आधार मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय पीठ के सदस्य न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ ने बुधवार को कहा कि आधार अधिनियम को धन विधेयक के रूप में नहीं लिया जा सकता और इसे धन विधेयक के रूप में पारित करना संविधान के साथ एक धोखा होगा. उन्होंने अपने एक अलग फैसले में कहा, "आधार अधिनियम को धन विधेयक के रूप में नहीं लिया जा सकता. एक ऐसा विधेयक, जो कि धन विधेयक नहीं है, उसे धन विधेयक के रूप में पारित करना संविधान के साथ धोखा है."
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि एक विधेयक को धन विधेयक के रूप में लिया जाए, या नहीं, इस पर लोकसभा अध्यक्ष के फैसले को न्यायिक समीक्षा के लिए भेजा जा सकता है. उन्होंने कहा, "आधार को धन विधेयक के रूप में नहीं लाया जाना चाहिए था. सदन का अध्यक्ष राज्यसभा की शक्तियों को नहीं छीन सकता, जो कि संविधान की एक रचना है. कोई शक्ति पूर्ण नहीं है."
भिन्न मत जाहिर किया
कुछ बिंदुओं पर अन्य न्यायाधीशों के साथ सहमति जताते हुए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने मुख्य बिंदु धन विधेयक और आधार की व्यवहारिकता की समतुल्यता के सिद्धांत के बारे भिन्न मत जाहिर किया. उन्होंने कहा, "नियामकीय और निगरानी कार्ययोजना की अनुपस्थिति डेटा की सुरक्षा में इस कानून को अप्रभावी बनाती है." उन्होंने यह भी कहा कि आधार योजना के तहत जुटाए गए डेटा के आधार पर लोगों की निगरानी का एक जोखिम भी है और इससे डेटा का दुरुपयोग भी किया जा सकता है.
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मोबाइल सिम को भी अलग दिया मत
पीठ के अधिकांश न्यायाधीशों ने आधार को आयकर रिटर्न भरने के साथ जोड़ने को बरकरार रखा, जबकि न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने इसे पैन और आईटीआर के साथ जोड़ने की बात खारिज कर दी. उन्होंने कहा, "मोबाइल सिम के साथ आधार को जोड़ने से व्यक्तिगत आजादी को एक गंभीर खतरा है और इसे समाप्त किए जाने की जरूरत है." न्यायमूर्ति ने कहा, "1.2 अरब लोगों के डेटा की सुरक्षा करना राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला है और इसे एक अनुबंध के जरिए किसी संस्था को नियंत्रित करने की इजाजत नहीं दी जा सकती."
Source : IANS