सुप्रीम कोर्ट में उपासना स्थल कानून 1991 को लेकर बड़ा मंच सजने वाला है. Place of Worship Act 1991 के खिलाफ अब तक 7 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुकी हैं, जिसमें एक ताजी याचिका के साथ कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं. ये इस सप्ताह की कुल पांचवीं याचिका है और अब तक की कुल 7वीं याचिका. बता दें कि ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा विवाद के बीच उपासना स्थल कानून यानी प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट पर भी लगातार चर्चा चल रही है, जिसके मुताबिक, साल 1947 से पहले के सभी धार्मिक स्थलों को संवैधानिक सुरक्षा भारतीय संविधान के मुताबिक मिली हुई है. इस कानून से सिर्फ अयोध्या राम जन्म भूमि मंदिर को ही छूट मिली थी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब भव्य राम मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा है. लेकिन अब इस कानून पर दोबारा बड़ी अदालत में सुनवाई हो सकती है.
सुप्रीम कोर्ट में उपासना स्थल कानून के खिलाफ दायर याचिका में याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया है कि कानून व्यवस्था, कृषि, शिक्षा आदि की तरह धार्मिक स्थलों का रखरखाव और उस बाबत कानून और नियम बनाने का अधिकार भी राज्य सूची में है. जब संविधान ने ये हक राज्यों को ही दिया है तो केंद्र सरकार ये कानून कैसे बना सकती है. ऐसे में केंद्र सरकार की ओर से 1991 में संसद से पारित कराया गया ये विधेयक जिसे कानून बनाया गया, पूरी तरह से असंवैधानिक है. सभी याचिकाकर्ता इसी आधार पर इस कानून को रद्द करने की मांग कर रहे हैं. कुल ऐसी 7 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुकी हैं.
क्या है उपासना स्थल कानून 1991
गौरतलब है कि प्लेसेज़ ऑफ़ वर्शिप (स्पेशल प्रोविज़न) एक्ट, 1991 या उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991 भारत की संसद का एक अधिनियम है. ये केंद्रीय कानून 18 सितंबर, 1991 को पारित किया गया था. यह 15 अगस्त 1947 तक के अस्तित्व में आए हुए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को एक आस्था से दूसरे धर्म में परिवर्तित करने पर और किसी भी स्मारक के धार्मिक आधार पर रखरखाव पर रोक लगाता है. मान्यता प्राप्त प्राचीन स्मारकों पर धाराएं लागू नहीं होंगी. यह अधिनियम उत्तर प्रदेश राज्य के अयोध्या में स्थित राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद और उक्त स्थान या पूजा स्थल से संबंधित किसी भी वाद, अपील या अन्य कार्यवाही के लिए लागू नहीं होता है.
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इस आधार पर कानून को दी जा रही है चुनौती
बता दें कि वाराणसी जिला अदालत में ज्ञानवापी मस्जिद-काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर विवाद पर दीवानी मुकदमे की सुनवाई के दौरान हिंदू पक्ष ने ये दावा किया कि उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991, प्रार्थना स्थल की प्रकृति का पता लगाने पर रोक नहीं लगाता है. हिंदू दलों ने दावा किया कि तत्कालीन प्रशासन ने आदेश का पालन किया और वाराणसी में आदि विशेश्वर के मंदिर के एक हिस्से को ध्वस्त कर दिया और बाद में एक निर्माण किया गया, जिसके बारे में उन्होंने आरोप लगाया कि वह ज्ञानवापी मस्जिद है. दावा किया गया है कि इसके बावजूद वे हिंदू मंदिर के धार्मिक चार्टर को नहीं बदल सके, क्योंकि देवी श्रृंगार गौरी, भगवान गणेश और अन्य संबंधित देवताओं की मूर्ति एक ही इमारत परिसर में बनी हुई है. हिंदू पक्षों ने यह भी दावा किया है कि विचाराधीन संपत्ति के भीतर मूर्तियां और पूजा की वस्तुएं हैं और मंदिर ने किसी भी समय अपना धार्मिक चरित्र नहीं खोया है. ऐसे में हिंदू कानून के तहत, जो भारत में लागू होता है, यह अच्छी तरह से मान्यता प्राप्त है कि एक बार संपत्ति देवता में निहित हो जाती है, वही उनकी संपत्ति बनी रहेगी और देवता को संपत्ति से कभी भी विभाजित नहीं किया जा सकता है. मामले में सुप्रीम कोर्ट की हालिया टिप्पणियों का हवाला देते हुए, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि 15 अगस्त, 1947 को पूजा स्थल की प्रकृति का निर्धारण करना आवश्यक है.
HIGHLIGHTS
- उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 के खिलाफ 7वीं याचिका
- ताजी याचिका कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर ने दाखिल की है
- धर्म पर राज्य सरकार को कानून बनाने का हक, केंद्र का कानून गलत