भारत में जब अग्निपथ योजना लागू हुई तो इसको लेकर काफी बवाल मचा, तोड़फोड़ और हिंसक प्रदर्शन भी हुए.कई महीने के बाद भारत में यह मामला तो थम गया है लेकिन अब नेपाल में अग्निपथ पर बवाल शुरू हो गया है जिसे हवा यहां की सियासी पार्टियां दे रही हैं. इस बवाल की वजह से नेपाल के बुटवल में होने वाले भारतीय सेना के गोरखा जवानों की भर्ती पर रोक लगा दी गयी है.नेपाल में अग्निपथ योजना के इस विरोध का कौन उठाना चाहता है फायदा और इससे दोनों देशों के सम्बन्धों पर क्या पड़ेगा असर.
भारत में अग्निपथ की अग्नि अभी पूरी तरह शांत भी नहीं हुई थी कि अब नेपाल में इस योजना को लेकर बवाल शुरू गया है.गोरखा रेजिमेंट में नेपाली युवकों की भर्ती को नेपाल में रोक दिया गया है.नेपाल सरकार ने भारत के साथ इस पूरे विवाद के सुलझने तक बुटवल में होने वाली भारतीय सेना के गोरखा जवानों की भर्ती पर रोक लगाने का निर्देश दिया है.
इसकी वजह से नेपाल के उन युवाओं को काफी निराशा हुई है जो पिछले कई साल से गोरखा रेजिमेंट में जाने की तैयारी कर रहे थे.नेपाल के बुटवल में 2 साल से ट्रेनिंग ले रहे नेपाली युवाओं और उनके ट्रेनर का कहना है कि उनके सामने असमंजस की स्थिति बनी हुई है कि आखिर इस 4 साल की योजना से उनका फायदा होगा या फिर नुकसान.हर कोई इस योजना का नुकसान ही अभी तक गिना रहा है. ऐसे में उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि वह आगे अब किस चीज की तैयारी करें.
भारतीय सेना अपनी गोरखा रेजिमेंट के लिए ब्रिटिश शासन के बाद से नेपाल से गोरखा सैनिकों की भर्ती करती रही है.इससे पहले जून में मोदी सरकार ने नेपाल सरकार से पूछा था कि अग्निपथ योजना पर उसकी क्या राय है? उस समय शेर बहादुर देउबा सरकार ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.इसी बीच लुंबिनी प्रांत के बुटवल में 25 अगस्त को गोरखा रेजिमेंट की भर्ती प्रक्रिया शुरू होने वाली थी जिसकी तैयारियां पूरी कर ली गयी थी. लेकिन अब भारतीय सेना की भर्ती स्थगित पर रोक लगा दी गई है.
भारतीय पक्ष ने इससे पहले जून में नेपाल सरकार को सूचित किया था कि वह 25 अगस्त को बुटवल और 1 सितंबर को धरान में गोरखा सैनिकों की भर्ती करना चाहता है.हालांकि नेपाल सरकार ने इस पर कोई जवाब नहीं दिया, जिससे नेपाली युवकों की भारतीय सेना में भर्ती को लेकर कई प्रश्न खड़े हो गए हैं.नेपाल में हो रहे प्रदर्शन को लेकर भारत के सियासी दलों ने भी इसके लिए बीजेपी को कठघरे में खड़ा किया है और गोरखा रेजिमेंट की नेपाल में भर्ती रद्द होने के लिए भी इस योजना की कमी को जिम्मेदार ठहराया है.
नेपाल में एक तबका हमेशा से भारतीय सेना में नेपाली युवाओं की भर्ती का विरोध करता रहा है.वहीं दूसरे धड़े का कहना है कि अग्निपथ योजना के तहत नेपाली युवाओं की भर्ती 1947 में नेपाल, भारत और ब्रिटेन सरकार के बीच हुई त्रिपक्षीय संधि का उल्लंघन है.नेपाल में अग्निपथ योजना के तहत 1300 सैनिकों की भर्ती की जानी है लेकिन इस विवाद से युवाओं की भर्ती नहीं हो पाएगी.
नेपाल के मंत्रियों का कहना है कि भारतीय सेना में 4 साल की सेवा के बाद निकाल दिए जाने वाले युवाओं का भविष्य क्या होगा.उन्होंने आशंका व्यक्त की कि इन युवकों का दुरूपयोग हो सकता है.हालांकि इनका मानना है कि नेपाल सरकार जल्द ही अग्निपथ योजना को लेकर फैसला लेगी लेकिन तब तक भर्ती प्रक्रिया को रोकना ही उचित होगा.इनका मानना है कि यह 1947 की भारत नेपाल और इंग्लैंड की संधि का उल्लंघन भी है.
