी की सेवा ठीक ढंग से कर सकें, लेकिन पत्नी के देहांत के बाद भी गुप्ता जी यहीं रह रहे हैं।
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प्रेम निकेतन वृद्धाश्रम में 35 लोग रह रहे हैं। कुछ एकको छोड़ दें तो अधिकतर अपनी मर्जी से रह रहे हैं। खैर यह सच है भागदौड़ की जिंदगी में समय नहीं है। संतान भी अपने मां-बाप को समय नही दे पा रही हैं।
अकेलेपन के इस दौर में ऐसे वृद्धाश्रम इन वृद्धों के लिए बुढापे के दिनों में बेहतर प्लेटफार्म बनकर उभर रहे हैं।
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Source : News Nation Bureau