25 जून 1975 को भारत में आपातकाल यानी इमरजेंसी घोषित की गई थी. ये दिन भारत के इतिहास में कभी भी ना बदलने वाला दिन बन गया. आपातकाल का कांग्रेस के दामन पर एक ऐसा दाग है जो कभी भी मिट नहीं सकता है. 1975 में इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) पर इलाहाबाद उच्च न्याय ने जैसे ही एक फैसला दिया वैसे ही इमरजेंसी की नींव पड़ गई. इस पर पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने इमजरेंसी के दौरान यातनाएं झेलने वाले सेनानियों को नमन किया है.
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पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने देश में लगी इमरजेंसी पर ट्वीट किया. उन्होंने कहा, भारत उन सभी महानुभावों को सलाम करता है, जिन्होंने आपातकाल का जमकर विरोध किया था. भारत का लोकतांत्रिक लोकाचार अधिनायकवादी मानसिकता पर सफलतापूर्वक हावी रहा.
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गृह मंत्री अमित शाह (AMit Shah) ने आपतकाल पर ट्वीट कर कहा, 1975 में आज ही के दिन मात्र अपने राजनीतिक हितों के लिए देश के लोकतंत्र की हत्या की गई थी. देशवासियों से उनके मूलभूत अधिकार छीन लिए गए, अखबारों पर ताले लगा दिए गए. लाखों राष्ट्रभक्तों ने लोकतंत्र को पुनर्स्थापित करने के लिए अनेकों यातनाएं सहीं. मैं उन सभी सेनानियों को नमन करता हूं.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद पड़ गई थी इमरजेंसी की 'नींव'
साल 1975 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी को चुनाव में धांधली करने का दोषी पाया था. उसके बाद उन पर 6 सालों तक कोई भी पद संभालने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. उस वक्त देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी न्यायालय के इस फैसले को कैसे बर्दाश्त कर सकती थी. इंदिरा गांधी ने कोर्ट के इस फैसले को इंकार कर दिया और फिर सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की घोषणा की.
India salutes all those greats who fiercely and fearlessly resisted the Emergency.
— Narendra Modi (@narendramodi) June 25, 2019
India’s democratic ethos successfully prevailed over an authoritarian mindset. pic.twitter.com/vUS6HYPbT5
सिद्धार्थ शंकर राय ने इमरजेंसी लागू करने का दिया था सुझाव
लेकिन इंदिरा गांधी कहां सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करने वाली थी. उन्होंने 25 जून को देश के लोगों की अभिव्यक्ति की आजादी छिनते हुए इमरजेंसी लागू कर दी. इमरजेंसी इंदिरा गांधी के कहने पर लगाया गया था या इसमें किसी और का दिमाग था. इसे लेकर तरह-तरह की बातें सामने आई. लेकिन 25 जून 1975 की सुबह इंदिरा गांधी ने सबसे पहले जिसे याद किया वो नाम था पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर राय का. सिद्धार्थ शंकर राय दिल्ली के बंग भवन में जब आराम कर रहे थे तब उनके पास इंदिरा जी का फोन आया और उन्हें 1 सफ़दरजंग रोड पर तलब किया गया. इंदिरा ने उनसे कहा कि पूरे देश में अव्यवस्था फैल रही है हमें कड़े फैसले लेने की जरूरत है. इंदिरा ने पश्चिम बंगाल के सीएम सिद्धार्थ को इसलिए बुलाया था क्योंकि वह संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ माने जाते थे.
1975 में आज ही के दिन मात्र अपने राजनीतिक हितों के लिए देश के लोकतंत्र की हत्या की गयी। देशवासियों से उनके मूलभूत अधिकार छीन लिए गए, अखबारों पर ताले लगा दिए गए। लाखों राष्ट्रभक्तों ने लोकतंत्र को पुनर्स्थापित करने के लिए अनेकों यातनाएं सहीं।
— Amit Shah (@AmitShah) June 25, 2019
मैं उन सभी सेनानियों को नमन करता हूं। pic.twitter.com/XzRc4vEdJS
धारा 352 के तहत आपातकाल की घोषणा
सिद्धार्थ ने इंदिरा जी से कहा कि मुझे संवैधानिक स्थिति समझने दीजिए फिर बताता हूं, लेकिन तब इंदिरा जी ने उन्हें जल्दी करने को कहा था. जिसके बाद राय ने भारतीय संविधान के साथ अमरीकी संविधान को पढ़ा और इंदिरा गांधी को धारा 352 के तहत आपातकाल की घोषणा करने का सुझाव दिया.
राष्ट्रपति के पास इंदिरा गांधी सिद्धार्थ के साथ पहुंचीं
इसके बाद इंदिरा ने सिद्धार्थ को कहा कि वो आपातकाल का प्रस्ताव लेकर राष्ट्रपति के पास जाए और उन्हें समझाए. कैथरीन फ़्रैंक की किताब 'इंदिरा' में लिखा हुआ है कि उस वक्त सिद्धार्थ ने राष्ट्रपति के पास जाने से मना कर दिया, लेकिन कहा कि जब इंदिरा खुद चलेंगी तो वो उनके साथ जाएंगे. जिसके बाद इंदिरा और सिद्धार्थ 25 जून शाम 5 बजे राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद के पास पहुंचे और सारी बातों को बयां किया. जिसके बाद राष्ट्रपति ने इंदिरा को आपातकाल का कागज भेजने को कहा.
राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने इमरजेंसी के पेपर पर साइन किया
राष्ट्रपति के कहने के बाद इंदिरा गांधी ने आपातकाल का पेपर तैयार किया और आरके धवन को पेपर के साथ राष्ट्रपति भवन भेजा. आरके धवन इंदिरा गांधी के निजी सचिव थे. इस पेपर पर राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने साइन करके आपातकाल की घोषणा कर दी.