पेगासस कथित जासूसी मामले की स्वतंत्र जांच कराने का अनुरोध करने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई आज हुई. कुल 9 याचिकाएं सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस एन वी रमना और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच के सामने लगी. चीफ जस्टिस ने याचिकाकर्ता एमएल शर्मा की खिंचाई की. चीफ जस्टिस नेक हा कि हमने आपकी याचिका देखी. पेपर कटिंग के अलावा इसमें क्या है. वहीं वरिष्ठ पत्रकार एनराम और शशि कुमार की तरफ से कपिल सिब्बल पेश हुए. कपिल सिब्बल ने कहा कि पेगासस सॉफ्टवेयर एक ऐसी टेक्नोलॉजी है, जो फोन के जरिये लोगों की ज़िंदगी में घुसपैठ की तरह है. ये सीधे तौर पर व्यक्ति की निजता और उसके गरिमा के अधिकार का हनन है.
चीफ जस्टिस ने सुनवाई के दौरान कहा कि पेगासस को लेकर मीडिया रिपोर्ट अगर सच है, तो ये आरोप बेहद संजीदा है. हम जांच का आदेश दे सकते है. पर दुर्भाग्यपूर्ण बात ये है भी इस मामले में याचिकाकर्ता जानकार लोग है, पर उन्होंने अपने पक्ष में मैटीरियल जुटाने के लिए इतनी मशक्कत नहीं की. जो लोग ख़ुद इससे प्रभावित बता रहे है, उन्होंने इसको लेकर क्रिमिनल कंप्लेन दाखिल नहीं की.
कोर्ट ने कपिल सिब्बस से कहा, 'एन राम की ओर से दायर हलफनामे में कहा गया है कि कुछ भारतीय पत्रकारो की जासूसी हुई है, उन्होंने इसके समर्थन में कैलिफोर्निया कोर्ट के आदेश का उल्लेख किया है. पर कैलिफोर्निया कोर्ट के आदेश में तो ऐसी बात नहीं है.
सिब्बल ने कोर्ट से कहा, 'पत्रकार, संवैधानिक पदों पर काबिज लोग, कोर्ट अफसर , सब इसके निशाने पर थे. बड़ा सवाल ये है कि क्या ये पेगासस सॉफ्टवेयर खरीदा गया, इसके लिए कितना खर्च हुआ.
सिब्बल ने संसद में ओवैसी के पूछे गये सवाल को लेकर दिये गए सरकार के जवाब का उल्लेख किया. उन्होंने कहा, 'मंत्री का कहना था कि इजरायल ग्रुप ने ये सॉफ्टवेयर डेवेलप किया. मंत्री मान चुके हैं कि भारत मे 121 लोगों को निशाने पर लिया गया था. आगे की सच्चाई तभी पता चलेगी जब कोर्ट सरकार से जानकारी ले.
CJI ने कहा कि हमारे इस सवाल का जवाब नहीं मिला कि 2 साल बाद मामला क्यों उठाया जा रहा है?
सिब्बल ने कोर्ट से कहा कि सिटीजन लैब ने नए खुलासे किए है. इसमे 122 यूजर्स भारत के है. अगर सरकार ये सब मान रही तो FIR दर्ज क्यों नहीं की. सरकार खामोश क्यों है. ये देश के लोगो की निजता और सुरक्षा से जुड़ा मसला है. बिना सरकार के खरीदे हुए ये सॉफ्टवेयर देश में इस्तेमाल नहीं हो सकता.
जिस पर कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार भी तो हो सकती है.
जिस पर सिब्बल ने कहा कि सरकार को इस बारे में स्पष्टीकरण देना ही चाहिए. आखिर उनकी तरफ से कोई एक्शन क्यों नहीं लिया गया. मुझे पता चला है कि एक सेलफोन में घुसपैठ की कीमत 55000 डॉलर चुकानी पड़ती है.
कोर्ट ने पूछा कि दो साल बाद ये मामला क्यों उठा रहे है.
सिब्बल कहा कि हमें वाशिंगटन पोस्ट के जरिए इसकी जानकारी मिली. अब पता चल रहा है कि न्यायपालिका से जुड़े लोग भी निशाने पर है. NSO का कहना है कि आतंकवाद से लड़ने में इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल होता है, क्या ये सारे पत्रकार, कोर्ट स्टाफ आतंकवादी है.
