Advertisment

Uri Terror Attack बाद सिंधु समझौते पर PM Modi ने कहा था- खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते

अमेरिकी सीनेट कमेटी ऑन फॉरेन रिलेशंस की 2011 की एक रिपोर्ट में भी कहा गया था कि भारत सिंधु से पाकिस्तान की आपूर्ति को नियंत्रित करने के तरीके के रूप में इन परियोजनाओं का उपयोग कर सकता है.

author-image
Nihar Saxena
एडिट
New Update
Sindhu Water

पाकिस्तान जाने वाला सिंधु नदी पानी का प्रवाह अब हो रहा है कम.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

Advertisment

पाकिस्तान (Pakistan) संग सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty) पर मोदी सरकार के पुनर्विचार का संकेत पहली बार सितंबर 2016 में मिला था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने 11 दिनों तक चली संधि समीक्षा बैठक में भाग लेने वाले अधिकारियों से कहा था, 'खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते.' गौरतलब है कि संधि समीक्षा बैठक पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों के जम्मू के उरी (Uri Attack) स्थित भारतीय सेना के ठिकाने पर आतंकी हमले (Terror Attack) के बाद हुई थी, जिसमें 18 जवान शहीद हो गए थे. इस बैठक के दो साल से भी कम समय बाद मई 2018 में प्रधानमंत्री ने बांदीपोर में 330 मेगावाट किशनगंगा पनबिजली परियोजना का उद्घाटन किया और जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ में 1,000 मेगावाट के पाकल-दुल संयंत्र की आधारशिला रखी. वास्तव में सितंबर 2016 की संधि समीक्षा बैठक के तुरंत बाद दो अन्य बड़ी पनबिजली परियोजनाओं क्रमशः 1,856 मेगावाट सावलकोट और 800 मेगावाट बरसर पर काम भी युद्धस्तर की गति से तेज कर दिया गया था.

सिंधु नदी के पानी के जरिये मोदी सरकार दे रही पाकिस्तान को करारा जवाब
चिनाब की दो सहायक नदियों क्रमशः किशनगंगा और मरुसुदर पर स्थित इस परियोजनाओं ने साफ जता दिया था कि मोदी सरकार हर मौजूदा विकल्प के साथ भारत के खिलाफ इस्लामाबाद प्रायोजित आतंकवाद का जवाब देने के लिए तैयार है. इन विकल्पों में 1960 की सिंधु संधि के प्रावधानों से अधिक पानी का पाकिस्तान को  प्रवाह रोकना भी शामिल था. एक दशक से लटकी पकल-दुल परियोजना की शुरूआत ने सिंधु जल प्रणाली पर तेजी से ट्रैक बुनियादी ढांचे के लिए मोदी सरकार के इरादे को रेखांकित किया. इसका मकसद संधि के दायरे में भारत की ओर से पानी का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित करना था. इसमें सिंधु की पश्चिमी सहायक नदियों जैसे चिनाब और झेलम के साथ-साथ उनमें गिरने वाली धाराओं पर जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण भी शामिल है.  तब से केंद्र ने जम्मू और कश्मीर में लगभग 4,000 मेगावाट क्षमता वाली कई रुकी हुई जलविद्युत परियोजनाओं को तेजी से पूरा किया है. इस कड़ी में पीएम मोदी ने पिछले साल अप्रैल में किश्तवाड़ में चिनाब पर 850 मेगावाट रतले और 540 मेगावाट क्वार जलविद्युत परियोजनाओं की आधारशिला रखी थी.

यह भी पढ़ेंः NCC: एनसीसी रैली को संबोधित करेंगे PM, स्मारक सिक्का करेंगे जारी

अमेरिकी रिपोर्ट में भी भारत के इस कदम की हुई थी पुष्टि
अमेरिकी सीनेट कमेटी ऑन फॉरेन रिलेशंस की 2011 की एक रिपोर्ट में भी कहा गया था कि भारत सिंधु से पाकिस्तान की आपूर्ति को नियंत्रित करने के तरीके के रूप में इन परियोजनाओं का उपयोग कर सकता है, जिसे उसका कंठ माना जाता है. रिपोर्ट में कहा गया था कि इन परियोजनाओं के जरिये भारत बढ़ते मौसम में महत्वपूर्ण क्षणों में पाकिस्तान को जलापूर्ति सीमित करने के लिए पर्याप्त पानी के भंडारण करने की क्षमता हासिल कर चुका है. स्पष्ट रूप से लंबित पनबिजली परियोजनाओं और भंडारण बुनियादी ढांचे को गति देना भारत की सिंधु रणनीति का एक प्रमुख हिस्सा बना है क्योंकि संधि अपने वर्तमान स्वरूप में भारत को घरेलू उपयोग सहित विभिन्न उद्देश्यों के लिए पश्चिमी नदियों पर 3.6 मिलियन एकड़ फीट (एमएएफ) तक पानी भंडारण क्षमता बनाने की अनुमति देती है.

HIGHLIGHTS

  • सिंधु जल संधि पर मोदी सरकार के पुनर्विचार का साफ संकेत पहली बार सितंबर 2016 में मिला था
  • समीक्षा बैठक में पीएम मोदी ने अधिकारियों से कहा था, 'खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते
  • मोदी सरकार हर मौजूदा विकल्प के साथ इस्लामाबाद प्रायोजित आतंकवाद का जवाब देने को तैयार 
PM Narendra Modi Modi Government pakistan पाकिस्तान पीएम नरेंद्र मोदी terror attack आतंकी हमला मोदी सरकार Indus Water Treaty सिंधु जल संधि Uri Attack Review Meeting समीक्षा बैठक उरी आतंकी हमला
Advertisment
Advertisment