हालांकि गोरखा रेजिमेंट के पूर्व सैनिकों का कहना है कि नेपाल के नेता सत्ता के लिए युवाओं के भविष्य से खेल रहे हैं.नेपाल की राजनीतिक पार्टियाँ वोट बैंक के नज़रिए से अपने फ़ायदे और नुक़सान की कसौटी पर फ़ैसले लेती हैं.इनको अग्निपथ योजना में कोई ख़राबी नहीं दिखती है.इनका मानना है कि चार साल बाद भी नेपाली युवा भारतीय सेना से लौटेंगे तो अच्छा ख़ासा पैसा मिलेगा.उन्हें जो ट्रेनिंग मिलेगी उससे दूसरी नौकरी भी हासिल कर सकते हैं.नेपाल के नेताओं को समझना होगा कि भारतीय फौज से नेपालियों को जितनी पेंशन मिलती है, उतना नेपाल का रक्षा बजट भी नहीं है.
हालांकि जानकारों का मानना है कि नेपाली गोरखा ब्रिटेन और भारत की सेना में एक ऐतिहासिक समझौते के ज़रिए जाते हैं लेकिन सिंगापुर पुलिस और ब्रूनेई की सेना में तो बिना किसी संधि के ही जा रहे हैं.यह सब कुछ सियासी एजेंडे के तहत किया जा रहा है.नेपाल के कम्युनिस्टों को भारत को लेकर कुछ न कुछ करते रहना उनकी राजनीति की मजबूरियां हैं.इनका मानना है कि अग्निपथ का असर नेपाल पर बहुत व्यापक होगा.
भारतीय सेना में अभी 35,000 नेपाली गोरखा हैं.इसके अलावा भारतीय सेना से रिटायर्ड नेपाली गोरखाओं की तादाद 1.35 लाख है.इनकी सैलरी और पेंशन मिला दें तो यह रक़म 62 करोड़ डॉलर है.यह नेपाल की जीडीपी का तीन फ़ीसदी है.दूसरी तरफ़ नेपाल का रक्षा बजट महज़ 43 करोड़ डॉलर है.यानी नेपाल के रक्षा बजट से ज़्यादा भारत से नेपाली गोरखाओं को हर साल सैलरी और पेंशन मिल रही है.अग्निपथ योजना के लागू होने से यह बड़ी रकम नेपाल को नही मिलेगी और विरोध की एक बड़ी वजह यह भी मानी जा रही है.
माना जा रहा है कि अग्निपथ योजना के सभी प्रावधान गोरखा रेजिमेंट पर भी लागू होंगे.भारतीय सेना की गोरखा रेजिमेंट में केवल नेपाली नागरिकों और नेपाली बोलने वाले युवकों को भर्ती किया जाता है.इस योजना के तहत भर्ती किए गए 75 फीसदी युवक 4 साल में रिटायर हो जाएंगे और 25 फीसदी को भारतीय सेना में पूरी सेवा अवधि के लिए नौकरी मिलेगी.नेपाल में एक धड़ा इस योजना का विरोध कर रहा है.इनका कहना है कि यह अग्निपथ योजना ब्रिटेन, भारत और नेपाल के बीच साल 1947 में हुई संधि का उल्लंघन है.
इस संधि के तहत नेपाली युवकों की भारतीय सेना में भर्ती की जाती है और उन्हें भारतीय सैनिकों की तरह से समान वेतन, पेंशन और अन्य सुविधाएं दी जाएंगी.सियासी दलों के साथ नेपाल के कुछ पूर्व सैनिकों ने भी 4 साल की योजना पर सवाल खड़े किए हैं और इनकी मांग है कि इस पूरे मामले को भारत सरकार के साथ उठाया जाए और हल नहीं होने तक नेपाली युवकों की भर्ती को बंद कर दिया जाए.
ऐसा नहीं है कि सिर्फ नेपाल के ही युवा गोरखा रेजीमेंट में सैनिक बनते हैं.भारत नेपाल सीमा के भारतीय क्षेत्र के नेपाली गावों के युवा भी गोरखा रेजीमेंट में जाने की तैयारी करते हैं.नेपाल में भर्ती रद्द होने से इनकी भी तैयारियों पर रोक लग गया है.हालांकि इनके हौसले बुलंद है और यह अग्निपथ योजना को सही मानते हैं.इनका कहना है कि 4 साल के बाद भले ही 25% लोगों को नौकरी मिलेगी बाकी 75% रिटायर्ड कर दिए जाएंगे लेकिन सरकार द्वारा इन 4 सालों में मिले रुपयों और ट्रेनिंग से वह अपने जीवन में आगे भी काफी अच्छा कर सकते हैं.
वर्तमान समय में 34 हजार नेपाली युवा भारतीय सेना के गोरखा रेजिमेंट में तैनात हैं.अग्निपथ योजना के तहत अभी 1300 युवाओं की भर्ती की जानी है और इसमें से भी 25 फीसदी को स्थायी नौकरी मिलेगी.अग्निपथ योजना को लेकर नेपाल को उन तमाम सियासी दलों को अपनी सियासत चमकाने का मौका मिल गया है जो भारत के खिलाफ बयानबाजी करते रहते हैं.4 साल के इस योजना को आधार बनाकर जिस तरह से नेपाल में अग्निपथ योजना के खिलाफ एक माहौल तैयार किया जा रहा है उस वजह से यहां के हजारों नेपाली बच्चों के भविष्य पर संकट के बादल मंडराते हुए दिख रहे हैं.