पेगासस मामले में पांच पत्रकारों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. उनका कहना है कि सरकारी एजेंसियों द्वारा निगरानी के अनधिकृत उपयोग ने उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया है और वे पेगासस स्पाइवेयर के उपयोग से सीधे तौर पर प्रभावित हुए हैं. याचिकाकर्ता - परंजॉय गुहा ठाकुरता, एस. एन. एम. आब्दी, प्रेम शंकर झा, रूपेश कुमार सिंह, और ईप्सा शताक्षी - ने शीर्ष अदालत से आग्रह किया कि वह पेगासस के उपयोग से संबंधित सभी जांच, प्राधिकरण और आदेशों के संबंध में सभी सामग्रियों और दस्तावेज और तमाम खुलासों के लिए केंद्र को निर्देश जारी करें.
याचिकाकतार्ओं ने आरोप लगाया कि उन्हें सरकार या किसी अन्य तीसरे पक्ष द्वारा गहन घुसपैठ और हैकिंग के अधीन किया गया था. इससे पहले जुलाई में अनुभवी पत्रकार एन. राम और शशि कुमार ने कथित पेगासस स्नूपिंग स्कैंडल में अदालत के मौजूदा या सेवानिवृत्त न्यायाधीश द्वारा एक स्वतंत्र जांच के लिए निर्देश देने की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था. एडवोकेट एम. एल. शर्मा और माकपा के राज्यसभा सदस्य जॉन ब्रिटास ने भी जासूसी के आरोपों की जांच के लिए शीर्ष अदालत का रुख किया है.
प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमना और सूर्यकांत की पीठ पेगासस जासूसी से जुड़े मामलों की सुनवाई 5 अगस्त को करेगी. एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड प्रतीक चड्ढा के माध्यम से दायर याचिका में पत्रकारिता के स्रोतों और व्हिसल ब्लोअर के लिए निगरानी की इस प्रकृति से उत्पन्न खतरे का हवाला दिया गया है. याचिकाकतार्ओं ने शीर्ष अदालत से यह सुनिश्चित करने के लिए हस्तक्षेप करने के लिए कहा है कि स्वतंत्र प्रेस का अस्तित्व बना रहे और यह भी मांग की कि गोपनीयता के अवैध उल्लंघन और हैकिंग पर किसी भी शिकायत से निपटने के लिए एक न्यायिक निगरानी तंत्र स्थापित किया जाए.
याचिकाकर्ताओं ने जोर देकर कहा है कि इस तरह के उल्लंघनों के लिए जिम्मेदार सभी सरकारी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए. पत्रकारों ने दावा किया कि एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा किए गए उनके मोबाइल फोन की फोरेंसिक जांच से पता चला है कि उन्हें पेगासस मैलवेयर का उपयोग करके लक्षित किया गया था.
ठाकुरता द्वारा दायर याचिका में कहा गया है, याचिकाकर्ता को आशंका है कि भारत में उन पर और अन्य पत्रकारों पर पेगासस के हमले से गोपनीय मुखबिरों और व्हिसल-ब्लोअर्स को आगे आने और सरकार के विभिन्न स्तरों पर गलत कामों को सामने लाने से रोक दिया जाएगा और इस तरह, पूरे शासन में पारदर्शिता पर हानिकारक प्रभाव पड़ेगा.
Source : News Nation Bureau