चीन में बिजली संकट ने वहां की अर्थव्यवस्था पर सीधा अटैक किया आलम ये रहा कि कई बड़ी फैक्ट्रियों से लेकर दफ्तरों में शिफ्ट के हिसाब से बिजली दी जाने लगी, इसका असर उसके उत्पादन पर पड़ा जिससे दुनियाभर में चीनी एक्सपोर्ट में भारी कमी दर्ज की गई. लेकिन कुछ ऐसा ही संकट भारत में भी आने की आहट थी जब पावर मिनिस्ट्री ने एक प्रेस नोट के ज़रिए बताया कि बिजली उत्पादन के लिए देश के 135 पावर प्लांट में से 70 प्लांट में 3 दिन से भी कम समय का कोयला बचा है. यही नहीं बाकी 65 प्लांट में भी बिजली उत्पादन के लिए 4 से 10 दिन का कोयला बचा है. इस पर पावर मिनिस्ट्री से लेकर कोयला मंत्रालय पर सवाल खड़े होने लगे कि आखिर ऐसा हुआ क्यों? पावर मिनिस्ट्री ने इसके कारण भी गिनाए की आखिर क्यों ऐसा हुआ कोयला की कमी से लेकर बिलजी उत्पादन में एका एक कमी कैसे आ गई?
मंत्रालय ने इसके पीछे 4 प्रमुख कारण बताए
◆ कारण नंबर 1 - बिजली की मांग में आई तेज़ी
बिजली की मांग में पिछले 2 साल के मुकाबले अगस्त से सितंबर के बीच 20 फ़ीसदी से ज़्यादा की मांग आई जो पूरा करना बड़ी चुनौती बन गई, साल 2019 के अगस्त से सितंबर के बीच 10,669 करोड़ यूनिट बिजली की डिमांड थी वो 2021 में अगस्त से सितंबर के बीच 12,500 करोड़ यूनिट तक पहुंच गई जिससे इसके उत्पादन को बढ़ाना पड़ा और कोयले की खपत ज़्यादा रही
◆ कारण नंबर 2 - इस साल भारी बारिश ने कोयला का उत्पादन किया कम
इस साल कोयला का उत्पादन कम होने का सबसे बड़ा कारण रहा इन इलाकों में तेज बारिश और खदानों में पानी का भार जाना, देश में बिजली उत्पादन का 75 फ़ीसदी ज़रूरत का इन्हीं खदानों से पूरा किया जाता है जिससे इस बार उत्पादन कम हुआ और इसका असर बिजली बनाने के लिए कोयला स्टॉक पर पड़ा.
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◆ कारण नंबर 3 - आयातित कोयले की मांग के साथ बढ़ी कीमतें
देश में ज़रूरत का करीब 30 फ़ीसदी से ज़्यादा कोयला आयात किया जाता है जो एक बेहतर क्वालिटी का माना जाता है लेकिन कोरोना काल और डिमांड बढ़ने से अंतराष्ट्रीय बाज़ार में कोयले की क़ीमत में भी इज़ाफ़ा देखा गया जिससे इसकी खरीद में भी दिक्कतें आई, जो कोयला 45 डॉलर प्रति टन क़ीमत से आयात किया जाता था आज उसकी क़ीमत 180 - 200 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई जिससे 2019-20 के मुक़ाबले आयातित कोयले से बिजली उत्पादन में 40 फ़ीसदी तक कि कमी दर्ज की गई.
◆ कारण नंबर 4 - कोरोना काल के बाद उद्योगों के खुलने से भी डिमांड में अचानक उछाल आया
बिजली की बड़ी डिमांड उद्योगों के लिए भी होती है 2021 के अगस्त में ही 1800 करोड़ अतिरिक्त यूनिट की डिमांड आमने आई ताकि उद्योगों को भी बिजली प्रचुर मात्रा में मिल सके, देश में बिलजी उत्पादन का 25 फ़ीसदी तक इस्तेमाल उद्योगों में किया जाता है ताकि भारत में उद्योगों को मिलने वाली बिजली बाधित न हो, क्योंकि इससे सीधे तौर पर भारत की अर्थव्यवस्था जुड़ी है.
बिजली उत्पादन के लिए कोयला अब पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध - केंद्र
केंद्र सरकार ने कहा कि बिजली संकट टल गया है और कोयले की मात्रा अब बिजली उत्पादन कंपनियों के पास पर्याप्त मात्रा में है. इसलिए परेशान होने की ज़रूरत नहीं है. ये कहना कि बिजली संकट है ठीक नहीं है अब बिजली संकट कम हो गया है. हालांकि इस मामले पर दिल्ली सरकार का कुछ और ही मत है, प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दिल्ली सरकार ने साफ किया कि बिजली प्लांट पर कोयला की मात्रा काफी कम है इसलिए दिल्ली में बिजली संकट है. यानी केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच बिजली संकट को लेकर एक मत नहीं है कुछ समय पहले बिजली डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों से ग्राहकों को एक मैसेज भी आया जिसमे साफ बिजली कटौती की बात कही गई.
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पावर और कोल मिनिस्ट्री के अधिकारियों के बीच बैठकों का दौर जारी
देश में बिजली संकट न हो और कोयला भी बिजली उत्पादन कंपनियों के पास प्रचुर मात्रा में रहे इसको लेकर पावर और कोल मंत्रालय के अधिकारियों के बीच बैठक जारी है सोमवार को भी इस मामले पर एक रिव्यु बैठक है जिसमे आगे के प्लान पर चर्चा होगी, साथ में कोयले की कमी को सरप्लस में कैसे बदला जाए इसपर भी चर्चा होनी है यानी साफ है कि इस बार बिना ज़्यादा कोयला आयात किये काम चलने वाला नहीं है.
बिजली उत्पादन केंद्रों पर स्टॉक 20 दिन से कम नहीं होना चाहिए
भारत में आज भी बिजली उत्पादन सबसे ज़्यादा कोयला से ही होता है भारत में उत्पादित कोयला जो खदानों से निकाला जाता है वो बेहतर क्वालिटी का नहीं होता इसलिए ज़रूरत का 35 फ़ीसदी कोयला आयात करना होता है, यहीं नहीं बिजली प्रोडक्शन प्लांट पर 20 दिन का कोयला स्टॉक होना ज़रूरी होता है ऐसा न होने पर कोयले की कमी मानी जाती है.
Source : Sayyed Aamir Husain