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पीएम नरेंद्र मोदी का सपना है 'एक देश, एक चुनाव'. आखिर ये है क्या, जानिए इसके फायदे और नुकसान

देश में 1951-52, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ-साथ आयोजित किए गए थे.

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Vikas Kumar
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पीएम नरेंद्र मोदी का सपना है 'एक देश, एक चुनाव'. आखिर ये है क्या, जानिए इसके फायदे और नुकसान

एक राष्ट्र, एक चुनाव

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केन्द्र में दोबारा नरेन्द्र मोदी सरकार (Narndra Modi Government) बनने के बाद देश में एक बार फिर से 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' (One Nation One Election) बहस का मुद्दा बन गया है. हालांकि इस मुद्दे पर दो अलग अलग मतों के लोगों के बीच टकराव देखने को मिल रहा है. जो लोग चाहते है कि देश में एक ही बार चुनाव हो वो इसके फायदे गिना रहे हैं जबकि जो इसके खिलाफ है वो इसकी कमियां बता रहे हैं. इसे लेकर पीएम नरेंद्र मोदी ने सभी पार्टियों की सर्वदलीय बैठक बुलाई है. 

क्या है एक देश, एक चुनाव:

एक देश, एक चुनाव के तहत देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव दोनों एक साथ ही करवाये जाने का पक्ष है. इसके मुताबिक देश में 5 साल में केवल एक बार ही चुनाव होगा
इस मुद्दे पर सरकार का तर्क है कि इससे न केवल समय की बचत होगी, बल्कि देश को बार-बार पड़ने वाले आर्थिक बोझ से भी मुक्ति मिलेगी. इस बहस में फिलहाल लोकसभा और विधानसभा चुनावों के बारे में ही बात हो रही है. नगरीय निकाय चुनावों के बारे में कुछ नहीं कहा जा रहा है.

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कब से उठी मांग
वर्ष 2003 में जब केंद्र में बीजेपी की सरकार थी तब लालकृष्ण आडवाणी ने इस मुद्दे को उठाया था कि केंद्र सरकार लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाने के मुद्दे पर गंभीरता से विचार कर रही है.

आइये जानते हैं कि एक राष्ट्र, एक चुनाव के क्या फायदे और नुकसान हैं-

फायदे

1- पैसों की बचत होगी- लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक ही बार कराने से सरकार पर आर्थिक रुप से बोझ कम होगा. एक रिपोर्ट के मुताबिक 2009 के लोकसभा चुनाव में 1100 करोड़ और 2014 के लोकसभा चुनाव में 4000 करोड़ रुपए खर्च हुआ था. सन 2019 में हर मतदाता के पीछे 72 रुपये का खर्च बताया जा रहा है.

2- कालाधन- चुनावों में कालेधन का बहुत उपयोग होता है. उम्मीदवार तय सीमा से कहीं ज्यादा पैसे खर्च करते हैं यदि देश में केवल एक ही बार चुनाव होते हैं तो चुनाव में कालेधन के उपयोग में कमी आएगी.

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3- आचार संहिता - देश में एक ही बार चुनाव होने का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि राज्यों पर बार-बार आचार-संहिता नहीं लागू करना होगा.

4- सरकारी कर्मचारी- बार बार चुनावों में शिक्षकों और सरकारी कर्मचारियों को भी केवल एक ही बार परेशान होना पड़ेगा. इससे अन्य क्षेत्रों में, खासकर शिक्षा का नूकसान नहीं होगा.

5- लोगों के बीच कम होंगी दूरियां- चुनावों के दौरान देखा गया है कि वोट बैंक के लिए नेता धर्म और जाति के मुद्दों को उठाते रहते हैं. इस तरह से दो धर्म या संप्रदायों के बीच दूरियां बढ़ जाती है. यदि देश में केवल एक ही बार चुनाव होंगे तो ऐसी स्थिति 5 सालों में केवल एक ही बार आएगी और लोगों में एक दूसरे के लिए प्यार बढ़ सकेगा.

'एक देश एक चुनाव' के नुकसान

1- चुनाव परिणाम आने में होगी देरी- यदि एक बार ही लोकसभा और विधानसभा चुनाव होंगे तो चुनाव के परिणाम आने में देरी होगी क्योंकि दोनों के ही डेटा को प्रॉसेस करने में समय लगेगा.

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2- क्षेत्रीय पार्टियों को होगा नुकसान- इसका सबसे बड़ा नुकसान क्षेत्रीय पार्टियों के ऊपर देखने को मिलेगा क्योंकि जहां क्षेत्रीय पार्टियां सीमित संसाधनों के साथ चुनाव लडेंगी वहीं राष्ट्रीय स्तर की पार्टियां उनसे कई गुना आगे होंगी.

3- क्षेत्रीय मुद्दे- एक बार चुनाव कराने से छोटे और क्षेत्रीय मुद्दे बिल्कुल ही खत्म हो जाएंगे क्योंकि मतादाता पर बड़े और राष्ट्रीय मुद्दों का ज्यादा प्रभाव पडेगा.

4- संविधान संशोधन- कई राजनेताओं का कहना है कि बिना संविधान संशोधन के देश में एक साथ चुनाव नहीं कराया जा सकता है. मत ये है कि जब तक आप सदन के लिए कार्यकाल निर्धारित नहीं करेंगे, यह संभव नहीं है.

बता दें कि देश में 1951-52, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ-साथ आयोजित किए गए थे.

HIGHLIGHTS

  • देश भर में छिड़ी है एक देश, एक चुनाव पर बहस.
  • पहले भी कई बार एक साथ हो चुके हैं चुनाव.
  • ये होंगे एक देश, एक चुनाव के फायदे-नुकसान.

Source : News Nation Bureau

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