भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और राज्यसभा सांसद भूपेंद्र यादव ने 'वन नेशन, वन इलेक्शन' के लिए फिलहाल कानून बनाने की संभावना से इनकार करते हुए कहा है कि सभी राजनीतिक दलों में आपसी सहमति के बाद ही इसे लागू किया जाएगा. उन्होंने देश मे एक साथ चुनाव से कई फायदे गिनाते हुए कहा कि इससे देश और राज्यों की विकास योजनाओं को रफ्तार मिलेगी. बार-बार चुनाव और उसके कारण लगने वाली आचार संहिता से विकास के काम बाधित नहीं होंगे. एक साथ चुनाव से कालेधन पर भी अंकुश लगेगा.
आजादी के बाद 4 चुनाव ऐसे ही हुए
भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया सह प्रभारी और राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ. संजय मयूख की ओर से आयोजित वेबिनार में देश के तमाम बुद्धिजीवियों को संबोधित करते हुए भूपेंद्र यादव ने कहा कि वन नेशन-वन इलेक्शन कोई नई खोज नहीं है. आजाद भारत का पहला लोकसभा चुनाव भी इसी तर्ज पर हुआ था. 1952, 1957, 1962 और 1967 का चुनाव इसी अवधारणा पर कराए जा चुके हैं. क्या राजनीतिक दलों को एक साथ चुनाव के लिए राजी करना आसान होगा? इस सवाल का जवाब देते हुए भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव भूपेंद्र यादव ने कहा कि दो-तीन स्तर पर राजनीतिक दलों से चर्चा हो चुकी है. पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमेटी की रिपोर्ट आ चुकी है, जिसकी अध्यक्षता कांग्रेस के ही सांसद ने की थी. इसमें कई दलों के सांसद शामिल थे.
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सभी दलों से बात कर बनेगी सहमति
भूपेंद्र यादव ने कहा, अभी बीएस चौहान के नेतृत्व में लॉ कमीशन ने जो रिपोर्ट दी थी, उसमें भी राजनीतिक दलों की राय थी. जो असहमति होगी उसे दूर करने की कोशिश होगी. पीएम मोदी के नेतृत्व में जीएसटी, आर्थिक आधार पर दस प्रतिशत आरक्षण, श्रम सुधार सहित जितने भी रिफार्म्स हुए सभी दलों को सहमत करके हुए. हम लोग इस दिशा में सक्रिय हैं और राजनीतिक दलों से बातचीत कर उन्हें एक साथ चुनाव के लिए सहमत करेंगे. प्रधानमंत्री मोदी कई मौकों पर वन नेशन, वन इलेक्शन की चर्चा कर चुके हैं. ऐसे में भाजपा की ओर से चुनाव सुधार अभियान के तहत 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' के मुद्दे पर राष्ट्रीय सहमति तैयार करने के लिए ऐसे कार्यक्रम हो रहे हैं. इसी सिलसिले में आयोजित हुए इस वेबिनार में भूपेंद्र यादव ने कहा कि 'वन नेशन, वन इलेक्शन के खिलाफ विपक्ष की आपत्तियों को भी दूर करने का प्रयास किया जाएगा. उन्होंने कहा कि एक साथ चुनाव होने की स्थिति में धन के अभाव में क्षेत्रीय दलों के चुनाव प्रचार में राष्ट्रीय दलों से पिछड़ने की आशंका भी बेमानी है. इसके बजाय बार-बार चुनाव होने से क्षेत्रीय दलों पर अधिक आर्थिक बोझ पड़ता है.
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क्षेत्रीय दलों की आशंकाएं बेबुनियाद
एक साथ चुनाव पर राष्ट्रीय मुद्दों के हावी होने से क्षेत्रीय दलों के नुकसान की आशंका खारिज करते हुए उन्होंने पिछले साल लोकसभा चुनाव के साथ हुए ओडिशा और तेलंगाना के विधानसभा चुनाव का उदाहरण दिया. कहा कि दोनों राज्यों में मतदाताओं ने लोकसभा के लिए भाजपा को तरजीह दी, जबकि विधानसभा के लिए क्रमश: बीजू जनता दल और टीआरएस के उम्मीदवारों को जिताया. इसी तरह झारखंड में लोकसभा चुनाव में मतदाताओं की पहली पसंद भाजपा रही, लेकिन चार महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में उन्होंने झामुमो को ज्यादा पसंद किया.
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राजनीतिक स्थितरता आएगी
भूपेंद्र यादव ने कहा कि एक साथ चुनाव से राज्यों को बार-बार आचार संहिता का सामना नहीं करना पड़ेगा. राजनीतिक स्थिरता आएगी. उन्होंने कहा कि 2018 में संसद की स्टैंडिग कमेटी ने भी इस मुद्दे पर एक रिपोर्ट तैयार की थी जिसमें इसके कई फायदे गिनाए थे. भूपेंद्र यादव ने कहा कि आधिकारिक तौर पर इलेक्शन कमीशन ने पहली बार साल 1983 में इसे लेकर सुझाव दिया था. लॉ कमीशन ने भी साल 1999 में वन नेशन, वन इलेक्शन की वकालत की थी. दिसंबर 2015 में 'लोक सभा और राज्य विधान सभाओं के लिए एक साथ चुनाव आयोजित करने की व्यवहार्यता' रिपोर्ट पर पार्लियामेंट की स्टेंडिंग कमेटी ने एक साथ चुनाव आयोजित करने पर एक वैकल्पिक और व्यावहारिक तरीका अपनाने की सिफारिश की थी.