जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के विरोध में सामने आया गुपकार गैंग नित नए विवादों से घिरता जा रहा है. सूबे के इतिहास में आए अब तक के सबसे बड़े घोटाले में नेशनल कॉन्फ्रेंस चीफ फारूक अब्दुल्ला के बाद अब पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की मुखिया और पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती भी घिरती दिख रही हैं. यह घोटाला उस रोशनी एक्ट से जुड़ा है, जिसे सरकार ने गरीबों को सस्ती जमीन और राज्य में बिजली लाने के लिए बनाया. यह अलग बात है कि उसे कुछ पार्टियों के नेताओं ने अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया. इस घोटाले की सीबीआई जांच कर रही है. अभी तक के जांच में कई बड़े खुलासे हुए हैं.
मुफ्ती ने तीन कनाल पर किया कब्जा
एक अधिकारी के मुताबिक, पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी ने जम्मू के संजवान इलाके में अवैध ढंग से तीन कनाल सरकारी जमीन पर कब्जा कर पार्टी ऑफिस का निर्माण कराया. इसी ऑफिस के पहले फ्लोर पर विवादास्पद नेता राशिद खान ने अपना बसेरा बनाया है. जिस समय जमीन पर कब्जा किया गया, उस वक्त मुफ्ती मोहम्मद सईद की अगुआई वाली पीडीपी की सरकार थी. पीडीपी के नेता चौधरी तालिब हुसैन ने जम्मू डिविजन के चन्नी रामा इलाके में दो कनाल सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा किया है. अधिकारी के मुताबिक, उन्होंने तो रोशनी एक्ट का सहारा लेने की औपचारिकता भी नहीं निभाई. सीधे-सीधे जमीन पर कब्जा कर लिया.
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बॉलीवुड के खान खानदान भी लाभार्थी
गौरतलब है कि रेप के आरोपी तालिब हुसैन को महबूबा मुफ्ती ने बड़े धूमधाम से अप्रैल 2019 में पार्टी में शामिल कराया था. उन्हें तब महबूबा ने आदिवासी हितों का पैरोकार बताया था. वहीं, बॉलीवुड में बीते जमाने के बड़े नाम फिरोज खान और संजय खान की बहन दिलशाद शेख ने भी सात कनाल जमीन पर श्रीनगर के इलाके में कब्जा जमाया. दिलशाद ने रोशनी एक्ट का फायदा लिया, लेकिन जमीन नियमित कराने की रकम नहीं जमा कराई. नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता असलम मट्टू ने भी रोशनी एक्ट के सहारे एक कनाल सरकारी जमीन पर श्रीनगर में कब्जा किया, लेकिन इसके लिए कोई रकम नहीं अदा की. जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री बख्शी गुलाम मोहम्मद के परिवार के एक सदस्य ने भी रोशनी एक्ट का फायदा लिया.
रोशनी एक्ट क्या है?
सरकारी ज़मीन पर अवैध कब्ज़ा हटाने और फिर ऐसे लोगों को रहने के लिए दूसरी जगह देने के लिए जम्मू-कश्मीर में रोशनी एक्ट लाया गया था. साल 2001 में फारूक अब्दुल्ला की सरकार ने यह कानून लागू किया. इस एक्ट के तहत लोगों को उस ज़मीन का मालिकाना हक देने की योजना बनी, जिस पर उन्होंने अवैध कब्ज़ा कर रखा था. बदले में उन्हें एक छोटी सी रकम चुकानी थी. इस रकम का इस्तेमाल राज्य में बिजली का ढांचा सुधारने में किया जाता. इसी से इस एक्ट का नाम रोशनी एक्ट.
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दिक्कत कहां शुरू हुई?
साल 2001 में सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करने वालों को मालिकाना हक देने के लिए 1990 को कट ऑफ वर्ष मान लिया गया था. मतलब जो लोग 1990 या उससे पहले से किसी जमीन पर काबिज हैं तो वह इस एक्ट के प्रावधानों के तहत जमीन का मालिकाना हक पाने के हकदार थे. शुरुआत में कुछ किसानों को इसका फायदा भी मिला, लेकिन ऐसा हर जमीन के मामले में नहीं किया गया. समय बदला और सरकारें बदलीं. जम्मू-कश्मीर में आने वाली हर सरकार ने अपने हिसाब से रोशनी एक्ट में बदलाव करके 1990 के इस कट ऑफ साल को बदलना शुरू कर दिया. इसका फायदा यह हुआ कि ज्यादा से ज्यादा लोग इस एक्ट के दायरे में आते चले गए.
इस तरह खुला पूरा मामला?
2011 में जम्मू-कश्मीर के रिटायर्ड प्रोफेसर एसके भल्ला ने एडवोकेट शेख शकील के जरिए इस मामले में जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट में आरटीआई फाइल करवाई. उन्होंने इस याचिका में सरकारी और जंगली जमीन में बड़ी गड़बड़ी के आरोप लगाए. पूरे मामले का खुलासा 2014 में आई कैग यानी कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल की रिपोर्ट में हुआ. कैग ने 2007 से 2013 के बीच जमीन ट्रांसफर करने के मामले में गड़बड़ी की बात कही. कैग की रिपोर्ट में कहा गया कि सरकार को जिस जमीन के बदले 25,000 करोड़ रुपये मिलने चाहिए थे, उसके बदले उसे सिर्फ 76 करोड़ रुपये ही मिले. फिलहाल मामला कोर्ट में है. सीबीआई मामले की जांच कर रही है.
Source : News Nation Bureau