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प्रशांत भूषण ने SC में सरकार पर लगाए गंभीर आरोप, Rafale मामला संविधान पीठ को सौंपने की पैरवी की

राफेल मामले में सुनवाई के दौरान कॉमन कॉज के प्रशांत भूषण ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाए और मामले को संविधान पीठ को भेजे जाने की जरूरत पर बल दिया. उन्‍होंने कहा, राफेल डील की पूरी प्रक्रिया में नियमों को ताख पर रख दिया गया.

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Sunil Mishra
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प्रशांत भूषण ने SC में सरकार पर लगाए गंभीर आरोप, Rafale मामला संविधान पीठ को सौंपने की पैरवी की

प्रतीकात्मक तस्वीर

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राफेल मामले में सुनवाई के दौरान कॉमन कॉज के प्रशांत भूषण ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाए और मामले को संविधान पीठ को भेजे जाने की जरूरत पर बल दिया. उन्‍होंने कहा, राफेल डील की पूरी प्रक्रिया में नियमों को ताख पर रख दिया गया. कैसे 126 लड़ाकू विमानों से घटकर केवल 36 विमानों का सौदा हुआ. यह फैसला किसने लिया और किस आधार पर प्रधानमंत्री ने 36 राफेल विमानों के सौदे की घोषणा की. भूषण ने कहा, प्रधानमंत्री को यह अधिकार नहीं है. अब भी 36 एयरक्राफ्ट डिलीवर नहीं हुए हैं, पहला एयरक्राफ्ट सितंबर 2019 तक डिलीवर होगा.

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उन्‍होंने कहा, सरकार पहले भी कई बार राफेल का मूल्‍य बता चुकी है पर अब वह गोपनीयता का हवाला दे रही है, जो निहायत ही बकवास है. उन्‍होंने कहा, मामला सीबीआई को सौंपा जाना चाहिए और सीबीआई को पक्षपातरहित जांच करनी चाहिए. हमने मामले की सीबीआई में शिकायत की पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है. तब हमने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली.

भूषण ने कहा, सरकार का कहना है कि ऑफसेट पार्टनर चुनने में उनकी कोई भूमिका नहीं है, जबकि नियम और प्रक्रिया यह है कि आफसेट पार्टनर के नाम को रक्षा मंत्री की मंजूरी जरूरी होती है. उन्‍होंने कहा, रिलायंस को रक्षा क्षेत्र या लड़ाकू विमान बनाने में कोई अनुभव नहीं है. सरकार ऐसा नहीं कह सकती कि ऑफसेट पार्टनर के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं है. ऐसा करना प्रक्रिया का उल्‍लंघन करना है.

राफेल को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 4 याचिकाएं दायर की गई हैं. वकील एमएल शर्मा के अलावा एक दूसरे वकील विनीत ढांडा के अलावा आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने याचिका दायर की है. पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी, यशवंत सिन्हा और प्रशांत भूषण ने भी अपनी ओर से याचिका दाखिल की थी.

याचिकाकर्ता वकील एमएल शर्मा ने बुधवार को सुनवाई की शुरुआत में कहा- यह गम्भीर फ्रॉड का मामला है. सरकार ने फ्रांस के साथ राफेल डील की घोषणा अप्रैल 2015 में की, जबकि बातचीत मई 2015 में शुरू हुई. यह मामला पांच जजों की संविधान पीठ को सौंपा जाना चाहिए. सरकार आगे भी इस तरीके के दूसरे देशों के साथ कॉन्ट्रैक्ट कर सकती है.
याचिकाकर्ताओं ने सवाल उठाए कि अप्रैल 2015 में कैसे भारत और फ्रांस ने Joint Statement जारी कर दिया, जबकि CCS ने सितबर 2016 में डील को मंजूरी दी.

संजय सिंह की ओर से पेश वकील ने कहा- सरकार दो बार राफेल की कीमत की जानकारी दे चुकी है. राफेल की कीमत 670 करोड़ बताया गया था. सरकार को अब मूल्‍य बताने में कोई परहेज नहीं होना चाहिए. वह मूल्‍य क्‍यों नहीं बता रही है. संजय सिंह के वकील ने कहा कि सरकार की ओर पेश किए दस्तावेजों से इस बात का जवाब नहीं मिलता कि क्या पीएम द्वारा राफेल डील की घोषणा से पहले DEC (Defence Acquisition Council) या CEC यानि सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी से मंजूरी ली गई थी या नहीं. पहले 126 राफेल खरीदने का समझौता हुआ था. अगर डील का मकसद रक्षा ज़रूरतों को पूरा करना और मारक क्षमता को बढ़ाना था तो यह संख्‍या बढ़नी चाहिए थी. आखिर में यह डील महज 36 राफेल विमान पर ही सीमित क्यों रह गई?

इससे पहले सरकार राफेल विमान की कीमत भी सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट के सामने रख चुकी है. साथ ही सरकार ने याचिकाकर्ताओं को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक राफेल सौदे में फैसला लेने की प्रकिया के बारे में जानकारी दी है. सरकार का कहना है निजी कंपनी (रिलायंस) को ऑफसेट पार्टनर बनाने का फैसला फ्रांस की कंपनी दसॉ का था.

Source : News Nation Bureau

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