मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा और साथी आयुक्त राजीव कुमार और अनूप चंद्र पांडे ने हाल ही में चुनाव आयोग और कानून मंत्रालय के बीच प्रमुख चुनावी सुधारों की समझ में अंतर को पाटने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय के साथ एक अनौपचारिक बातचीत की. इस बातचीत को लेकर विपक्ष ने केंद्र पर कड़ा हमला किया है.। हालांकि चुनाव आयोग के सूत्रों ने जोर देते हुए कहा कि ऐसा करने में औचित्य का कोई सवाल नहीं उठता है. उन्होंने बताया कि आयोग चुनाव कानूनों में सुधारों और संबद्ध मुद्दों पर जोर देता रहा है तथा नवंबर में डिजिटल माध्यम से हुई बातचीत कानून मंत्रालय एवं निर्वाचन आयोग के बीच विभिन्न बिंदुओं पर परस्पर समझ को समान बनाने के लिए की गई.
इस घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए विपक्ष ने केंद्र सरकार पर प्रहार किया और आरोप लगाया कि वह निर्वाचन आयोग से अपने मातहत जैसा व्यवहार कर रही है. कांग्रेस महासचिव एवं मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने आरोप लगाया कि सरकार देश में संस्थाओं को नष्ट करने के मामले में और अधिक नीचे गिर गई है. सुरजेवाला ने कहा, ‘चीजें बेनकाब हो गई हैं. अब तक जो बातें कही जा रही थी वे सच हैं.' उन्होंने आरोप लगाया, ‘स्वतंत्र भारत में कभी नहीं सुना गया था कि प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा मुख्य निर्वाचन आयुक्त को तलब किया गया हो. निर्वाचन आयोग के साथ अपने मातहत के तौर पर व्यवहार करने से साफ है कि (नरेंद्र) मोदी सरकार हर संस्था को नष्ट करने के मामले में और भी नीचे गिर चुकी है.’ निवार्चन आयोग सूत्रों ने कहा कि चुनाव सुधारों पर सरकार और आयोग के बीच सिलसिलेवार पत्राचार के बीच, पीएमओ ने तीनों आयुक्तों के साथ अनौपचारिक बातचीत आयोजित करने की पहल की.
इस खबर के बारे में पूछे जाने पर कि कानून मंत्रालय ने आयोग को एक पत्र भेज कर कहा था कि प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव सामान्य मतदाता सूची पर एक बैठक की अध्यक्षता करेंगे और ‘उम्मीद की जाती है कि सीईसी उपस्थित रहेंगे. सूत्रों ने कहा कि तीनों आयुक्त औपचारिक बैठक में शरीक नहीं हुए. इस खबर पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पूर्व मुख्य निवार्चन आयुक्त एस.वाई. कुरैशी ने कहा कि यह बिल्कुल ही स्तब्ध कर देने वाला है. अपनी टिप्पणी को विस्तार से बताने का आग्रह किये जाने पर उन्होंने कहा कि उनके शब्दों में हर चीज का सार है. सूत्रों ने बताया कि कानून मंत्रालय के अधिकारयों के अलावा आयोग के वरिष्ठ अधिकारी औपचारिक बैठक में शरीक हुए.
कानून मंत्रालय में विधायी विभाग निर्वाचन आयोग से जुड़े विषयों के लिए नोडल एजेंसी है. सूत्रों ने बताया कि पीएमओ के साथ अनौपचारिक बातचीत का परिणाम केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में दिखा, जिसने विभिन्न चुनाव सुधारों को मंजूरी दी, जिस पर आयोग जोर दे रहा था. इन सुधारों में आधार को स्वैच्छिक आधार पर मतदाता सूची से जोड़ना, हर साल चार तारीखों को पात्र युवाओं को मतदाता के तौर पर अपना पंजीकरण कराने की अनुमति देना आदि शामिल हैं. सूत्रों ने इस बात का जिक्र किया कि महत्वपूर्ण चुनाव सुधार पिछले 25 वर्षों से लंबित हैं. आयोग चुनाव सुधारों के लिए जोर देते हुए सरकार को पत्र लिखता रहा है और कानून मंत्रालय स्पष्टीकरण मांगता रहा है. सूत्रों ने बताया कि अनौपचारिक बातचीत ने मुख्य मुद्दों पर सहमति बनाने में मदद की। आयोग के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, ‘इस तरह से सुधार करने होंगे.
सूत्रों ने कहा कि सुधारों के लिए जोर देने में कोई औचित्य नहीं है. उन्होंने याद दिलाया कि मुख्य निर्वाचन आयुक्तों ने (पूर्व कानून मंत्री) रविशंकर प्रसाद सहित मौजूदा कानून मंत्री किरेन रिजिजू को पत्र लिखे थे तथा चुनाव सुधार लागू करने में उनकी मदद मांगी थी. आमतौर पर, कानून मंत्री और विधायी सचिव निर्वाचन सदन में विभिन्न मुद्दों पर निर्वाचन आयुक्तों के साथ बैठक करते रहे हैं. आयुक्तों ने प्रोटोकॉल के तहत कभी मंत्रियों के साथ बैठक नहीं की, क्योंकि आयोग एक स्वतंत्र संवैधानिक संस्था है. इस बीच कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने चुनाव सुधार पर पीएमओ में एक बैठक के लिए आयोग को तलब करने के मुद्दे पर शुक्रवार को लोकसभा में कार्यस्थगन प्रस्ताव का नोटिस दिया. तिवारी ने नोटिस में निर्वाचन आयोग की स्वायत्ता पर सवाल खड़े किये.
HIGHLIGHTS
- चुनाव सुधारों पर पीएमओ औऱ निर्वाचन अधिकारियों में चर्चा
- कांग्रेस ने चुनाव आयोग की स्वायत्ता पर हमला करार दिया