दुनियाभर में करीब 1.1 अरब लोग ऐसे हैं जिनकी कोई भी आईडेंटिटी नहीं है। ऐसे में ये लोग बिना किसी पहचान प्रमाण के जिंदगी बिता रहे हैं। ऐसे में ये लोग स्वस्थ्य और शिक्षा जैसी सेवाओं से वंचित हैं।
विश्व बैंक के 'विकास के लिए पहचान' प्रोग्राम (आईडी4डी) ने हाल में आगाह किया है कि ये 'अदृश्य लोग' सबसे ज्यादा अफ्रीका और एशिया में रहते हैं। इन सभी की संख्या में से एक तिहाई लोग वे बच्चे हैं जिनका जन्म के बाद अब तक पंजीयन नहीं हुआ है।
प्रोग्राम की रिपोर्ट में कहा गया है कि यह समस्या मुख्य रूप से उन भौगोलिक क्षेत्रों में जहां पर लोग गरीबी, भेदभाव, महामारी और हिंसा जैसी परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं।
आईडी4डी कार्यक्रम की वैजयंती देसाई ने कहा कि यह मुद्दा कई कारणों की वजह से है। लेकिन, इसकी प्रमुख वजह विकासशील इलाकों में लोगों और सरकारी सेवाओं के बीच दूरी है।
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जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र की प्रतिनिधि एनी सोफी लुईस ने कहा कि कई परिवारों को जन्म पंजीकरण के महत्व के बारे में बताया ही नहीं जाता। पंजीकरण नहीं होने की वजह से बच्चों को उनका मूल अधिकार नहीं मिल पाता।
उन्हें स्कूलों में दाखिला नहीं मिल पाता। यदि माता-पिता को जन्म पंजीकरण की जानकारी भी हो तो भी कई बार लागत की वजह से वे ऐसा नहीं करते हैं।
उन्होंने कहा कि राजनीतिक वातावरण भी कई बार परिवारों को अपनी पहचान उजागर करने के प्रति हतोत्साहित करता है। किसी एक समुदाय या नागरिकता के लोगों के बीच पहचाने जाने का भी डर होता है। यह दुर्भाग्य की बात है कि कई बार सरकारें एक समूह के मुकाबले दूसरे को अधिक वरीयता देती हैं।
चीन जैसे देश में कई साल तक लोगों ने जानबूझकर अपने बच्चों का पंजीकरण इसलिए नहीं कराया क्योंकि उन्हें ‘एक बच्चे की नीति’ के नतीजों का डर था।
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Source : News Nation Bureau