वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने शुक्रवार को सर्वोच्च न्यायालय के चारों शीर्ष न्यायाधीशों की ओर से प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की सार्वजनिक तौर पर आलोचना करने की सराहना की और कहा कि इनलोगों ने पत्र के जरिए लोगों को सत्ता के घोर दुरुपयोग के प्रति आगाह किया है।
उन्होंने कहा कि प्रधान न्यायाधीश राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामलों को चुन कर बांटते हैं।
भूषण ने ट्वीट किया, 'सही मायने में अभूतपूर्व! सर्वोच्च न्यायालय के चार शीर्ष न्यायाधीशों ने आज एक संवाददाता सम्मेलन किया, जिसमें राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामलों को अपेक्षित परिणाम के लिए चुनिंदा कनिष्ठ न्यायाधीशों को दिया जाता है, जो कि सत्ता का घोर दुरुपयोग है।'
वहीं प्रशांत भूषण ने एक टीवी चैनल से कहा, 'मैंने अपने पूरे कॅरियर में प्रधान न्यायाधीश के द्वारा मामले आवंटित करने में पद का ऐसा दुरुपयोग नहीं देखा। अगर उनके पास जरा-सा भी आत्मसम्मान बचा है तो उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए। क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय के चार शीर्ष न्यायाधीशों ने स्पष्ट तौर पर प्रधान न्यायाधीश में अविश्वास जाहिर किया है।'
बता दें कि इससे पहले जजों के नाम पर कथित रिश्वतखोरी के मामले की सुनवाई के दौरान प्रशांत भूषण और सीजेआई के बीच काफी बहस हो गई थी।
भूषण ने चीफ जस्टिस से खुद को इस मामले की सुनवाई से अलग होने को कहा क्योंकि सीबीआई की एफआईआर में कथित तौर पर उनका भी नाम है।
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सीजेआई ने बदले में भूषण से प्राथमिकी की सामग्री को पढ़ने को कहा और उन्हें अपना आपा खोने के खिलाफ चेतावनी दी। जस्टिस मिश्रा ने कहा, 'मेरे खिलाफ निराधार आरोप लगाने के बावजूद हम आपको रियायत दे रहे हैं और आप उससे इनकार नहीं कर सकते। आप आपा खो सकते हैं लेकिन हम नहीं।'
भूषण ने कथित तौर पर न्यायाधीशों से संबंधित भ्रष्टाचार के मामले की जांच के लिए एसआईटी के गठन की मांग करते हुए कहा कि सीजेआई का नाम इसमें है। भूषण एनजीओ ‘कैंपेन फॉर जूडिशियल एकाउन्टैबिलिटी’ और जायसवाल का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।
इसके बाद सीजेआई ने कहा, 'मेरे खिलाफ कौन सी एफआईआर, यह बकवास है। एफआईआर में मुझे नामजद करने वाला एक भी शब्द नहीं है। हमारे आदेश को पहले पढ़ें, मुझे दुख होता है। आप अब अवमानना के लिए जिम्मेदार हैं।'
भूषण ने पीठ को उन्हें अवमानना का नोटिस जारी करने की चुनौती दी और कहा कि उन्हें बोलने की अनुमति दिए बिना इस तरीके से सुनवाई नहीं चल सकती।
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लेकिन सीजेआई ने कहा कि आप अवमानना के लायक नहीं हैं। भूषण सुनवाई के दौरान न्यायालय से यह आरोप लगाते हुए बाहर निकल गए कि अदालत ने सबको सुना, लेकिन उन्हें बोलने की अनुमति नहीं दी जा रही है। अदालत कक्ष से निकलने के दौरान उनके साथ वस्तुत: धक्का-मुक्की हुई।
सर्वोच्च न्यायालय में शीर्ष स्तर पर असंतोष तब खुलकर बाहर आ गया, जब इसके चार वरिष्ठ न्यायाधीशों ने सार्वजनिक रूप से शुक्रवार को प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा पर मामलों को उचित पीठ को आवंटित करने के नियम का पालन नहीं करने का आरोप लगाया।
भारत के न्यायिक इतिहास में एक ऐतिहासिक घटना के तहत न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ और न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर ने न्यायिक संस्थान को बचाने की जरूरत पर जोर दिया और कहा कि 'लोकतंत्र को जिंदा रखने के लिए निष्पक्ष न्याय प्रणाली की जरूरत है।'
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Source : News Nation Bureau