सेना प्रमुख एमएम नरवणे (MM Narvane) ने कहा कि पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में चीन की ओर से सैन्य जमावड़ा और व्यापक पैमाने पर तैनाती को बनाए रखने के लिए नये बुनियादी ढांचे का विकास चिंता का विषय है और भारत चीनी पीएलए (PLA) की सभी गतिविधियों पर कड़ी नजर रखे हुए है. नरवणे ने कहा कि यदि चीनी सेना दूसरी सर्दियों के दौरान भी तैनाती बनाए रखती है, तो इससे नियंत्रण रेखा (LAC) जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है. हालांकि सक्रिय एलओसी नहीं, जैसा पाकिस्तान के साथ पश्चिमी मोर्चे पर है. थल सेनाध्यक्ष ने कहा कि अगर चीनी सेना अपनी तैनाती जारी रखती है, तो भारतीय सेना भी अपनी तरफ अपनी मौजूदगी बनाए रखेगी जो पीएलए के समान ही है. पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) से लगे कई क्षेत्रों में भारत और चीन की सेनाओं के बीच लगभग 17 महीनों से गतिरोध बना हुआ है. वैसे दोनों पक्ष श्रृंखलाबद्ध वार्ता के बाद टकराव वाले कई बिंदुओं से पीछे हटे हैं.
भारत रखे हैं सारे घटनाक्रम पर नजर
जनरल नरवणे ने एक मीडिया हाउस से जुड़े कार्यक्रम में कहा, ‘हां, यह चिंता का विषय है कि बड़े पैमाने पर जमावड़ा हुआ है और यह जारी है और उस तरह के जमावड़े को बनाए रखने के लिए, चीन की ओर बुनियादी ढांचे का इसी पैमाने का विकास भी हुआ है.’ उन्होंने कहा, ‘तो, इसका मतलब है कि वे (पीएलए) वहां बने रहने के लिए हैं. हम इन सभी घटनाक्रम पर कड़ी नजर रखे हुए हैं, लेकिन अगर वे वहां बने रहने के लिए हैं, तो हम भी वहां बने रहने के लिए हैं.’ जनरल नरवणे ने कहा कि भारत की ओर से भी तैनाती और बुनियादी ढांचे का विकास पीएलए के समान है. उन्होंने कहा, ‘लेकिन इससे क्या होगा, खासकर अगर वे दूसरी सर्दियों के दौरान भी वहां पर बने रहना जारी रखते हैं, तो निश्चित रूप से इसका मतलब है कि हम एक तरह की एलसी (नियंत्रण रेखा) की स्थिति में होंगे, हालांकि वैसी सक्रिय एलसी नहीं होगी जैसा कि पश्चिमी मोर्चे पर है.’
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चीन दुस्साहस न करे इस पर भी नजर
सेना प्रमुख ने कहा, ‘लेकिन निश्चित रूप से, हमें सैन्य जमावड़े और तैनाती पर कड़ी नजर रखनी होगी ताकि वे एक बार फिर कोई दुस्साहस ना करें.’ जनरल नरवणे ने एक सवाल के जवाब में कहा कि यह समझना मुश्किल है कि चीन ने ऐसे समय गतिरोध क्यों शुरू किया जब दुनिया कोविड-19 महामारी से जूझ रही थी और जब उसके सामने देश के पूर्वी समुद्र की ओर कुछ मुद्दे थे. उन्होंने कहा, ‘जबकि यह सब चल रहा हो, एक और मोर्चे को खोलने की बात समझना मुश्किल है.’ सेना प्रमुख ने कहा, ‘लेकिन जो भी हो, मुझे नहीं लगता कि वे भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा की गई त्वरित प्रतिक्रिया के कारण उनमें से किसी में भी कुछ भी हासिल कर पाए.’ पूर्वी लद्दाख में समग्र स्थिति पर टिप्पणी करने के लिए कहे जाने पर जनरल नरवणे ने विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता के हालिया बयान का हवाला दिया और कहा कि उन्होंने स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि उत्तरी सीमा पर जो कुछ भी हुआ है, वह चीन की ओर से व्यापक पैमाने पर सैन्य जमावड़े और विभिन्न प्रोटोकॉल का पालन न करने के कारण है.
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दोनों ही देशों के सीमा पर तैनात 50-60 हजार सैनिक
सेना प्रमुख ने कहा कि पूर्वी लद्दाख में गतिरोध के बाद, भारतीय सेना ने महसूस किया कि उसे आईएसआर (खुफिया, निगरानी और टोही) के क्षेत्र में और अधिक करने की जरूरत है. उन्होंने कहा, ‘इसलिए पिछले एक साल में हमारे आधुनिकीकरण की यही सबसे बड़ी ताकत रही है. इसी तरह, अन्य हथियार और उपकरण जो हमने सोचा था कि हमें भविष्य के लिए चाहिए, उन पर भी हमारा ध्यान गया है.’ पैंगोंग झील क्षेत्र में हिंसक झड़प के बाद पूर्वी लद्दाख में पिछले साल 5 मई को भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच सीमा गतिरोध शुरू हुआ था. दोनों पक्षों ने धीरे-धीरे हजारों सैनिकों के साथ-साथ भारी हथियारों के साथ अपनी तैनाती बढ़ा दी. एक श्रृंखलाबद्ध सैन्य और राजनयिक वार्ता के परिणामस्वरूप दोनों पक्षों ने अगस्त में गोगरा क्षेत्र से वापसी की प्रक्रिया पूरी की. फरवरी में, दोनों पक्षों ने एक समझौते के अनुरूप पैंगोंग झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारे से सैनिकों और हथियारों की वापसी पूरी की. वर्तमान में संवेदनशील क्षेत्र में एलएसी से लगे क्षेत्र में दोनों ओर के लगभग 50,000 से 60,000 सैनिक तैनात हैं.
HIGHLIGHTS
- सीमा पर नये बुनियादी ढांचे का विकास चिंता का विषय
- एलएसी के दोनों तरफ हैं 50-60 हजार सैनिक हैं तैनात
- चीन एक कदम आगे दो कदम पीछे की नीति पर चल रहा