राम किशन जैसी मौत हर किसी की नहीं होती। हर मौत सियासत के गलियारों में ऐसा उथल-पुथल नहीं मचा पाती। बात फूल चढाने, टीवी पर दिखाने और अनुकम्पा की घोषणाओं तक पहुँच दम तोड़ देती है और शहीदों की लिस्ट लंबी होती चली जाती है। फिर ऐसी क्या बात है कि राम किशन की मौत पर इतनी सियासत जबकि बाकी फौजियों की मौत पर कॉस्मेटिक सी मोहब्बत!
20 फौजी उरी में मारे गए। उसके बाद भी उनकी शहादत का सिलसिला जारी है। उनके परिजनों से कौन मिल रहा है? कौन से सियासतदां उनके बुरे वक़्त में साथ दे रहे हैं? उनके लिए लिए कौन आंसू बहा रहा है?
सच कहें तो कोई नहीं! वो देश के नाम खेत हुए। देश की रक्षा उनका काम है और काम करते हुए उन्होंने अपनी जान दे दी। इस सपाट सी बात में शायद राजनीति की संभावना कम है। शायद तभी तो राजनीतिज्ञ उनके घर नहीं जाते, परिजनों को दिलासा-सांत्वना नहीं देते। लेकिन राम किशन की मौत ने खेल पलट दिया है।
आप जानते हैं कि पूर्व सैनिक राम किशन ने आत्महत्या कर ली। वो 'वन रैंक-वन पेंशन' में हुए धोखे का हवाला देते हुए अपने बेटे को जब इस बात बताया कि उन्होंने सल्फास खा ली है तो हैरान बेटे ने पूछा: 'यो क्या कर लिया आपने?'
राम किशन ने ज़िंदा रहते देखा होगा कि सैनिकों के बलिदान की बात हर आदमी के ज़ुबान पर है। उरी में हुए हमले और जवाबी कार्रवाई में सर्जिकल स्ट्राइक ने सैनिकों को भारत में हो रहे बहसों के केंद्र में ला दिया।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपील की कि इस दीपावली 'एक दिया जवानों के नाम' जलाई जाय। पूरे देश ने दीपावली पर फौजियों के नाम दिया जलाया। क्या फ़िल्मी सितारे, क्या सियासी नेता, मानो होड़ मच गयी कि सैनिको को उनकी हिम्मत और त्याग का बकाया दिया जाय। क्या यह बात भी राम किशन को साल रही होगी कि पूरा देश सैनिकों को सर-आँखों पर लिये है पर उन्हें तो उनका पूरा पेंशन भी नसीब नहीं!
पर उन्हें शायद ये नहीं पता ना हो कि उनकी ख़ुदक़ुशी सियासत में ऐसा भूचाल ला देगी। राम किशन को ये भी नहीं पता होगा कि उनके 'शहीद होने या ना होने' पर ऐसा बवाल मचेगा। सता पक्ष और विपक्ष में ऐसी तनातनी हाल के दिनों में देखने को नहीं मिली है।
सपा नेता मुलायम ने कहा कि पीएम मोदी को उरी हमले के शहीदों के घर जाना चाहिए। कहा कि जब वो रक्षा मंत्री थे तो मिलने पहुँचते थे। दूसरी तरफ भाजपा कहती नहीं थम रही कि लाश पर सियासत ना हो। विपक्षी फिर पूछते हैं कि शुरू किसने किया? लब्बोलुआब ये आप सर्जिकल स्ट्राइक बेचोगे तो सामने वाले उरी अटैक बेचेंगे, राम किशन की मौत बेचेंगे।
हासिल क्या? बयान, खंडन, धरना, प्रदर्शन, गिरफ़्तारी, मारामारी! सैनिक बुरी हालत में काम करने और अंततः 'शहीद' हो जाने के लिए अभिशप्त हैं। आम जनता राजनीतिज्ञों के फूहड़ प्रहसन को देखने को अभिशप्त हैं।
Source : आशीष भारद्वाज