एडवोकेट सीयू सिंह ने बात रखी. कहा- जुलाई 2021 में ही जिनकी जासूसी हुई, उनके नाम सामने आए. राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मसलो पर सरकार जासूसी कर सकती है, पर नियम क़ानून को ताक पर रखकर नहीं.
वरिष्ठ वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि फ्रेंच संस्था और कनाडा के लैब के प्रयास से नया खुलासा हुआ है. लोगों को जानने का हक है कि भारत में इसका किसने और किस पर इस्तेमाल किया? जांच हो. 2019 में भी संसद में ये मामला उठा था. तब रविशंकर प्रसाद ने कोर्ट को आश्वस्त किया था कि क़ानून का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई होगी.
CJI ने कहा कि अगर आप को पक्का पता है कि आपके फोन की जासूसी हुई तो आपने कानूनन FIR दर्ज क्यों नहीं करवाई?
जयदीप छोकर की ओर से श्याम दीवान पेश हुए. उन्होंने कोर्ट से कहा - स्वतंत्र जांच एजेसी से जांच की ज़रूरत है. कैबिनेट सेकेट्री लेवल के अधिकाटी ही सर्विलांस इशू पर जवाबदेही बनती है.
श्याम दीवान- फ्रांस और अमेरिका की सरकारें इसे गंभीरता से ले चुकी हैं. हम भी इसकी उपेक्षा नहीं कर सकते.
वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी भी पेश हुए. उन्होंने कहा -आतंकवादियो के सर्विलांस की बात समझ आती है, देश के नागरिकों की निजता से ऐसे समझौता नहीं किया जा सकता।कम से कम 40 पत्रकारों की जासूसी हुई है.
द्विवेदी ने आगे कहा कि एक बाहर की कंपनी शामिल है. अगर सरकार ने स्पाईवेयर नहीं लिया तो किसने लिया? कश्मीर के किसी आतंकवादी की जासूसी नहीं हुई कि इसे सही कह दें.
वरिष्ठ वकील अरविंद दातार ने कहा कि IT एक्ट तहत हम मुआवजा मांग सकते हैं. लेकिन बिना जांच के कैसे पता चलेगा कि ज़िम्मेदार कौन है. 9 जजों की बेंच ने निजता के अधिकार को मूल अधिकार के अंतर्गत माना है. अभी 300 लोगो की बात सामने आ रही है. अगर न्यायपालिका संज्ञान नहीं लेगी तो कौन लेगा. कौन जानता है कि ये 300 है या 3000
कोर्ट का सवाल - किसी ने केंद्र को याचिका की कॉपी दी है.
श्याम दीवान - AG, SG को हम दे चुके है.
कोर्ट ने सभी याचिकाकर्ताओं से कहा कि अपनी याचिका की कॉपी केंद्र सरकार को दे. अगली सुनवाई मंगलवार को होगी.
कोर्ट ने एक याचिकाकर्ता एम एल शर्मा ने कहा कि आपकी याचिका के साथ दिक़्क़त ये है कि आपने ऐसे लोगो को भी पक्षकार बनाया है, जिन्हें हम सीधे नोटिस नहीं कर सकते.
आदेश का सार
* सभी याचिकाकर्ता अपनी याचिका की कॉपी केंद्र सरकार को देगे
* 10 अगस्त को अगली सुनवाई
*इस स्टेज पर कोर्ट ने कोई नोटिस जारी नहीं किया
* कोर्ट ने कहा - पहले सरकार की ओर से किसी को पेश होने दीजिए।
* यानि 10 अगस्त के बाद कोर्ट नोटिस करने पर विचार करेगा
कौन-कौन है याचिकाकर्ता
*वकील मनोहर लाल शर्मा
*सीपीएम के राज्यसभा सांसद जॉन ब्रिटास
*वरिष्ठ पत्रकारों एन राम और शशि कुमार
*पत्रकार परंजोय गुहा ठाकुरता, एसएनएम आब्दी, प्रेम शंकर झा, रूपेश कुमार सिंह और ईप्सा शताक्षी
*मीडिया संपादकों के समूह एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया
*एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के जयदीप छोकर
*नरेंद्र मिश्रा
Source : Arvind Singh