भारतीय खुफिया विभाग के एक पूर्व अफसर ने पाकिस्तान को चेताते हुए कहा है कि कश्मीर को लेकर पाकिस्तान की सनक की वजह से वहां की सेना सत्ता के ऊपर हावी हो गई है और सुप्रीम बन गई है। यह सेना के प्रभुत्व का ही नतीज़ा है कि पाकिस्तान में कई आतंकी संगठनों का जन्म हुआ और इसकी वजह से उनके देश का लोकतंत्र ख़त्म हो गया है।
रॉ में स्पेशल सेक्रटरी रहे ज्योति के. सिन्हा ने इंडियन डिफेंस रिव्यू में लिखा है, 'मोहम्मद अली जिन्ना की जल्द हुई मौत और प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की हत्या के बाद से यह शुरू हो गया था। पाकिस्तान मूवमेंट से जुड़े इन दो दिग्गजों ने देश को लोकतांत्रिक दिशा दी थी लेकिन इनके जाने के बाद पाकिस्तान सेना हावी हो गई और धीरे-धीरे कश्मीर राष्ट्रीय जुनून बनने लगा। कश्मीर मिशन ने सेना को पाकिस्तान में प्रभुत्व स्थापित करने में मदद की और उन्हें अकाट्य बना दिया। नतीज़ा यह हुआ कि पाकिस्तान सेना बन गया जिसके पास एक देश है। इससे पहले पाकिस्तान एक देश था और उसके पास सेना हुआ करती थी।'
ज्योति के. सिन्हा ने आगे कहा कि पाकिस्तानी सेना में पंजाब के मुस्लिमों का सबसे अधिक दबदबा हो गया जबकि देश में रह रहे दूसरे समुदाय के लोगों की सेना में उपस्थिति नहीं के बराबर रह गई। उन्होंने आगे कहा, 'पाकिस्तान सेना में कोई बलूची या सिंधी जनरल नहीं है। हालांकि वहां थोड़े बहुत पश्तून आर्मी अफसर ज़रूर हैं लेकिन वह भी किसी टुकड़ी का प्रमुख होने का सिर्फ ख़्वाब ही देख सकते हैं।'
सिन्हा ने आगे एक दिलचस्प घटना की व्याख्या करते हुए कहा, '1971 की जंग के फौरन बाद पाक आर्मी के रिटायर्ड जनरल लेफ्टिनेंट जनरल हबीबुल्ला खान बिहार रेजिमेंटल सेंटर, दानापुर कैंट पटना दौरे पर आए हुए थे। दरअसल हबीबुल्ला ख़ान ने बिहार रेजिमेंट में एक युवा अफसर के तौर पर अपना करियर शुरू किया था। इसलिए उन्हें बिहार रेजिमेंटल सेंटर दानापुर के गोल्डन जुबिली सेलिब्रेशन में विशिष्ट अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया गया था। इस दौरान उन्होंने रॉयल इंडियन मिलिटरी कॉलेज, देहरादून के अपने एक बैचमेट से कहा कि पाकिस्तान सेना में उनका रेकॉर्ड शानदार होने के बावजूद वह आर्मी चीफ नहीं बन पाए क्योंकि वह पश्तून थे।'
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पूर्वी पाकिस्तान में पंजाबी मुस्लिम विरोधी भावना के कारण ही बंगाली राष्ट्रवाद की भावना ने जोर पकड़ा था। पाकिस्तान पंजाब के लोग घमंड में बंगाली मुसलमानों को राजनीतिक सत्ता देने से इनकार कर रहे थे। नतीजतन 1971 की जंग हुई और पाकिस्तान को इसका खामियाजा दो टुकड़े में बंटकर भुगतना पड़ा।
सिन्हा ने आगे बताया, '1970 के चुनावों में शेख मुजीबुर्रहमान की पार्टी ने पाकिस्तान की नैशनल असेंबली में बहुमत हासिल किया था लेकिन उन्हें देश के प्रधानमंत्री का पद देने से साफ इनकार कर दिया गया। इसके बाद क्या हुआ वह सभी जानते हैं पर अब भी पाक पंजाबी मुसलमानों का नजरिया नहीं बदला है।'
सिन्हा ने आगे अपने लेख में लिखा है कि साफ दिखाई देता है कि पाकिस्तान की तुलना में बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था बेहतर स्थिति में है। 2017 में बांग्लादेश की GDP ग्रोथ 7.30 फीसदी जबकि पाकिस्तान की 4.71 फीसदी ही थी। पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार अप्रैल 2018 में 17,539 मिलियन डॉलर और यह तेजी से घट रहा है वहीं, बांग्लादेश का विदेशी मुद्रा भंडार 30,937 मिलियन डॉलर है और यह बढ़ रहा है।
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उन्होंने बताया है कि बांग्लादेश की फौज देश की निर्वाचित सरकार के तहत काम कर रही है और देश में लोकतंत्र स्थिर है जबकि पाकिस्तान का भविष्य अनिश्चित है। सिन्हा आगे कहते हैं, 'कहा जाता है कि इतिहास खुद को दोहराता है और अगर पाकिस्तान ने सबक नहीं सीखा तो ऐसा होने की पूरी संभावना है। पाकिस्तान के संसाधनों पर वहां की सेना का कब्जा है। बंटवारे के बाद के कश्मीर का उसका अजेंडा पूरा नहीं हुआ है। पाकिस्तान कुछ भी करके कश्मीर हासिल करना चाहता है।'
Source : News Nation Bureau